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कब उदार रहे हैं हम!

नरेंद्र मोदी सरकार पर यह गलत आरोप लगाया जाता है कि वे भारत को एक तरह के उग्र या अनुदार राष्ट्र में बदल रहे हैं. अनुदार का मतलब असहिष्णु तथा अभिव्यक्ति और कर्म की आजादी पर को सीमित करने का समर्थन करना होता है. मैं कहता हूं कि इस सरकार पर अनुदार होने के गलत […]

नरेंद्र मोदी सरकार पर यह गलत आरोप लगाया जाता है कि वे भारत को एक तरह के उग्र या अनुदार राष्ट्र में बदल रहे हैं. अनुदार का मतलब असहिष्णु तथा अभिव्यक्ति और कर्म की आजादी पर को सीमित करने का समर्थन करना होता है. मैं कहता हूं कि इस सरकार पर अनुदार होने के गलत आरोप लगते हैं, क्योंकि तथ्य बताते हैं कि भारत की सरकार कभी भी बहुत उदार नहीं रही है, यहां तक कि कांग्रेस के शासन में भी.
मैं जो भी कुछ कह रहा हूं, उसकी गवाही कुछ मुद्दों पर दशकों से काम कर रहे नागरिक समाज समूह और गैर-सरकारी संगठन आपको देंगे. आदिवासियों, कश्मीरियों और पूर्वोत्तर के लोगों के अधिकारों जैसे मुद्दे हाल के समय में केंद्र में नहीं रहे हैं. ये सारी समस्याएं दशकों से हमारे सामने हैं और यह मान लेना गलत होगा कि इसकी मुख्य वजह यह सरकार या यह प्रधानमंत्री हैं.
आदिवासियों की जमीन, जो कि खनिज संपदा के मामले में बेहद धनी हैं, का दोहन नेहरू के समय और यहां तक कि उसके पहले से ही शुरू हो गया था. आदिवासियों के खिलाफ कुछ बेहद कठोर और नृशंस कार्रवाई मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार के समय भी हुई थी. कुछ आदिवासियों द्वारा किये गये अपराध की सजा सभी को दी जाती है और भारत के हृदय-स्थल में हजारों की संख्या में अद्धसैनिक बलों की उपस्थिति इस बात का प्रमाण है. अक्टूबर, 2015 के समाचार पत्रों में खबर छपी थी जिसका शीर्षक था- ‘माओवादियों के विरुद्ध अभियान : छत्तीसगढ़, भारतीय वायुसेना ने प्रतिशाेध के लिए हवाई हमले करेंगे.’ यहां कहानी यह थी कि भारतीय वायुसना ने रूस में निर्मित एमआइ-17 हेलिकॉप्टरों से अपने खुद के नागरिकों पर हवाई हमला करेंगे. रिपोर्ट में कहा गया था कि वायु सेना ने सफलतापूर्वक मुआयना किया है और तीन हेलिकॉप्टरों ने बीजापुर के ऊपर उड़ान भरी और हवाई हमले (स्ट्राफिंग) का अभ्यास किया. हवाई हमला (स्ट्राफिंग) शब्द का मतलब कम ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले विमान से बारंबार बम व मशीनगन से आक्रमण करना होता है. जो लोग भारत के बारे में जानते हैँ, उन्हें पता होगा कि यहां का कोई भी इलाका पूरी तरह से बिना आबादी के या खाली नहीं है और इसीलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि जब इन इलाकों में बम और मशीन गन से बमबारी का अभ्यास किया गया था, तब वहां क्या हुआ होगा?
यहां मामला यह है कि इस इलाके में ऐसी हिंसा का होना काेई नयी बात नहीं है तथा ब्रिटिश शासन और उसके पहले से ही भारतीय राज्य यहां आंदोलन करनेवाले नागरिकों का इसी तरह से दमन करता आया है. यह मान लेना कि इसकी शुरुआत मोदी से होती है, न केवल गलत है, बल्कि भ्रामक भी है, क्योंकि इससे असली मुद्दे नजरअंदाज हो जाते हैं. मोदी से पहले और दुर्भाग्यवश उनके बाद भी भारत ने अपने नागरिकों के साथ इसी तरह का व्यवहार किया है और आगे भी ऐसा ही करता रहेगा.
कुछ महीने पहले मैं पी चिदंबरम के साथ बातचीत कर रहा था और वे कह रहे थे कि भारत को कश्मीर से सशस्त्र बलों के विशेषाधिकार कानून (अफ्स्पा) को हटा देना चाहिए. वे हमारे सबसे अधिक बुद्धिमान राजनेताओं में से एक हैं और मैं उनका बहुत सम्मान करता हूं. हालांकि, मेरा मानना है कि जब वे गृह मंत्री थे, तब उनके द्वारा इस तरह की भावनाओं को व्यक्त करना कहीं ज्यादा विश्वसनीय होता. आंदोलन कर रहे कश्मीरियों के विरुद्ध वर्तमान सरकार के सख्त रुख से आज जिन लोगों को तकलीफ हो रही है, उन्हें यह भी जानना चाहिए कि पूर्व की सरकारों द्वारा भी कश्मीरियों के खिलाफ इसी तरह के सख्त रुख अपनाये गये थे. केवल बयान देने का तरीका कुछ अलग है. कांग्रेस ने भी कई और वस्तुत: कहीं ज्यादा कश्मीरियों की हत्या की है, लेकिन वह धीमे सुर में बात करती थी. भारतीय जनता पार्टी कठोर शब्दों का प्रयोग करती है, और दोनाें में केवल यही वास्तविक अंतर है.
भारतीय राज्य ने हमेशा उन प्राथमिकताओं के आधार पर काम किया है, जो इसकी आबादी की जरूरतों और उसके अधिकारों से भिन्न होते हैं. भारत को लूटने और हमारे संसाधनों को अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करने का आरोप हम ब्रिटिश साम्राज्यवाद पर लगाते हैं. युद्ध नीति के कारण 1943 में बंगाल मेें पड़े अकाल का उदाहरण हम अक्सर दिया जाता है. दुनिया के एक हिस्से में जहां लोग भूख से जूझ रहे थे और अशिक्षित थे, वहां इस तरह का व्यवहार बेहद अनुचित था.
हालांकि, मुझे इस बात पर आश्चर्य है कि लोकतंत्र में हो रहे इस तरह के कृत्य उससे अलग कैसे हैं? पिछले साल हमने भारतीय वायुसेना के 36 लड़ाकू जेट के लिए 59,000 करोड़ रुपये खर्च किये. इस वर्ष हम भारतीय नौसेना के 57 लड़ाकू जेट के लिए 50,000 कराेड़ रुपये खर्च कर रहे हैं. यह उस देश में हो रहा है, जहां एक वर्ष का केंद्रीय स्वास्थ्य बजट 33,000 करोड़ (वास्तव में अरुण जेटली ने इसमें कटौती की थी) रुपये है. प्रति सप्ताह दस हजार भारतीय बच्चे कुपोषण से मर जाते हैं, लेकिन हम इस मद में ज्यादा राशि व्यय नहीं कर सकते और बजाय इसके, हम सशस्त्र बलों के लिए ज्यादा खिलौने यानी हथियार खरीदेंगे. क्या यह ब्रिटिश राज की तरह का ही अनैतिक कृत्य नहीं है? क्या कोई इसे मुद्दा बना सकता है कि हमें इन नये विमानों की नितांत आवश्यकता है? नहीं, और यहां मुद्दा यह है कि इस बारे में हमारे देश में एक बार भी चर्चा नहीं होती है और न ही कभी हुई है.
सभी सरकारें एक ही मार्ग का अनुसरण करती हैं. हालांकि कोई इस प्रधानमंत्री से कई मुद्दों पर असहमत हो सकता है, लेकिन वह इस बात को अवश्य स्वीकार करेगा कि वे पूर्व में किये गये कार्यों के अनुरूप ही आचरण कर रहे हैं.
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
aakar.patel@me.com

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