23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गरीबी सिखानेवाला वह धनी

.. क्योंकि गांधीजी का जीवन वस्तुओं के संग्रह का नहीं, वस्तुओं के त्याग का जीवन था. वे मानते थे कि जो चीज करोड़ों लोगों के पास नहीं हो सकती, उसे रखने का हक मुङो नहीं है. गांधी जीवित थे तब भी कुछ लोग चाहते थे- काश! वे न होते, किसी तरह मर जाते! 1942 के […]

.. क्योंकि गांधीजी का जीवन वस्तुओं के संग्रह का नहीं, वस्तुओं के त्याग का जीवन था. वे मानते थे कि जो चीज करोड़ों लोगों के पास नहीं हो सकती, उसे रखने का हक मुङो नहीं है.

गांधी जीवित थे तब भी कुछ लोग चाहते थे- काश! वे न होते, किसी तरह मर जाते! 1942 के आंदोलन के वक्त अपने उपनिवेश के इस ‘नंगे फकीर’ से चर्चिल बड़े परेशान थे. गिरफ्तारी के बाद 73 साल की इस जरा-जजर्र काया ने आत्मशक्ति का आह्वान किया और आगा खान पैलेस (पूना) में आमरण अनशन पर बैठ गयी.

उधर लंदन में चर्चिल ने अपनी कैबिनेट से कहा- ‘आमरण-अनशन की घुड़की से डर कर गांधी को नहीं छोड़ा जाना चाहिए. अगर वह मर जाता है तो हमें एक बुरे आदमी और साम्राज्य के दुश्मन से छुटकारा मिलेगा.’ जो इच्छा चर्चिल को बेचैन कर रही थी, उसे अलग-अलग वजहों से पूरी करने की कोशिशें कई हुईं, लेकिन जिसकी कोशिश को कामयाबी मिली उसे गांधी के दोस्त और दुश्मन नाथूराम गोडसे के नाम से जानते हैं.

गोडसे ने अपनी तरफ से चाहा था कि उसके कृत्य को दुनिया हत्या नहीं, गांधी-वध के रूप में याद करे. और आज, जब गांधी नहीं हैं तब भी उनके लहू के तलबगार और खरीदार हैं, इस अंतर के साथ कि चर्चिल और गोडसे गांधी की मौत चाहते थे, जबकि गांधी के लहू के बेचनहार और खरीदार उसे संग्रहालयों या तिजोरियों में कैद करना चाहते हैं.

खबर कह रही है कि गांधी का लहू लंदन के नीलामीघर में बीते हफ्ते नीलामी पर चढ़ा और 7 हजार पौंड में बिक गया. नीलामीघर ने गांधी के खून के ये कतरे गांधी के किसी भक्त से जुटाये थे. 1924 में गांधीजी का मुंबई में अपेंडिक्स का ऑपरेशन हुआ था. खून की कुछ बूंदें एक स्लाइड पर रह गयी थीं और यही स्लाइड नीलामी पर चढ़ा. नीलामीघर को गांधी के खून के कतरों से और ज्यादा कमाई की उम्मीद थी.

उसने खून लगी स्लाइड की न्यूनतम कीमत 10 हजार पौंड लगायी थी, पर खरीदनेवाले ने 7 हजार पौंड ही देना कबूल किया. मुहावरे के भीतर सोचें तो कहा जा सकता है कि ब्रिटेन के इस नीलामीघर (मुलक्स) को गांधी के खून का चस्का लग गया है. बीते साल इसी नीलामीघर ने गांधीजी के खून को पहली बार बेचा था. यह खून गांधी की हत्या के वक्त का था.

बिरला-भवन के खुले प्रांगण में गोडसे ने गांधी की जजर्र काया पर गोली चलायी, तो खून की कुछ बूंदे मिट्टी पर गिरी थीं. नीलामी में खून सनी उसी मिट्टी को चढ़ाया गया था और कीमत लगी थी 81 लाख रुपये. इसे एक भारतीय ने खरीदा था, बीबीसी की खबर के मुताबिक खरीददारी इस उम्मीद से हुई कि गांधीजी के देहावशेष भारत सरकार को लौटा दिये जायेंगे.

गांधी जीवन का हर प्रसंग अद्भुत है, तो इसी अर्थ में कि जब आप उसे नाम देने की कोशिश करते हैं तो दो विपरीत अर्थवाले शब्द गांधी-कथा से बाहर निकल कर आपके आजू-बाजू आ बैठते हैं. लोग गांधी को महात्मा कहते थे, लेकिन साम्राज्य बचाने को आतुर चर्चिल को लगा-‘यह बुरा आदमी है.’

गांधी अपने को ‘सनातनी हिंदू’ कहते थे, पर गोडसे को लगा कि यह आदमी हिंदुओं की राजशक्ति को कमजोर करने में लगा है. और इस बार, गांधी नहीं हैं फिर भी उनके लहू का मोल डॉलर और पौंड में लगानेवाले हैं और बढ़ रहे हैं, तो अर्थो का ऐसा विरोधाभास फिर से उठ खड़ा हुआ है.

मुलक्स को उम्मीद थी कि पिछली बार की तरह इस बार भी भारत सरकार कोशिश करेगी, क्योंकि वह गांधी के देहावशेषों पर अपना मालिकाना हक मानती है. सिर्फ गांधी-साहित्य के जानकारों को लग रहा है कि गांधी के देहावशेष पर मालिकाना हक किसी का नहीं, वह जहां और जिस रूप में मिले, ‘उसे नीलाम करने के बजाय समुद्र में विसजिर्त कर दिया जाना चाहिए’.

गांधी के जीवन-प्रसंग से जुड़ी चीजें जब भी नीलामी पर चढ़ती हैं- गांधीपंथ के कुछ अनुयायी मांग करते हैं कि भारत सरकार हस्तक्षेप करे और उन चीजों को ले आये. इस बार तो नहीं, लेकिन बीते सालों में कई दफे ऐसा हुआ है. पिछले साल इस प्रसंग में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को खत लिख कर अनुरोध किया गया कि गांधी की चीजें भारत की हैं, उन्हें हर हाल में भारत के संग्रहालय में होना चाहिए, इसलिए सरकार इसमें दखल दे.

साल 2009 के मार्च में भी कुछ ऐसा ही हुआ था. तब जेम्स ऑटिस नामक संग्रहकर्ता ने न्यूयार्क के एंटीकोरम अक्शनियर्स को गांधी की घड़ी, चश्मा और थाली नीलामी पर चढ़ाने के लिए दी. बड़ी हाय-तौबा मची. बात कोर्ट-कचहरी तक जा पहुंची. दिल्ली हाइकोर्ट में शिकायत की गयी कि गांधीजी की जिस घड़ी और चश्मे को अमेरिका में नीलामी पर चढ़ाया जा रहा है, उसे गैरकानूनी तरीके से हासिल किया है.

अदालत ने शिकायती के तर्क तो जायज माना और इसी आधार पर तब पर्यटन व संस्कृति मंत्रलय का जिम्मा संभाल रही अंबिका सोनी ने कहा कि गांधी की इन चीजों को देश में लाने के लिए जो भी जरूरी होगा, किया जायेगा. उस समय उद्योगपति विजय माल्या ने इन वस्तुओं को 18 लाख डॉलर में खरीदा था. भारत सरकार ने दावा किया कि चीजें उसी ने खरीदी हैं, बस माध्यम माल्या को बनाया गया.

जब मान लिया जाये कि गांधी के जीवन से जुड़ी चीजों में बिकने के गुण हैं, तो उसके खरीदार होंगे ही. फिर कोई फर्क नहीं पड़ता कि इन चीजों को खरीद कर किसी धन्नासेठ की तिजोरी में रखा जा रहा है या भारत सरीखे किसी राष्ट्रराज्य के संग्रहालय में. गांधी-कथा का अर्थ-बाहुल्य और इस बाहुल्य के भीतर बैठा विरोधाभास गांधी-जीवन से जुड़ी चीजों को बिकाऊ सामान में तब्दील करता है.

जो लोग गांधी को महात्मा के रूप में याद करना चाहते हैं, वे अपने महात्मा की एक-एक चीज हासिल करना चाहते हैं, यह मान कर कि जो पावनता गांधी ने कमायी उसका एक टुकड़ा मेरे पास भी रहे. दरअसल, मुलक्स ने इसी भावना को पौंड में भुनाया. उसने घोषणा की कि गांधी-भक्तों के लिए इन चीजों का वही महत्व है, जो किसी धर्मपरायण ईसाई के लिए ईसा के देहावशेषों का.

जो गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में देखने के हामी हैं, उनके पास भारत के राष्ट्र बनने की आधिकारिक कथा है और गांधी इसके आधिकारिक चरितनायक. ऐसे राष्ट्रभक्त गांधी से जुड़ी चीजों को राष्ट्रराज्य के संग्रहालयों में सजाना चाहते हैं. दोनों को ही लगता है कि गांधी के देहावशेष बेशकीमती सामान हैं, जिनकी रक्षा मानो खुद गांधी-भाव और गांधी-विचार की रक्षा करना हो.

ऐसी कामनाओं के साथ दिक्कत बस एक ही है- ये कामनाएं गांधीजी की कामना से मेल नहीं खातीं, क्योंकि गांधी का जीवन वस्तुओं के संग्रह का नहीं, वस्तुओं के त्याग का जीवन था. वे मानते थे कि जो चीज करोड़ों लोगों के पास नहीं हो सकती, उसे रखने का हक मुङो नहीं है. यह वक्त गांधी के सामानों को अपनी तिजोरियों या राष्ट्र के संग्रहालयों में सजाने को आतुर लोगों को वे पंक्तियां याद दिलाने का भी है, जिन्हें गांधी ने ‘यंग इंडिया’ में 30 अप्रैल, 1925 को लिखा था-दुनिया देखे कि मैं अपनी कंगाली पर हंसता हूं. मेरे लिए यह कंगाली ही कमाई है.

मैं चाहूंगा कि लोग मुझसे ज्यादा बड़ा संतोषी होकर दिखाएं. यही सबसे बड़ी दौलत मेरे पास है. शायद यह कहना ठीक है कि मैं गरीबी के उपदेश देता हूं, जबकि मैं एक धनी आदमी हूं!
।। चंदन श्रीवास्तव ।।
एसोसिएट फेलो, सीएसडीएस

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें