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300वां वनडे खेलकर एलिट क्लब में शामिल होंगे युवराज सिंह

बर्मिंघम : टीम इंडिया चैंपियंस ट्रॉफी के दूसरे समीफाइनल मुकाबले में कल बांग्‍लादेश के आमने-सामने होगी. लेकिन इस बीच युवराज सिंह इतिहास रचने की तहलीज पर खड़े हो गये हैं. गुरुवार को युवी जैसे ही मैदान पर उतरेंगे उनके वनडे क्रिकेट कैरियर में एक और सितारा जड़ जाएगा. दरअसल युवराज सिंह गुरुवार को अपना 300वां […]

बर्मिंघम : टीम इंडिया चैंपियंस ट्रॉफी के दूसरे समीफाइनल मुकाबले में कल बांग्‍लादेश के आमने-सामने होगी. लेकिन इस बीच युवराज सिंह इतिहास रचने की तहलीज पर खड़े हो गये हैं. गुरुवार को युवी जैसे ही मैदान पर उतरेंगे उनके वनडे क्रिकेट कैरियर में एक और सितारा जड़ जाएगा. दरअसल युवराज सिंह गुरुवार को अपना 300वां वनडे मैच खेलेंगे.

युवराज सिंह ने बीते 17 बरस में मैदान के भीतर और बाहर कई उतार चढ़ाव झेले लेकिन हार नहीं मानी और अब 300वां वनडे मैच खेलने की दहलीज पर खड़े हैं. युवराज को कुछ लफ्जों में बयां करना काफी कठिन है. वह मोहम्मद अजहरुद्दीन, सचिन तेंडुलकर, सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ के बाद 300 वनडे खेलने वाले पांचवें भारतीय क्रिकेटर होंगे. अपने कैरियर में वह केवल 40 टेस्ट खेल सके जो उनकी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं है.
सीमित ओवरों में भारत के महानतम मैच विनर में से हैं युवराज और यह सूची ज्यादा लंबी नहीं है. वनडे में मैच विनर्स की बात करने पर उनके अलावा कपिल देव, तेंडुलकर और महेंद्र सिंह धौनी के नाम ही जेहन में आते हैं. एक युवराज वह है जो 18 बरस की उम्र में ग्लेन मैकग्रा, ब्रेट ली और जासन गिलेस्पी जैसे गेंदबाजों से भी खौफ नहीं खाता. फिर वह युवराज जिसने क्रिकेट के मक्का लाडर्स पर नेटवेस्ट फाइनल में मैच जिताने वाली पारी खेली. उस समय 2002 में 325 रन का लक्ष्य हासिल करना लगभग असंभव हुआ करता था.
इसी युवराज ने सिडनी में ली, गिलेस्पी और एंडी बिकल जैसे गेंदबाजों के सामने 139 रन की पारी खेली. एक वह युवराज भी है जो कभी टेस्ट क्रिकेट में अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं कर सका. कुछ लोग कहते हैं कि वह पांच दिनी क्रिकेट वाले तेवर ही नहीं रखता था तो कुछ का कहना है कि सौरव गांगुली का पांचवें नंबर पर कब्जा होने के कारण उसे अधिक मौके नहीं मिले. उस समय गांगुली टेस्ट क्रिकेट में बेहतर खिलाड़ी थे.
कई मौकों पर युवराज ने अपनी प्रतिभा की झलक इस प्रारुप में भी दिखाई लेकिन सीमित ओवरों वाले तेवर नहीं दिखा सके. वह टेस्ट टीम में अपनी जगह पक्की नहीं कर पाये. सीमित ओवरों के क्रिकेट में भारतीय टीम के लिये उनका योगदान अतुलनीय है. वह दो विश्व कप में खिताबी जीत के नायक रहे. टी-20 विश्व कप 2007 में स्टुअर्ट ब्राड की गेंद पर छह गेंद में लगाये छह छक्के कौन भूल सकता है. आइपीएल में वह उस तरह का प्रदर्शन नहीं कर सके लेकिन जब तक टी-20 क्रिकेट है, युवराज की गिनती इस प्रारूप के लीजैंडस में होगी.
इसके बाद 2011 विश्व कप आया जिसमें लोगों को फाइनल में धौनी का जडा छक्का याद होगा लेकिन भारत की खिताबी जीत का सेहरा युवराज के सिर ही बंधेगा जिसने 15 विकेट लेने के साथ 300 रन बनाये.यह वही दौर था जब कैंसर के शुरुआती लक्षण नजर आने लगे थे. युवराज को खून की उल्टियां हो रही थी, वह खा नहीं पा रहे थे और उन्हें पता भी नहीं था कि उनके शरीर में क्या हो रहा है.
कप्तान विराट कोहली ने सही कहा, वह प्रेरणास्रोत है. मैदान के भीतर और बाहर चैंपियन और इसीलिये उनके प्रति सम्मान उपजता है. कैंसर के खिलाफ जंग उनके जीवन की सबसे बड़ी जंग थी. ऐसे में कोई भी इसी से खुश हो जाता कि उसकी जान बच गयी लेकिन युवराज फिर से खेलना चाहता था. उसने वापसी की लेकिन हर कामयाबी के बाद नाकामी आती है. श्रीलंका के खिलाफ 2014 टी-20 विश्व कप के फाइनल में 21 गेंद में 11 रन बनाने वाले युवराज पर हार का ठीकरा फूटा.
आलोचकों ने उनका बोरिया बिस्तर बांध दिया और किसी ने नहीं सोचा था कि वह 33 साल की उम्र में वापसी करेंगे. उन्होंने टी-20 टीम में वापसी की और रणजी क्रिकेट खेला. इसके जरिये वनडे टीम में फिर जगह बनायी.
अब वह दस साल पहले वाले युवराज की तरह नहीं खेल सकते लेकिन मैदान में उनकी उपस्थिती महसूस होगी. उनमें प्रतिभा थी तभी उन्होंने वापसी की और चैंपियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान के खिलाफ पहले मैच में मैन ऑफ द मैच रहे. दुनिया में कई क्रिकेटर हुए और आगे भी होंगे लेकिन युवराज सिंह जैसे बिरले ही होते हैं.

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