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अटल के पिच पर 25 साल बाद पीएम मोदी की एंट्री, कितना कुछ बदला संघ दफ्तर, जानें

PM Modi in RSS office: 25 साल के लंबे अंतराल के बाद कोई पीएम संघ के दफ्तर पहुंचा है. पीएम मोदी से पहले साल 2000 में अटल विहारी वाजपेयी आरएसएस दफ्तर पहुंचे थे.

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PM Modi in RSS office: 25 साल के अंतराल के बाद आरएसएस के कार्यालय में भारत के दूसरे प्रधानमंत्री आज पहुंचे थे. अटल विहारी वाजपेयी सबसे पहले 27 अगस्त 2000 को संघ कार्यालय पहुंचे थे. ये संघ का 75 वां स्थापना दिवस था. अब ठीक 25 वर्ष बाद पीएम मोदी नागपुर के संघ दफ्तर गए.

आरएसएस के पदाधिकारियों से भी मुलाकात पीएम मोदी ने की

पीएम मोदी ने स्मारक स्थित स्मृति भवन में आरएसएस के पदाधिकारियों से भी मुलाकात की और उनके साथ तस्वीरें खिंचवाईं. मोदी ने स्मृति मंदिर में एक संदेश पुस्तिका पर लिखा कि ये स्मारक भारतीय संस्कृति, राष्ट्रवाद और संगठन के मूल्यों को समर्पित हैं. प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में लिखा, ‘‘आरएसएस के दो मजबूत स्तंभों का स्मारक उन लाखों स्वयंसेवकों के लिए प्रेरणा है जिन्होंने राष्ट्र की सेवा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मैं स्मृति मंदिर में आकर अभिभूत हूं. यह स्थल परम पूज्य डॉ. हेडगेवार और पूज्य गुरुजी की यादों को संजोए हुए है.’’

25 साल बाद बतौर पीएम पहुंचे कोई आरएसएस दफ्तर

आरएसएस और बीजेपी के रिश्ते संगठात्मक रूप से गहरा है. बीजेपी के हर बड़े फैसले में आरएसएस का सुझाव लेती है. 10 मार्च 2000 को के एस सुदर्शन संघ के प्रमुख बने. देश में पीएम की कुर्सी पर वो कभी स्वयंसेवक रहा हो. अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने में स्वदेशी जागरण मंच, विहिप जैसे संगठनों से जु़ड़े हैं.

यह सच है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बीच कुछ समानताएँ नजर आती हैं, खासकर संघ के साथ उनके रिश्तों को लेकर. अटल जी ने वर्ष 2000 में अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान संघ के मुख्यालय का दौरा किया था, जिसका उद्देश्य दोनों पक्षों के बीच एकजुटता का संदेश देना था. यह घटना उस समय काफी महत्वपूर्ण मानी गई थी क्योंकि उस दौर में संघ और भाजपा के रिश्तों पर बहुत चर्चाएँ होती थीं, और अटल जी का यह कदम इस दिशा में एक सकारात्मक संदेश था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस संदर्भ में अटल जी के रास्ते पर चलने के प्रतीक के रूप में नजर आते हैं. मोदी ने भी नागपुर में संघ मुख्यालय का दौरा किया, जिससे यह संदेश गया कि भाजपा और संघ के रिश्ते मजबूत हैं और प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी भी संघ के विचारों और कार्यों से जुड़े हुए हैं. यह एक तरह से वाजपेयी के कदम की पुनरावृत्ति ही मानी जा सकती है, क्योंकि दोनों प्रधानमंत्रियों के तीन कार्यकाल हैं और दोनों ने संघ के साथ अपने रिश्तों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है.

यह ‘संयोग’ प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी तीसरा कार्यकाल वाजपेयी की तरह है, और दोनों ने संघ के साथ एक मजबूत संबंध बनाए रखने की दिशा में कदम उठाए हैं. इस तरह के कदमों से न केवल संघ और भाजपा के बीच के रिश्तों को मजबूती मिलती है, बल्कि यह प्रधानमंत्री मोदी की राजनीतिक यात्रा को भी एक ऐतिहासिक संदर्भ में जोड़ता है.

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