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इस दिव्यांग केरलमैन ने तीन साल में पठार तोड़कर बना दिया सड़क, पढ़ें कैसे!

तिरुअनंतपुरम : बिहार के माउंटेन मैन दशरथ मांझी ने दुनिया भर में ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया कि उनकी राह पर चलकर देश के लोग नयी ऊंचाई छू रहे हैं. ऐसा ही एक कीर्तिमान स्थापित करने का काम केरल में कर दिखाया है आंशिक रूप से लकवाग्रस्त शशि जी ने. दक्षिण भारत में केरलमैन के नाम […]

तिरुअनंतपुरम : बिहार के माउंटेन मैन दशरथ मांझी ने दुनिया भर में ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया कि उनकी राह पर चलकर देश के लोग नयी ऊंचाई छू रहे हैं. ऐसा ही एक कीर्तिमान स्थापित करने का काम केरल में कर दिखाया है आंशिक रूप से लकवाग्रस्त शशि जी ने. दक्षिण भारत में केरलमैन के नाम से पहचान बनाने वाले शशि जी अपने घर के बाहर सड़क बनाने के लिए बीते तीन साल से लगातार पठार को तोड़ने का काम कर रहे हैं.

हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी इंडिया के खबर के अनुसार, केरल निवासी 58 वर्षीय शशि जी तिरुअनंतपुरम में नारियल तोड़ने का काम करते थे. नारियल तोड़ने के दौरान एक दिन वे पेड़ से गिर गये. इसके बाद वे हमेशा बिस्तर पर पड़े ही रहते थे. इसी दौरान उन्हें लकवा भी मार दिया. किसी तरह उपचार के बाद वह बिस्तर से उठ खड़े तो हुए, लेकिन उनके दायीं बांह और पांव में लकवे का असर बना ही रह गया.

ऐसे हुआ सड़क बनाने का धुन सवार

हालांकि, चलने में दिक्कत होने के बाद उन्होंने अपने यहां के ग्राम पंचायत से तिपहिया दिलवाने की गुहार लगाई. इसी दौरान उन्हें किसी ने याद दिलायी, जिस ग्रामीण इलाके में उनका घर है, उस क्षेत्र में कोई सड़क नहीं है. उनके गांव तक लोगों को पगडंडी से होकर गुजरना पड़ता है. अब इसके लिए उनके दिलो-दिमाग में एक ही धुन सवार हो गया कि गांव में सड़क बनवानी है. इसके लिए उन्होंने ग्राम पंचायत में अर्जियां लगानी शुरू कर दी. उनके द्वारा दी गयी अर्जियों पर लोग मजाक भी उड़ाते थे.

ग्राम पंचायत ने न तिपहिया दिया और न ही सड़क बनवायी

शशि जी बताते हैं कि चलने-फिरने के लिए तपहिया की अर्जी पर पंचायत ने उनसे कहा कि उन्हें वाहन देने का कोई तुक ही नहीं बनता है, क्योंकि वे आंशिक तौर पर लकवे से ग्रस्त थे. पंचायत के लोगों ने उनके गांव में सड़क बनवाने का आश्वासन तो दिया, लेकिन आज तक सड़क नहीं बन सकी. इसके बाद शशि जी ने सड़क बनाने के लिए खुद ही पठार की खुदाई करनी शुरू कर दिया. तब से उन्होंने खुदाई जो शुरू की, तो फिर दोबारा पंचायत के दरवाजे तक झांकने के लिए भी नहीं गये.

कुदाल से पहाड़ी को तोड़ने में बितता है समय

उनके गांव के लोग बताते हैं कि शशि धुन के इतने पक्के हैं कि वह रोजानना छह-छह घंटे तक अपनी कुदाली लेकर उस पठार को तोड़ने में जुटा रहता, जिस पर चढ़कर लोगों को जाना पड़ता था. उसकी इस अविश्वसनीय इच्छाशक्ति का परिणाम यह रहा कि अब वहां 200 मीटर की एक कच्ची सड़क बन गयी है. यह सड़क इतनी चौड़ी है कि छोटे वाहन आराम से वहां से गुजर सकते हैं.

फिजियोथिरेपी के लिए करते रहे पहाड़ की खुदाई

केरलमैन शशि बताते हैं कि पठारी पहाड़ को सड़क बनाने के लिए मैंने खोदना शुरू किया, तो बस मैं उसे खोदता ही गया. लोगों ने सोचा कि मैं यह नहीं कर पाऊंगा, लेकिन मैंने सोचा कि अगर मैं खोदता रहूंगा, तो न केवल सड़क बन जायेगी, बल्कि मेरी फिजियोथिरेपी भी हो जायेगी. शशि कहते हैं कि अगर ग्राम पंचायत मुझे कोई वाहन नहीं भी देती है, तो कोई बात नहीं. कम से कम इतना तो हो ही जायेगा कि लोगों के आने-जाने के लिए हमारे पास सड़क हो जायेगी. रूंआसे स्वर में शशि कहते हैं कि बस, अब इस सड़क का काम करीब एक महीने में खत्म हो जायेगा, लेकिन मुझे दुख रहेगा कि पंचायत ने अभी तक मुझे मेरा तिपहिया नहीं दिया.

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