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क्या नरेंद्र मोदी की नोटबंदी से कमजोर हुआ देश का विपक्ष?

आठ नवंबर की शाम को जब प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा की, देश के अर्थ और राजनीतिक जगत में भूचाल आ गया. देर रात तक लोगों ने एटीएम के आगे लंबी-लंबी कतारें लगाना शुरू कर दिया. सरकार के इस चौंकाने वाले फैसले से देश की राजनीतिक दलों को यह समझ में नहीं आया कि वो […]

आठ नवंबर की शाम को जब प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा की, देश के अर्थ और राजनीतिक जगत में भूचाल आ गया. देर रात तक लोगों ने एटीएम के आगे लंबी-लंबी कतारें लगाना शुरू कर दिया. सरकार के इस चौंकाने वाले फैसले से देश की राजनीतिक दलों को यह समझ में नहीं आया कि वो इस अप्रत्याशित कदम पर किस तरह प्रतिक्रिया दे. आरंभ में कांग्रेस पार्टी चुप रही, केजरीवाल ने अपने पत्ते नहीं खोले. आमतौर पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल घटनाओं पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं, लेकिन उन्होंने भी चुप्पी साधे रखी. ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री के इस फैसले का तुरंत विरोध किया. अरविंद केजरीवाल को ममता के रुख से साहस मिला. उन्होंने भी मोदी के विरोध में ममता बनर्जी के साथ सुर मिलाया. अरविंद केजरीवाल ने विरोध की शुरुआत ममता बनर्जी के ट्विट को रिट्वीट कर किया.

नोटबंदी के बाद के केजरीवाल

लोकपाल आंदोलन के वक्त अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार की लड़ाई के प्रतीक बन चुके थे. दिल्ली में सत्ता मिलने के बादशुरुआतके कुछ महीनों में वे जनता को भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि वो शासन व्यवस्था में भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेंगे, लेकिन कुछ महीनों बाद उन्होंने परंपरागत राजनीति का रुख अपना लिया.

केजरीवाल ने अपनी लडा़ई का केंद्रबिंदु भ्रष्टाचार से शिफ्ट कर मोदी विरोध को बना दिया. यह एक घाघ राजनीतिक कदम था. अरविंद केजरीवाल जानते थे कि वो कांग्रेस की द्वारा खाली की गयी विपक्ष का स्पेस ले सकते हैं. उन्होंने गोवा, गुजरात और पंजाब में आक्रमक प्रचार अभियान शुरू कर दिया. विपक्ष की कमी को उन्होंने अपनी सक्रियता से भरने की कोशिश की. काफी हद तक कामयाब भी रहे, लेकिन इसकी बड़ी कीमत उन्हें चुकानी पड़ी. आम आदमी पार्टी की छवि तेजी से देश के अन्य परंपरागत राजनीतिक पार्टियों जैसी होने लगी.

अब जब नरेंद्र मोदी ने सरकार में रहते हुए विमुद्रीकरण का साहसिक फैसला ले लिया, तो यह भाजपा के लिए भी आसानराजनीतिक फैसलानहीं था.यह चौंकाने वाला फैसला इसलिए भी है क्योंकि भाजपा को व्यापारी वर्ग का समर्थन प्राप्त है. जनता के दिमाग में केंद्र सरकार की छवि कारोबारी लोगों के समर्थन की बन चुकी थी. आमतौर पर जो पार्टी सत्ता में नहीं रहती है, उनके पास सरकार की आलोचना करने का विकल्प रहता है लेकिन एक बार सत्ता में आ जाने के बाद जनता उनसे ठोस कार्रवाई की उम्मीद करती है. यहां सारे तर्क फेल हो जाते हैं, कम से कम कुछ दिनों के लिए ही सही मोदी ने इस फैसले से जनत के गुस्से को कम करने में कामयाबी हासिल कर ली है.इस फैसले के आने वाले महीनों या सालों में जब अच्छे नतीजे आयेंगे तो उससे मध्यम वर्ग व निम्न मध्यम वर्ग में मोदी का समर्थन बढ़ेगा, क्योंकि इस वर्ग की यह मजबूत धारणा है कि भ्रष्टाचार व कालाधन के कारण उनकी जिंदगी में दुश्वारियां हैं.

वैश्विक जगत और राजनीतिक घटनाक्रम

भारत ही नहीं दुनिया में राजनीति का केंद्रबिन्दु अर्थतंत्र बनता जा रहा है. समाजिक भेदभावों को काफी हद तक आंदोलनों से पाटा जा चुका है लेकिन आर्थिक भेदभावों से आम जनता को सामान्य जीवन-यापन के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है. दुनिया भर में ब्रेक्जिट से लेकर ट्रंप के चुनावी जीत ने साबित कर दिया है कि रोजी-रोजगार का मुद्दा ही प्रासंगिक है. आदर्शवादिता का दौर समाप्त होकर कड़े व जनता को राहत दिलाने वाले फैसले ही जनता को लुभाते हैं.

ब्राजील में भारी जनादेश से आयी सरकार कुछ ही सालों में बदनाम होने लगी क्योंकि भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा था. ब्राजील की मंहगाई दर दो अंकों तक पहुंच चुकी थी. जनता के निराशा ने सड़कों में प्रदर्शन के दौर को जन्म दिया. दरअसल भ्रष्टाचार और महंगाई जुड़वां भाई के रूप में काम करते हैं. जब देश में मजबूत समानांतर अर्थव्यवस्था कालेधन से संचालित हो तो हालत सरकार के लिए बेकाबू हो जाती है.

ब्राजील की तरह ही एक अन्य लैटिन अमेरिकन देश वेनेजुएला की आर्थिकी बदहाल हो गयी. वेनेजुएला में तेल की कीमतों में हुई गिरावट से पैदा सकंट को खत्म करने के लिए सरकार ने ज्यादा करेंसी छपवाये. लोगों के पास ज्यादा करेंसी आने से देश की जनता के पास क्रय शक्ति बढ़ गयी. देखते ही देखते मुद्रास्फीति असमान छूने लगा. आयात की कमी से वेनेजुएला में बड़े पैमाने पर ब्लैक मार्केटिंग का कारोबर ने पांव पसारना शुरू कर दिया. ज्ञात हो कि वेनेजुएला शुरुआत से ही अमेरिकी विरोधी रवैया अपनाता रहा. मीडिया में छपी रिपोर्टों के मुताबिक वेनेजुएला के इस संकट को अमेरिका ने वेनेजुएला में ब्लैक मार्केटिंग को बढ़ावा देकरबढ़ाया.

कहते हैं दूसरों के खराब अनुभव अपने लिए अच्छी सीख हो सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की समानांतर कालाधन की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने का साहसिक फैसला लिया है. इससे मुद्रास्फीति रुकेगी, अर्थव्यवस्था में वास्तविक व ईमानदार धन का प्रवाह बढ़ेगा, जिसका उपयोग देश के विकास में होगा.

दिलचस्प बात यह कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस सबसे बड़ी मुहिम को सबसे मुखर समर्थन उनके सबसे प्रखर राजनीतिक विरोध जदयू अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिल रहा है. नीतीश ने एक कदम आगे बढ़ते हुए मोदी सरकार से बेनामी संपत्ति जब्त करने की भी अपील की, जिस पर अब सरकार कदम बढ़ाने भी जा रही है. नीतीश कुमार अन्य कई देशहित व राष्ट्रीय मुद्दों पर नरेंद्र मोदी का समर्थन कर चुके हैं. चाहे वह जीएसटी हो या सर्जिकल स्ट्राइक. और, यह भी एक रोचक तथ्य है कि ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषक मौजूदा दौर में नीतीश कुमार को ही नरेंद्र मोदी का सबसे बेहतर व मजबूत राजनीतिक विकल्प मानते हैं.

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