नयी दिल्ली: जदयू ने अपनी सहयोगी रही भाजपा या कांग्रेस के साथ किसी तरह के गठजोड़ की संभावना को खारिज करते हुए आज विश्वास जताया कि अंतर्निहित विरोधाभासों के बावजूद लोकसभा चुनावों के बाद तीसरा मोर्चा उभरेगा और पार्टी उसका अहम हिस्सा रहेगी.जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने दिये साक्षात्कार में स्वीकार किया कि कुछ अंतर्निहित विरोधाभास हैं जो सभी गैर-कांग्रेसी और गैर-भाजपाई दलों को एक मंच पर लाने में बाधा पैदा करते हैं. उन्होंने पहले भी इस तरह के गठबंधनों की सरकार बनने का उदाहरण दिया.
यादव ने कहा कि जदयू, सपा और जेडीएस जहां पहले ही बात कर चुके हैं वहीं अन्य दलों से बातचीत जारी है. उन्होंने अन्नाद्रमुक, बीजद और एजीपी समेत 17 पार्टियों के सांप्रदायिकता के खिलाफ एक सम्मेलन के लिए वाम दलों की ओर से की गयी पहल का भी उदाहरण दिया जिनमें से अधिकतर के साथ भाजपा गठबंधनों की संभावना तलाश रही है.यादव ने कहा, ‘‘राज्यों में कुछ अंतर्निहित विरोधाभास हैं. वाम दल और ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में एक साथ नहीं रह सकते, उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा
या तमिलनाडु में द्रमुक और अन्नाद्रमुक साथ में नहीं रह सकते. लेकिन पिछले 65 साल का अनुभव दिखाता है कि आंतरिक मतभेदों के बावजूद महत्वपूर्ण मुद्दों पर व्यापक सहमति है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने जब महंगाई जैसे मुद्दों पर भारत बंद का आयोजन किया था तब भी ये दल साथ आये थे. हम एक रास्ता खोजने का प्रयास कर रहे हैं और जदयू, सपा तथा जनता दल सेकुलर साथ में आये हैं. और भी पार्टी आएंगी. हम कोशिश कर रहे हैं और हमें विश्वास है कि यह होगा.’’
यादव ने कहा, ‘‘संभावनाओं को खारिज नहीं किया जा सकता. पहले भी ऐसा हुआ है. भविष्य में भी हो सकता है. मुझे विश्वास है कि भविष्य में ऐसा होगा. लोग आंतरिक मतभेदों के बावजूद साथ आते हैं.’’ उन्होंने कहा कि जदयू का मानना है कि मौजूदा परिदृश्य में गैर-कांग्रेसी और गैर-भाजपाई दलों का गठजोड़ समय की जरुरत है.
यादव ने कहा, ‘‘कुछ विरोधाभास हैं लेकिन हमने 1977 में (जनता पार्टी की सरकार), 1989 में (वीपी सिंह नीत राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार) और 1996 में (एचडी देवगौड़ा तथा आई के गुजराल की तीसरे मोर्च की सरकारें) सरकार बनाईं.
उन्होंने कहा, ‘‘इन सरकारों के जारी रहने में दिक्कतें आईं लेकिन हमने अच्छा काम किया.’’ जदयू ने भाजपा में नरेंद्र मोदी का कद बढ़ने के विरोध में पार्टी से 17 साल पुराने रिश्ते को तोड़ दिया था. भाजपा पर ‘विपक्षी एकता को तोड़ने’ का आरोप लगाते हुए यादव ने इस अटकलबाजी को पुरजोर तरीके से खारिज कर दिया कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा के साथ फिर से हाथ मिला सकती है.
उन्होंने कहा, ‘‘अब मूलभूत सिद्धांतों पर रास्ते अलग होने के बाद उनके साथ हाथ मिलाने का प्रश्न ही नहीं उठता. ऐसी बातें अफवाहें हैं और इनमें वाकई कोई आधार नहीं है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘देश में भाजपा और कांग्रेस को छोड़कर एक बड़ी राजनीतिक शक्ति मौजूद है. इस पर सामाजिक बहस की जरुरत है. गैर-भाजपाई विपक्ष कमजोर नहीं है. अगर देश को सही दिशा में रखना है तो तीसरे मोर्चे की जरुरत है.’’
यादव ने कहा कि भाजपा जहां समाज को बांटने में भरोसा रखती है वहीं कांग्रेस के शासन में एक के बाद एक भ्रष्टाचार के घोटाले सामने आये. उन्होंने कहा, ‘‘दोनों ही देश के हित में नहीं हैं और जनता इसे देखेगी. इसलिए तीसरा मोर्चा हमेशा प्रासंगिक बना हुआ है.’’ यादव ने कहा कि 30 अक्तूबर के बहुदलीय सम्मेलन के बाद भाजपा ने एजीपी, अन्नाद्रमुक, बीजद और जेवीएम (पी) के बारे में बात करना बंद कर दिया है.
सम्मेलन में उन दलों के नेताओं को देखा गया था जो पहले भाजपा नीत राजग सरकार का हिस्सा रह चुके हैं और जिन्हें भाजपा 2014 के बाद संभावित सहयोगी के तौर पर देख रही है. इनमें एम थांबिदुरई (अन्नाद्रमुक), बाबूलाल मरांडी (जेवीएम-पी) और बैजयंत पांडा (बीजद) हैं. सम्मेलन में राकांपा नेता डी पी त्रिपाठी ने भी शिरकत की थी.