नयी दिल्ली : लोकसभा की करीब 30 प्रतिशत सीटों के सोशल मीडिया से प्रभावित होने की रिपोर्ट पर विभिन्न राजनीतिक दलों ने इस माध्यम की ताकत को स्वीकार किया लेकिन साथ ही कहा कि लोगों से सीधे सम्पर्क जैसे परंपरागत चलन चुनाव प्रचार का कारगर तरीका है.भाजपा उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, ‘‘पार्टी चुनाव प्रचार के परंपरागत तरीके पर ही ज्यादा जोर देगी.
इसमें कोई बदलाव नहीं आयेगा. सोशल मीडिया से युवा काफी संख्या में जुड़े हैं और इस वर्ग तक हम सूचना एवं सम्पर्क के रुप में इंटरनेट, फेसबुक, ट्विटर आदि को आगे बढ़ा रहे हैं. लेकिन यह सूचना एवं संचार सुविधा का तरीका होगा. हम परंपरागत तरीके से ही चुनाव प्रचार के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं.’’ सोशल मीडिया पर अभियान को गति देने और लोगों तक पहुंचने के प्रयास के तहत भाजपा ने ‘मिशन 272 प्लस’ के तहत 60 स्वयंसेवकों की एक टीम बनायी है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राजद के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा, ‘‘सोशल मीडिया शहरी या देहाती क्षेत्र का विषय नहीं है. इसकी अधिक चर्चा अन्ना हजारे के आंदोलन के साथ शुरु हुई जो जन लोकपाल और भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान था और सरकार की ओर से इस आंदोलन से गलत तरीके से निपटा गया. इसी आंदोलन से जुड़े लोगों ने एक पार्टी बनायी और दिल्ली में उसका अच्छा प्रदर्शन रहा.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, सोशल मीडिया के प्रभाव की बात करने वाले भ्रम में हैं, अगर ऐसा ही होता तो मुम्बई में भी आंदोलन सफल होता. सोशल मीडिया का प्रभाव सीमित है.’’ एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अगले आम चुनाव में सोशल मीडिया लोकसभा की 160 सीटों को प्रभावित कर सकता है जो निचले सदन की कुल सीटों का करीब 30 प्रतिशत है.
जदयू के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने दावा किया, ‘‘बिहार में कोई ऐसी सीट नहीं है जहां सोशल मीडिया का प्रभाव हो. चुनाव प्रचार के लिए सोशल मीडिया प्रभावी माध्यम हो ही नहीं सकता. अगर कोई सोचता है कि सोशल मीडिया के माध्यम से चुनाव जीत लेगा, तो वह गलतफहमी में है.’’उन्होंने कहा, ‘‘चुनाव प्रचार के पारंपरिक साधन ही लोगों से सीधा सम्पर्क के सबसे कारगर माध्यम हैं. दिल्ली में हाल में हुआ चुनाव भी इसका उदाहरण है. सीधा सम्पर्क लोगों को अधिक प्रभावित करता है क्योंकि इसके जरिये लोग उम्मीदवारों से सीधे जुड़ पाते हैं.’’ समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह ने कहा कि हाल के समय में चुनावी परिदृश्य बदला है और काफी संख्या में युवाओं के सोशल मीडिया से जुड़े होने के कारण इसका प्रभाव है. लेकिन पारंपरिक तरीके अभी भी कारगर है. लोगों से सीधा सम्पर्क आज भी प्रभावी है.
गौरतलब है कि अध्ययन में कहा गया है कि अगले आम चुनाव में लोकसभा की 543 सीटों में से 160 अहम सीटों पर सोशल मीडिया का प्रभाव रहने की संभावना है. इनमें से महाराष्ट्र से सबसे अधिक प्रभाव वाली 21 सीट और गुजरात से 17 सीट शामिल है.’’ उत्तरप्रदेश में ऐसी सीटों की संख्या 14, कर्नाटक में 12, तमिलनाडु में 12, आंध्र प्रदेश में 11 और केरल में 10 है.अध्ययन के अनुसार, मध्यप्रदेश में ऐसी सीटों की संख्या 9 जबकि दिल्ली में सात है. हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में ऐसी सीटों की संख्या पांच.पांच है जबकि छत्तीसगढ, बिहार, जम्मू कश्मीर, झारखंड और पश्चिम बंगाल में ऐसी चार.चार सीटें हैं. अध्ययन के अनुसार 67 सीटें सोशल मीडिया के अत्यधिक प्रभाव वाली हैं जबकि शेष की कम प्रभाव वाली सीटों के रुप में पहचान की गई है.