नयी दिल्ली : पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं राजद सांसद रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) अफगानिस्तान के संग्रहालय में रखे गए महात्मा बुद्ध के भिक्षापात्र की प्रामाणिकता संबंधी साक्ष्य से संतुष्ट हुआ है और इसे देश में लाने पर आगे कार्रवाई के लिये पहल की जाएगी. सिंह ने कहा, लोकसभा में मैंने इस विषय को कई बार उठाया है कि अफगानिस्तान से महात्मा बुद्ध के भिक्षापात्र को वापस लाकर वैशाली में रखने की व्यवस्था की जाए.
वैशाली के सांसद ने कहा कि इस विषय पर सोमवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकारियों के साथ उनकी ओर से पेश किये गए सभी साक्ष्यों के आलोक में बैठक हुई. उन्होंने दावा किया कि एएसआई के अधिकारियों ने साक्ष्यों की प्रामाणिकता को पुख्ता पाया और इस विषय पर विदेश मंत्रालय को जवाब भेजने और चर्चा करने का आश्वासन दिया. एएसआई ने इस विषय पर मंत्रालय के साथ संयुक्त दल गठित करने की बात कही ताकि आगे की कार्रवाई की जा सके.
उन्होंने कहा कि पूर्व विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने लिखित जवाब में कहा था कि अफगानिस्तान में भारतीय उच्चायोग ने बताया है कि भिक्षापात्र अब कंधार में नहीं बल्कि काबुल के संग्रहालय में रखा हुआ है ,जिसे अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति नजीबुल्ला के समय में लाया गया था.
सिंह ने कहा कि इस भिक्षापात्र के उद्गम का पता लगाने का काम एएसआई को सौंपा गया है. हालांकि संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि जब तक पुरातत्विक साक्ष्य के साथ प्रमाणित नहीं हो, इसके बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है. वैशाली के सांसद ने कहा कि फाह्यान, ह्वेनसांग, कनिंघम, रोमिला थापर जैसे विद्वानों के लेखों एवं पुस्तकों में महात्मा बुद्ध के भिक्षापात्र का उल्लेख है.
उन्होंने कहा कि महात्मा बुद्ध के भिक्षापात्र के बारे में इतिहासकार श्रीधर वासुदेव साहनी ने भी वर्णन किया है. रघुवंश प्रसाद सिंह ने कहा कि एएसआई के प्रकाशन रिपोर्ट आन टुअर ऑफ नार्थ एंड साउथ बिहार, एएसआई प्रकाशन (1880-81) वाल्यूम 16 में कनिंघम ने भिक्षापात्र का उल्लेख किया है और कहा है कि वह अफगानिस्तान में है.
उन्होंने दावा किया कि पाकिस्तान के पेशावर विश्वविद्यालय के फैजुल्ला सेहरी, थाइलैंड और श्रीलंका के विश्वविद्यालयों के लेखों एवं प्रकाशनों में भी महात्मा बुद्ध के भिक्षापात्र का जिक्र हैं. फाह्यान की पुस्तक ह्यट्रेवेल आफ फाह्यान में भी इसका जिक्र है.
सिंह ने कहा, हम सरकार से आग्रह करते हैं कि इस विषय पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए ताकि इस ऐतिहासिक धरोहर को भारत लाया जा सके. संस्कृति मंत्री चंद्रेश कुमारी कटोच ने हाल ही में रघुवंश प्रसाद सिंह के एक प्रश्न के उत्तर में कहा था कि भिक्षापात्र इस समय काबुल के संग्रहालय में है. भारतीय दूतावास ने इस भिक्षापात्र का छायाचित्र भेजा है.
उन्होंने कहा कि भिक्षापात्र पर उत्कीर्ण अभिलेख की जांच का काम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पुरालेख शाखा नागपुर द्वारा किया गया और पाया गया कि ये अभिलेख फारसी लिपि में लगभग 16वीं शताब्दी के हैं.