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लापता लोगों की पत्नियां कर सकती हैं पुनर्विवाह

श्रीनगर: कश्मीर घाटी में प्रमुख मुस्लिम विद्वानों के एक समूह ने कहा है कि दो दशक के आतंकवाद के दौरान लापता हुए लोगों की पत्नियां पुनर्विवाह कर सकती हैं अगर उनके पतियों का चार साल से कोई पता नहीं है. मानवाधिकार समूहों ने इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि इससे कश्मीर में 1500 […]

श्रीनगर: कश्मीर घाटी में प्रमुख मुस्लिम विद्वानों के एक समूह ने कहा है कि दो दशक के आतंकवाद के दौरान लापता हुए लोगों की पत्नियां पुनर्विवाह कर सकती हैं अगर उनके पतियों का चार साल से कोई पता नहीं है.

मानवाधिकार समूहों ने इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि इससे कश्मीर में 1500 से ज्यादा ऐसी महिलाओं को राहत मिलेगी जिनके पति पिछले दो दशक के दौरान कथित तौर पर लापता हो गए. पुनर्विवाह और उत्तराधिकार जैसे मुद्दों पर स्पष्टता नहीं होने के कारण ऐसी कई महिलाएं मुसीबत का सामना कर रही हैं.सिविल सोसाइटी समूह एहसास द्वारा कल यहां आयोजित एक कार्यक्रम में विभिन्न विद्वानों ने ऐसी महिलाओं के पुनर्विवाह के मुद्दे पर फैसला किया.

अंजुमन.ए.नुसरतूल इस्लाम के मोहम्मद सईद.उर.रहमान शमस ने कहा कि इस संबंध में एक धार्मिक आदेश का एक विस्तृत ‘फतवा’ शीघ्र ही जारी किया जाएगा. उन्होंने कहा कि पति के चार साल तक लापता रहने पर महिला के पुनर्विवाह के संबंध में इस्लामी शिक्षाओं के आलोक में उलेमाओं के बीच इस मुद्दे पर आम सहमति बनी.बैठक में शामिल हुए शमस ने कहा कि इस मुद्दे पर गहन विचार विमर्श हुआ और फिर इस नतीजे पर पहुंचे कि ऐसी महिलाएं जिनके पति चार साल से गायब हैं, अगर वे पुनर्विवाह करना चाहती हैं तो ऐसा कर सकती हैं.उन्होंने कहा कि उलेमाओं ने यह भी कहा कि ऐसी महिलाओं के संबंध में संपत्ति का मुद्दा इस्लामी कानून के तहत हल होना चाहिए.

यह फैसला काफी महत्व रखता है क्योंकि स्थानीय इस्लामी विद्वानों में ऐसी महिलाओं के पुनर्विवाह और संपत्ति अधिकार को लेकर एक राय नहीं थी.राज्य सरकार ने उस आदेश के तहत स्क्रीनिंग समिति गठित की है जिसमें कहा गया है कि पति के सात साल तक लापता होने के बाद उनकी पत्नी को अनुग्रह राशि राहत मिल सकती है.जम्मू कश्मीर कोलिशन आफ सिविल सोसाइटी और एसोसिएशन आफ पैरेंट्स आफ डिसएपियर्ड पर्सन्स ने इस फैसले की सराहना की है.

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