लखनऊ : अतीत की गोद में समाते वर्ष 2013 में उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर दंगों की टीस रह रह कर उभरती रही तो डौंड़िया खेडा में हजार टन सोने की खोज के लिए ‘विफल’ खुदाई समाचार की सुर्खियों में बनी रही. इलाहाबाद में आयोजित सदी के विशालतम महाकुंभ मेले के दौरान रेलवे स्टेशन पर मची भगदड में हुई मौतों के बावजूद करोडों लोगों द्वारा कुंभ स्नान किया गया. प्रतापगढ जिले में पुलिस उपाधीक्षक जियाउल हक की हत्या ने राज्य सरकार के मंत्री को इस्तीफा देने के लिये मजबूर किया.
वर्ष 2013 की शुरुआत 144 वर्षो में एक बार पड़ने वाले अति शुभ ग्रह -गोचर संयोग में महाकुंभ के भव्य आयोजन से हुई. इलाहाबाद के प्रयाग में 14 जनवरी से 10 मार्च तक चले विश्व के इस सदी के सबसे बडे मेले में लगभग 10 करोड़ श्रद्वालुओं ने गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी में डुबकी लगा कर पुण्य कमाया.
महाकुंभ के भव्य और व्यवस्थित आयोजन के लिए अखिलेश सरकार की प्रशंसा के स्वर गूंज ही रहे थे कि 10 फरवरी को सबसे बडे स्नान पर्व मौनी अमावस्या के दिन इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ ने रंग फीका कर दिया. उस दर्दनाक हादसे में कम से कम 36 श्रद्वालुओं की मौत हो गयी और सैकड़ों घायल हुए थे.
अखिलेश सरकार महाकुंभ के भव्य आयोजन के लिए अपनी पीठ थपथपा ही रही थी और विपक्षी दल इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ को लेकर शासन प्रशासन पर हमलावर थे कि दो मार्च को प्रतापगढ़ की कुण्डा तहसील के बलीपुर गांव में पुलिस उपाधीक्षक जियाउल हक समेत तीन लोगों की हत्या ने सपा सरकार के सुशासन के दावे पर सवाल खडे कर दिये.
बलीपुर गांव में प्रधान नन्हे यादव की हत्या से उत्तेजित भीड को काबू करने पहुंचे कुंडा के पुलिस उपाधीक्षक हक की किसी ने गोली मार कर हत्या कर दी. इस मौके पर नन्हे के भाई सुरेश यादव की भी गोली लगने से मौत हो गयी.
हक की पत्नी परवीन आजाद ने अपने पति की हत्या के लिए कुंडा के विवादास्पद विधायक और अखिलेश सरकार में खाद्य एवं रसद मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को जिम्मेदार ठहराया. उनके खिलाफ नामजद प्राथमिकी करायी गयी जिसके बाद राजा भैया को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. बहरहाल, सीबीआई जांच में निदरेष करार दिये जाने के कुछ महीने बाद राजा भैया को मंत्री पद वापस मिल गया.
पड़ोसी राज्य उत्तराखण्ड में मई में आयी भयंकर प्राकृतिक आपदा की आंच उत्तर प्रदेश पर भी पड़ी. केदारनाथ समेत कई इलाकों में आयी आपदा में उत्तर प्रदेश के कम से कम नौ लोगों की मौत हो गयी तथा 1141 लोग लापता हो गये. उन्हें भी मृत ही माना जा रहा है.
कानून एवं व्यवस्था के मोर्चे पर अखिलेश सरकार साल भर विपक्षी दलों के निशाने पर रही. मार्च से 31 अक्तूबर के बीच ही प्रदेश के विभिन्न भागों में सांप्रदायिक तनाव की घटनाओं की बात तो सरकार ने स्वयं कबूल की ्र मगर सितम्बर महीने की सात तारीख को मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया.
मुजफ्फरनगर दंगों में कम से कम 54 लोग मारे गये. ऐसे हालात बने कि नियंत्रण के लिए सेना की मदद लेनी पड़ी. हजारों लोग अपने घर -गांव छोड़कर राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हुए और बढ़ती ठंड में खस्ताहाल तंबुओं को छोड़कर वापसी की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं ्र बावजूद इसके कि कई बच्चे और बुजुर्ग मौसम की कथित मार से दम तोड़ चुके हैं. इन दंगों की टीस रह रह कर उभरती रही.
डेढ़ साल के कार्यकाल में चुनाव घोषणा पत्र में किये अधिकांश वादे पूरा करने का दावा करने वाली सपा सरकार ने लखनउ, फैजाबाद और वाराणसी की कचहरियों समेत विगत वर्षो में प्रदेश के विभिन्न भागों में हुई आतंकी वारदात में आरोपित ‘निदरेष’ मुस्लिम युवकों पर लगे मुकदमे वापस लेने की दिशा में भी पहल की.भाजपा ने सरकार की इस पहल को लेकर तुष्टिकरण का आरोप लगाया.
उच्च न्यायालय में सरकार की इस पहल को चुनौती दी गयी और अदालत ने यह कहते हुए फिलहाल रोक लगा दी कि केंद्रीय कानूनों के तहत लगे मुकदमे वापस लेने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति जररी है. बहरहाल ्र अभी इस जनहित याचिका पर अदालत का अंतिम निर्णय आना है.
मुजफ्फरनगर दंगों में भाजपा ने सरकार पर पुलिस प्रशासन के काम में दखल का आरोप लगाया ्र भाजपा के दो विधायक संगीत सोम और सुरेश राणा सहित कई गिरफ्तार हुए. दोनों विधायकों पर सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून :रासुका: की तामील कर दी ्र मगर अदालत ने उसे हटा दिया. भाजपा और सपा ने इसे लेकर एक दूसरे पर, वहीं कांग्रेस एवं बसपा सहित अन्य दलों ने इन दोनों पर सांप्रदायिक आधार पर मतों के ध््राुवीकरण के लिए सांठगांठ के आरोप लगाये.
कभी खुशी कभी गम देने वाली घटनाओं से भरपूर इस वर्ष में सबसे ज्यादा चर्चा डौंडियाखेडा गांव में शहीद राजा राव रामबक्श के खंडहर पडे किले में ‘हजार टन’ सोना दबे होने के सपने की रही. संत शोभन सरकार के सपने से प्रभावित केंद्रीय मंत्री चरणदास महंत की दिलचस्पी के बाद भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण :जीएसआई: ने मौके का सर्वेक्षण किया और जमीन में ‘कोई अचुम्बकीय धातु’ होने की रिपोर्ट दी.
इस पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई. )ने 18 अक्तूबर को किले में खुदाई का काम शुरु किया. कल तक अनजान गुमनाम सा गांव सुर्खियों में आ गया ्र वहां मेला लग गया और दुकानें सज गयीं.
सपने में दिखे सोने की खोज में शुरु हुई खुदाई पर मीडिया के सवाल संशय और कौतूहल भरी निगाहों के सामने संत शोभन सरकार के शिष्य स्वामी ओमजी के अति विश्वासी दावों के बीच खुदाई का काम जारी रहा मगर सोना तो दूर, उल्लेख करने लायक भी कोई चीज नहीं मिली. महीने भर बाद खुदाई बंद कर दी गयी और हजार टन सोना हासिल करने का सपना सिर्फ सपना बनकर रह गया.