नयी दिल्ली: राजनीतिक पार्टियों को चुनाव के लिए चंदा देने के बारे में खुलासे की बात हो तो भारतीय कंपनियों में काफी मतभेद है. कंपनी कानून में प्रस्तावित प्रावधानों पर उद्योग मंडलों की अलग.अलग राय है. विभिन्न वर्गों की ओर से और पारदर्शिता की मांग के मद्देनजर राजनीतिक दलों के लिए कारपोरेट फंडिंग का मामला […]
नयी दिल्ली: राजनीतिक पार्टियों को चुनाव के लिए चंदा देने के बारे में खुलासे की बात हो तो भारतीय कंपनियों में काफी मतभेद है. कंपनी कानून में प्रस्तावित प्रावधानों पर उद्योग मंडलों की अलग.अलग राय है.
विभिन्न वर्गों की ओर से और पारदर्शिता की मांग के मद्देनजर राजनीतिक दलों के लिए कारपोरेट फंडिंग का मामला काफी चर्चा में रहा है. उद्योग मंडल एसोचैम के महासचिव डी.एस. रावत ने कहा कि इसमें पारदर्शिता होनी चाहिए और कंपनियों को यह दर्शाना चाहिए कि राजनीतिक पार्टियों को कितना धन चंदे में दिया गया है और किन पार्टियों को दिया गया है.उन्होंने बताया, ‘‘हम कंपनी कानून में राजनीतिक दलों के लिए चंदे से संबंधित प्रावधानों का पूरी तरह से समर्थन करते हैं.’’ रावत ने कहा कि कंपनियां शेयरधारकों के प्रति जवाबदेह हैं और जब तक इस तरह की फंडिंग के बारे में खुलासा नहीं किया जाता, भ्रष्टाचार होने की आशंका बनी रहती है.
हालांकि, सीआईआई ने इस प्रावधान में बदलाव के लिए सरकार को ज्ञापन दिया है. सीआईआई ने इस संबंध में कंपनी मामलों के मंत्रालय को ज्ञापन दिया है जो कंपनी कानून को लागू कर रहा है.सीआईआई महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने इस मामले में भेजी गई प्रश्नावली का जवाब नहीं दिया.अन्य उद्योग मंडलों. फिक्की व पीएचडी ने भी प्रश्नावली का जवाब नहीं दिया. कंपनी कानून में दिया गया है कि राजनीतिक दलों को चंदे से संबंधित प्रावधानों का उल्लंघन करने वाली कंपनियों को कड़े दंड का सामना करना पड़ सकता है.