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उच्चतम न्यायालय ने कहा,किन्नर हमेशा ही ‘अछूत’ रहे हैं

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि किन्नर हमेशा ही ‘अछूत’ रहे हैं जिनकी शिक्षा जैसी अनेक सुविधाओं तक सीमित पहुंच रही है और उनके लिये काफी कुछ करने की जरुरत है.न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए के सीकरी की खंडपीठ ने किन्नरों को तीसरी श्रेणी के लिंग वाले नागरिक घोषित करने […]

नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि किन्नर हमेशा ही ‘अछूत’ रहे हैं जिनकी शिक्षा जैसी अनेक सुविधाओं तक सीमित पहुंच रही है और उनके लिये काफी कुछ करने की जरुरत है.न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए के सीकरी की खंडपीठ ने किन्नरों को तीसरी श्रेणी के लिंग वाले नागरिक घोषित करने के लिये दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘कुल मिलाकर, वे समाज में अछूत ही रहे हैं और सामान्यतया उन्हें स्कूलों और शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश भी नहीं मिलता है.’’ यह जनहित याचिका राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने दायर की है जो चाहता है कि किन्नरों को तीसरी श्रेणी के लिंग वाले नागरिक घोषित किया जाये ताकि उन्हें भी पुरुष और स्त्रियों की तरह ही समान अधिकार और संरक्षण मिल सके.

समाज के कमजोर वर्गो को मुफ्त कानूनी सहायता मुहैया कराने के लिये गठित राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन किया गया था और यह विवादों के समाधान के लिये लोक अदालतों का आयोजन करता है. प्राधिकरण की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने कहा कि किन्नरों को न्यायिक और सांविधानिक मान्यता दिये जाने से सरकार की उचित कार्यवाही करेगी. सरकार ने एक कार्यबल का गठन किया और यह उसके कार्य को आगे बढ़ाने में मददगार होगा.

उन्होंने कहा कि प्रत्येक मानव का यौन चरित्र होता है और लिंग के आधार पर किन्नरों के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि किन्नर ‘नागरिकों के सामाजिक और शैक्षणिक रुप से पिछड़ेवर्ग में आते हैं जिनके बारे में संविधान के अनुच्छेद 15 (4)में चर्चा की गयी है. राजू रामचंद्रन ने मंडल प्रकरण के न्यायालय के फैसले का हवाला दिया और कहा कि आरक्षण का लाभ किन्नरों को भी मिलना चाहिए. अपनी दलीलों के समर्थन में उन्होंने इस संबंध में ब्रिटेन, यूरोपीय संघ , अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में कानूनी स्थिति का भी हवाला दिया.इससे पहले, शीर्ष अदालत ने किन्नरों को तीसरे लिंग वाले नागरिक घोषित करने के लिये दायर जनहित याचिका पर केंद्र और राज्य सरकारों को अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करने के लिये कहा था.

न्यायालय ने इस याचिका पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय, शहरी और ग्रामीण विकास तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण को जनहित याचिका पर नोटिस जारी किये थे जिसमे आरोप लगाया गया था कि किन्नरों को अधिकांश मौलिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा है.याचिका में शैक्षणिक संस्थाओं और सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र की नौकरियों में इस वर्ग के लिये आरक्षण की व्यवस्था का अनुरोध किया गया है. याचिका में कहा गया है कि किन्नरों को बच्चों को गोद लेने, विवाह करने और समाज में कानूनी हैसियत प्रदान करने वाले अधिकारों को मान्यता देने की आवश्यकता है ताकि उन्हें वित्तीय मदद मिल सके.

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