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उत्तराखंड लोकायुक्त अधिनियम का भविष्य अधर में

देहरादून : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा उत्तराखंड लोकायुक्त अधिनियम को मंजूरी दे दिये जाने के बावजूद उसका भविष्य अधर में लटकता दिखायी दे रहा है. उत्तराखंड में पिछले वर्ष मुख्यमंत्री पद ग्रहण करने के बाद से ही लोकायुक्त अधिनियम के कई प्रावधानों पर अपनी आपत्ति जताते रहे, विजय बहुगुणा ने इस बात के साफ संकेत […]

देहरादून : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा उत्तराखंड लोकायुक्त अधिनियम को मंजूरी दे दिये जाने के बावजूद उसका भविष्य अधर में लटकता दिखायी दे रहा है. उत्तराखंड में पिछले वर्ष मुख्यमंत्री पद ग्रहण करने के बाद से ही लोकायुक्त अधिनियम के कई प्रावधानों पर अपनी आपत्ति जताते रहे, विजय बहुगुणा ने इस बात के साफ संकेत दिये हैं कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में पारित हुआ यह अधिनियम शायद ही अपने मूल रुप में लागू हो पाये.

बहुगुणा ने हांलांकि इसके बारे में अंतिम फैसला राज्य कैबिनेट की सात नवंबर की प्रस्तावित बैठक में होने की बात कही है लेकिन साथ ही यह भी कहा कि सरकार के पास इस संबंध में सभी विकल्प खुले हैं. उन्होंने कहा कि इस अधिनियम में संशोधन किया जा सकता है या उसे निरस्त कर नया विधेयक भी लाया जा सकता है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि इस अधिनियम में कई प्रावधान असंवैधानिक है जिन्हें लागू नहीं किया जा सकता. इस बाबत उन्होंने कहा कि निचली न्यायपालिका को लोकायुक्त के दायरे में लाना असंवैधानिक है. सरकार के इस रुख से सकते में आयी मुख्य विपक्षी भाजपा ने अधिनियम को उसी रुप में लागू करने पर जोर देते हुए प्रदेश की कांग्रेस सरकार को लोकायुक्त पर राष्ट्रपति से मंजूरी मिल जाने की बात जनता से छुपाने का दोषी ठहराया है और मामले की जांच की मांग की है.

गौरतलब है कि राष्ट्रपति ने इस विधेयक पर गत चार सितंबर को ही अपने हस्ताक्षर कर दिये थे और नौ सितंबर को यह उत्तराखंड के विधायी विभाग को मिल भी गया था. इस लोकायुक्त अधिनियम में सभी सरकारी और अर्ध सरकारी अधिकारियों तथा निचली न्यायपालिका के अलावा मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक और लोकसेवकों को भी लोकायुक्त के दायरे में रखा गया है.

भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिये लोकायुक्त को सरकारी नियंत्रण से मुक्त रखा गया है. भ्रष्ट व्यक्तियों को पद से बर्खास्त किये जाने या उन्हें पदावनत किये जाने जैसी लोकायुक्त की सिफारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी होंगी.

इस अधिनियम में भ्रष्टाचार के मामलों की जल्द जांच के लिये विशेष अदालतों के गठन का प्रावधान है जहां जांच पूरी होने के बाद मामला दायर किया जायेगा. जांच के लिये 12 महीने की समयावधि निश्चित की गयी है.

भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में दोषी पाये जाने पर छह माह से कम के सश्रम कारावास की सजा नहीं होगी जबकि यह अवधि 10 वर्ष की कैद तक हो सकती है. भ्रष्टाचार के दुर्लभ श्रेणी के मामलों में यह सजा उम्रकैद भी हो सकती है.

इस लोकायुक्त अधिनियम में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा का भी प्रावधान है और इस संबंध में लोकायुक्त को सरकारी तंत्र के अंदर या बाहर रहकर भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायतें देने और सबूत लाने वाले व्यक्तियों को प्रोत्साहित करने के लिये उचित इनाम योजना तैयार करने की भी शक्ति दी गयी है.

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