जयपुर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि किफायती प्रौद्योगिकी और पर्याप्त वित्त के अभाव में ग्रीनहाउस गैसों में कमी लाने का लक्ष्य एक मुश्किल सपना ही रहेगा. मोदी ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित होने वाले वैश्विक सम्मेलन से ठोस एवं प्रभावी परिणाम की भी वकालत की.
प्रधानमंत्री ने मौजूदा वास्तविकताओं की झलक दिखाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुधारों की भी जोरदार वकालत की और यह भी कहा कि इसकी शुरुआत इसी साल से होनी चाहिए. इस साल संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के 70 साल पूरे होने वाले हैं.
सामरिक तौर पर अहम प्रशांत क्षेत्र में स्थित 14 द्वीपीय देशों के एक शिखर सम्मेलन की मेजबानी करते हुए प्रधानमंत्री ने वैश्विक व्यवस्था में संतुलन की जरुरत बताते हुए इन संसाधन संपन्न देशों से करीबी सहयोग कायम करने पर जोर दिया. मोदी ने इस मौके पर इन देशों से सहयोग बढाने के लिए कई घोषणाएं की जिसमें आपदा प्रबंधन, महासागर शोध एवं शिक्षा शामिल हैं.
फोरम फॉर इंडिया पैसिफिक आइलैंड कंटरीज (एफआईपीआईसी) के दूसरे शिखर सम्मेलन में अपने उद्घाटन संबोधन में मोदी ने नई दिल्ली में फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्टरीज (फिक्की) में एफआईपीआईसी व्यापार कार्यालय की स्थापना की घोषणा की. उन्होंने कहा, सहायता से ज्यादा व्यापार विकास का वाहक है.
प्रधानमंत्री ने कहा, हम एक नए युग के एक सिरे पर हैं जहां अंतरिक्ष की तरह महासागर हमारी अर्थव्यवस्थाओं का अहम वाहक होगा. उनके सतत उपयोग से समृद्धि आ सकती है और यह हमें स्वच्छ उर्जा, नयी दवाएं और मत्स्यपालन से भी कहीं बढ़कर खाद्य सुरक्षा दे सकती है.
मोदी ने कहा, हमारी वैश्विक चुनौतियां एक जैसी हैं. जलवायु परिवर्तन प्रशांत के द्वीपों के लिए वजूद का खतरा है. भारत की 7500 किलोमीटर तटरेखा और इसके करीब 1300 द्वीपों के लिए भी यह नुकसानदेह साबित हो रहा है. इस साल के अंत में पेरिस में होने वाले जलवायु सम्मेलन की तरफ इशारा करते हुए मोदी ने कहा, हम दोनों एक ठोस एवं प्रभावी परिणाम चाहते हैं. उन्होंने कहा कि भारत ने 2022 तक 175 गीगावॉट अक्षय उर्जा की अतिरिक्त क्षमता का लक्ष्य तय किया है. उन्होंने कहा कि एक ठोस अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के जरिए ही राष्ट्रीय योजना सफल हो सकती है.