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राजीव गांधी हत्‍याकांड मामले में केंद्र सरकार का कड़ा रुख, हत्यारों के रिहाई का किया विरोध

नयी दिल्ली : केंद्र सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय में जोर देकर कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे किसी प्रकार की दया के पात्र नहीं हैं क्योंकि यह हत्याकांड ऐसी साजिश का नतीजा था जिसमें विदेशी नागरिकों की संलिप्तता थी. प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के […]

नयी दिल्ली : केंद्र सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय में जोर देकर कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारे किसी प्रकार की दया के पात्र नहीं हैं क्योंकि यह हत्याकांड ऐसी साजिश का नतीजा था जिसमें विदेशी नागरिकों की संलिप्तता थी.

प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष सालिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा, हमारे पूर्व प्रधानमंत्री की इन लोगों ने हत्या कर दी थी. उनकी हत्या की साजिश की गयी थी जिसमे विदेशी नागरिक भी शामिल थे. इनके प्रति किस तरह की दया या नरमी दिखाई जानी चाहिए? इस पर आपको (शीर्ष अदालत) गौर करना है.

सालिसीटर जनरल ने कहा, इनकी दया याचिका राष्ट्रपति और राज्यपाल (तमिलनाडु) ने भी अस्वीकार कर दी थी. फिर अब किस तरह की दया की दुहाई दी जा रही है. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष, न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति उदय यू ललित शामिल हैं. इन सात दोषियों में वी श्रीहरन उर्फ मुरुगन, संतन, राबर्ट पायस और जयकुमार श्रीलंका के नागरिक हैं जबकि दोषी महिला नलिनी, रविचन्द्रन और अरिवू भारतीय हैं.

संविधान पीठ इन सभी दोषियों की उम्र कैद की सजा माफ करने और उन्हें रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की याचिका की विचारणीयता पर सुनवाई कर रही है. मुरुगन का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने दया का मुद्दा उठाया और इस प्रक्रिया में उन्होंने न्यायिक कार्यवाही के इतिहास को खंगाला.

इससे पहले, न्यायालय ने संप्रग सरकार की याचिका पर इन सभी सात दोषियों की सजा माफ कर उन्हें रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले पर रोक लगा दी थी. न्यायालय ने सजा माफ करने के कार्यपालिका के अधिकार के दायरे पर संविधान पीठ के फैसले के लिये सात सवाल तैयार किये थे.

हालांकि जेठमलानी और तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने केंद्र की याचिका की विचारणीयता पर सवाल उठाते हुये कहा कि वह अनुच्छेद 32 के तहत याचिका का सहारा नहीं ले सकती क्योंकि इसका किसी भी मौलिक अधिकार के हनन से कोई संबंध नहीं है जिससे शासन प्रभावित हो. सुनवाई के दौरान तीखी बहस हुयी. इस पर न्यायालय ने कहा कि श्रीपेरंबदूर में 1991 में हुये हत्याकांड के पीडितों के दुख को सामने लाना केंद्र का कर्तव्य है.

संविधान पीठ ने टिप्पणी की, उच्चतम न्यायालय ने दोषियों की मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील किया था. पीडितों ने इसकी शिकायत नहीं की. परंतु यहां राज्य सरकार हमारे फैसले के साथ और छेड़छाड़ कर रही है. क्या केंद्र के माध्यम से सीबीआई संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका नहीं दायर कर सकती? आखिरकार, यह सीबीआई की ही जांच थी जिसकी वजह से उन्हें मौत की सजा मिली थी.

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