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फिर चीन चर्चा!

-हरिवंश- लिखना क्यों? आत्मसुख के लिए या सामाजिक सरोकार के लिए? इसकी उपयोगिता क्या है. सुना था कवि, उपन्यासकार या साहित्यकार, स्वांत: सुखाय रचना करते हैं. हालांकि इनके मूल में भी सामाजिक सरोकार हैं. सार्वजनिक सवाल हैं. जीवन के सवाल भी. पर, एक पत्रकार तो सीधे सामाजिक सवालों से बंधा है. देश-दुनिया के यक्ष प्रश्न […]

-हरिवंश-
लिखना क्यों? आत्मसुख के लिए या सामाजिक सरोकार के लिए? इसकी उपयोगिता क्या है. सुना था कवि, उपन्यासकार या साहित्यकार, स्वांत: सुखाय रचना करते हैं. हालांकि इनके मूल में भी सामाजिक सरोकार हैं. सार्वजनिक सवाल हैं. जीवन के सवाल भी. पर, एक पत्रकार तो सीधे सामाजिक सवालों से बंधा है. देश-दुनिया के यक्ष प्रश्न उसके होते हैं. उनसे संवाद ही उसका धर्म और कर्म है.
यह और ऐसे अनेक सवाल पिछले तीन सप्ताह में (जब तक यह कालम स्थगित रहा) मन में उठते रहे. वर्ष के अंत और वर्ष की शुरुआत के बीच. बीते का जश्न और आगत के स्वागत के शोरगुल के बीच.
इस मानसिक उधेड़बुन के बीच ही छोटी खबर मिली. चीन ने, भारत से चीन जानेवाले सैनिक प्रतिनिधिमंडल के एक अफसर को वीसा देने से इनकार कर दिया. कारण, उसका जन्म अरुणाचल प्रदेश में होना बताया गया. अरुणाचल प्रदेश को चीन अपना मानता है. भारत को अपमानित करने और घेरने का कोई मौका चीन, अब हाथ से जाने नहीं देना चाहता. ऐसी घटनाएं वर्ष 2010 से लगातार बढ़ रही हैं.
पर उत्सवों में डूबा यह देश, बीते वर्ष की विदाई और नये वर्ष के आगमन में खोया यह मुल्क, क्या चीन के इस बढ़ते उग्र और आतंक पैदा करने वाले व्यवहार को देख रहा है? चीन की इस कार्रवाई के बदले भारत अपने प्रतिनिधिमंडल की यात्रा रद्द कर सकता था. पर, भारत ने चीन जानेवाले अपने सैन्यदल (थल, जल और वायु) के 30 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की संख्या घटा कर 15 कर दी.
इसके पहले उत्तरी कमांड के लेफ्टिनेंट जनरल बीएस जसवाल को चीन ने वीसा नहीं दिया था. क्योंकि वह जम्मू और कश्मीर में सैन्य टुकड़ी के प्रधान थे. चीन, जम्मू और कश्मीर को भी विवादास्पद हिस्सा मानता है. चीन ने इस बात का भी लगातार विरोध किया है कि भारत सरकार के मंत्री अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर न जायें. भारत अरुणाचल के विकास के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक से ॠण ले रहा था, तो उसे रोकने की हर मुमकिन कोशिश चीन ने की. दिसंबर 2011 में अचानक चीन ने भारत-चीन सीमा की पंद्रहवीं वार्ता रद्द कर दी. क्योंकि भारत सरकार ने दलाई लामा को कोलकाता में आयोजित बौद्ध समारोह में शरीक होने से नहीं रोका?
क्या भारत की आंतरिक नीतियां चीन की इच्छानुसार बनेंगी? क्या चीन के अंदर समारोह भारत से पूछ कर होते हैं? कहां है, भारत का प्रतिवाद? 14 चक्र भारत-चीन सीमा के बारे में बगैर नतीजा बातचीत हो चुकी है. चीन, ल्हासा तक रेल लाइन बिछा चुका है. वह उसे आगे बढ़ा कर भारतीय सीमा के पास सिगास्ते तक ला रहा है. फिर काठमांडू तक इस रेल लाइन विस्तार की योजना है. भारत-चीन सीमा के किनारे-किनारे सड़क पहले ही बन चुकी है. कई आधुनिक हवाई अड्डे भी बने हैं. चीनी सेना की कई टुकड़ियां सीमा के पास कैंप बना कर रहने लगी हैं.
तिब्बत में चीन की 30-35 डिवीजन सेना रहने लगी है. बमुश्किल दो माह पहले चीन ने भारत को चेतावनी दी कि वियतनाम के साथ मिल कर तेल खोजने का काम न करें. भारत सरकार की कंपनी ओएनजीसी विदेश निगम का, 23 वर्ष पहले वियतनाम से यह करार हुआ था. इस घटना के तीन महीने बाद चीनी नौसेना ने भारतीय नौसेना के जहाज आइएनएस ऐरावत को धमकी दी. नौसेना का जहाज ऐरावत वियतनाम और हाइपौंग के बीच अंतरराष्ट्रीय समुद्र में विचरण कर रहा था.
चीनियों ने कहा, यह चीनी इलाका छोड़ दो. इस घटना के बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र द ग्लोबल टाइम्स ने भारत को धमकी दी कि इसका परिणाम भुगतना होगा. इसके पहले इस मुखपत्र ने धमकी दी थी कि चीन के सब्र का बांध टूट जायेगा. दूसरे अखबार पीपुल्स डेली ने कहा कि भारत के इस प्रोजेक्ट को विफल करने के लिए चीन को ठोस कार्रवाई करनी चाहिए. चीन के तीसरे अखबार द चाइना एनर्जी न्यूज ने कहा कि भारत आग से खेल रहा है. इसी बीच भारतीय व्यापारियों और भारतीय राजनयिक के साथ चीनी अधिकारियों की बदसलूकी की अपमानजनक घटना हुई.
लगातार भारत के खिलाफ चीन का उग्र आचरण क्या उद्देश्यविहीन है? चीन का आर्थिक विकास दहाई (दो अंकों) में है. वह बड़ी तेजी से अपनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का आधुनिकीकरण कर रहा है. उसका रक्षा बजट लगातार बढ़ रहा है. अस्त्र-शस्त्र और सेना का तेजी से आधुनिकीकरण वह कर रहा है. इस मुकाबले भारत का रक्षा मंत्रालय या रक्षा बजट या सैन्य आधुनिकीकरण, भ्रष्टाचार और लालफीताशाही में उलझे हैं. पाकिस्तान के साथ मिल कर चीन, भारत को घेर चुका है. रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी अनहोनी की स्थिति में दोनों मिल कर एक साथ भारत के खिलाफ उतर सकते हैं. चीन 38 हजार वर्ग मील से अधिक भारतीय जमीन पर कब्जा जमाये हुए है.
जम्मू और कश्मीर के एक बड़े भूभाग लद्दाख के अक्साई हिस्से में, पाकिस्तान ने, भारत की 5180 वर्ग किमी जमीन गैरकानूनी ढंग से 1963 में चीन को सौंप दी थी. अब चीन भारत के उत्तर पूर्व में 96000 वर्ग मील जमीन पर अपना दावा कर रहा है. इसे वह दक्षिण तिब्बत कहता है. हकीकत यह है कि खुद तिब्बत चीन के अनधिकृत कब्जे में है. तिब्बत स्वतंत्र देश है. चीन का हिस्सा नहीं. 1950 में ही सरदार पटेल ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री के नाम पत्र लिख कर चेताया था कि भारत को चीन से सचेत रहना चाहिए. वह तिब्बत पर कब्जा करेगा. पर तब किसी ने सुना नहीं.
आज भी चीन के खतरे को कौन भांप रहा है? चीन लगातार आणविक हथियारों से लैस हो रहा है. उसने तिब्बत में कम दूरी और अधिक दूरी की मार करनेवाली अनेक मिसाइलें तैनात कर रखी हैं. बड़ी संख्या में ताइवान की सीमा पर तैनात (पांच से छह सौ किमी दूरी की मार करने वाली) मिसाइलों को वह जब चाहे, ताइवान की सीमा से मोड़ कर भारत की सीमा की ओर तैनात कर सकता है. वह पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, वर्मा में अपनी मजबूत उपस्थिति बना चुका है. क्या चीन के इस प्रभाव और दूरगामी तैयारी के प्रति भारत में कोई सजगता है?
नहीं ! संसद में या संसद के बाहर सार्वजनिक एजेंडा में चीन का मुद्दा आप सुनते हैं? आत्मरत समाज-देश बन रहे हैं, हम ! क्यों यह या ऐसे अनेक आवश्यक या जलते सवाल हमारे समाज को बेचैन नहीं कर रहे ? क्या हम भूल रहे हैं कि यह देश बचेगा, तो हम प्रदेश या व्यक्ति (निजी तौर पर भी) या परिवार स्तर पर बचेंगे?
भोग और भ्रष्टाचार ने हमें एक छद्म दुनिया में पहुंचा दिया है. राजनीति, पैसा और रुतबा बनाने का माध्यम बन गयी है. घूस, कमीशन, भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार सार्वजनिक जीवन के हिस्से बन गये हैं. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की सूची में भ्रष्टाचार लोक सूचकांक (करप्शन परसेप्शन इंडेक्स) में भारत लगातार नीचे (और भ्रष्ट हो रहा है) खिसक रहा है. इस बार भारत 95 की सीढ़ी पर है. 2007 से 23 अंक नीचे फिसला है. यानी तीन वर्षों में और भ्रष्ट बन जाने की दिशा में हमने 23 अंक और जोड़ लिये हैं.
क्या इस बढ़ते भ्रष्टाचार ने हमें वास्ताविक दुनिया से दूर कर दिया है? वर्ष 2010 के अंत और 2011 के आरंभ में चीन-भारत से जुड़ी कई खबरें, जो बेचैन करनेवाली हैं, आयीं. पर मुल्क जश्न में डूबा रहा. हर शहर में शराब की खपत बढ़ी. रात में जगने, जश्न मनाने और पीकर डांस की होड़ लगी रही. क्या किसी ने इस धरती और मुल्क के लिए बेचैनी भरी रात गुजारी? यह सवाल हर एक को खुद से ही पूछना चाहिए.
हम भारतीय मानते रहे हैं कि देश बचाने की जिम्मेवारी नेताओं की है. कुछ परिवारों की भी. इतिहास से हमने सीख नहीं ली. इसलिए हम हजारों वर्ष गुलाम रहे. बाहरी हमलावर आये. बाबर से अंग्रेज तक. पर, सच यह है कि देश बचाने की जिम्मेवारी 120 करोड़ भारतीयों की है.
कोई विकल्प नहीं है, इसके सिवा कि हम अपने चरित्र, देश प्रेम, अंदरूनी ऊर्जा को एकत्र, समृद्ध और तेजवान बनायें कि यह देश आदर्श प्रेरित लोगों के सामूहिक संकल्प से महाशक्ति बने. हम अशोक के प्रताप से प्रेरित हों कि बड़ी ताकत बन कर एक नयी दुनिया बनायेंगे. हम इतिहास में हमलावर नहीं रहे हैं, यह हमारा सबल और धवल पक्ष है. आधुनिक दुनिया में भी महाशक्ति बन कर हम अमेरिका-चीन के विकल्प में इसी धवल पक्ष को समृद्ध करें, तो नया इतिहास बनेगा.
निजी कारणों से तीन सप्ताह यह स्तंभ स्थगित रहा. अनेक लोगों ने फोन-एसएमएस कर पूछा. उन सब पाठकों के प्रति कृतज्ञता के साथ.
दिनांक : 22.01.2012

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