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आखिर गृहमंत्री राजनाथ सिंह की चेतावनी के बाद भी क्यों दिख रहे हैं जम्मू कश्मीर में पाक के झंडे

नयी दिल्ली : भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू कश्मीर हमेशा से विवाद का मुद्दा रहा है. पाकिस्तान में अलगाववादियों ने भी इस मुद्दे को बढ़ाने और आग में घी डालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. पिछले कुछ दिनों से जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों की सभाओं में पाकिस्तान के झंडे लहराये गये. इतना ही […]

नयी दिल्ली : भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू कश्मीर हमेशा से विवाद का मुद्दा रहा है. पाकिस्तान में अलगाववादियों ने भी इस मुद्दे को बढ़ाने और आग में घी डालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. पिछले कुछ दिनों से जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों की सभाओं में पाकिस्तान के झंडे लहराये गये. इतना ही नही इन सभाओं में भारत विरोधी नारे भी लगाये गये.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशों में भारत की छवि सुधारने और विदेश की राजनीति में भारत की भूमिका को बेहतर करने में लगे हैं. मोदी कैबिनेट के मंत्री एक साल का ब्यौरा जनता के सामने मीडिया और चित्र प्रदर्शनी के माध्यम से रख रहे हैं, लेकिन जम्मू कश्मीर में बार- बार दिख रहे पाकिस्तान के झंडे पर सबने चुप्पी साध रखी है. जम्मू कश्मीर में भारतीय जनता पाटी के गंठबंधन की सरकार है. धारा 370 सहित कई मुद्दों से समझौता करके भाजपा ने जम्मू कश्मीर में पीडीपी के साथ गंठबंधन किया.

क्या पाक द्वारा पोषित अलगाववादी भड़का रहे हैं आम कश्मीरी को
जम्मू कश्मीर में कई समस्याएं है. नौजवान युवक बेरोजगारी जैसी गंभीर समस्या से जुझ रहे हैं. हाल में ही इसका उदाहरण देखने को मिला जब सेना ने जम्मू कश्मीर में भरती के लिए कैंप लगाया तो बहुत ज्यादा तादाद में कश्मीरी युवक यहां पहुंचे. संख्या इतनी बढ़ गयी की सेना और पुलिस मिलकर भीड़ पर नियंत्रण नहीं कर सकी और अंत में उन्हें लाठी चार्ज करना पड़ा. भारतीय जनता पार्टी को इन इलाकों में कम सीट मिलती थी, लेकिन इस बार नौजवानों ने नरेंद्र मोदी पर भरोसा जताया कि उन्हें बेरोजगारी जैसी समस्या से दूर किया जायेगा. नौजवानों की बेरोजगारी का फायदा भारत विरोधी अभियान चलाने के लिए उठाया जाता है. बेरोजगार नौजवानों को भड़का कर आतंक की गहरी खाई की ओर ढकेल दिया जाता है.
हाल में ही इसका सबुत देखने को मिला जब पाकिस्तान के झंडे के साथ लश्कर ए तैयबा के झंडे भी दिखाये गये. लश्कर के झंडे इसका सबूत है कि आतंक और अलगाववादियों के बीच एक पुल है जो भारत और जम्मू कश्मीर की अंखडता को तोड़ने में लगा है. मसरत आलम, सैयद शाह गिलानी, फारुख उमर, यासिन मलिक जैसे कई नाम है जो नौजवान कश्मीरी को गुमराह कर रहे हैं.
जम्मू कश्मीर में मुठभेड़ और शहीद जवान
भारतीय सेना को जम्मू कश्मीर में कई परिस्थितियों को सामना करना पड़ता है. जम्मू कश्मीर के अंदर शांति व्यवस्था कायम रखने और हिंसा को ना भड़कने देने की जिम्मेदारी सेना की है, आतंकियों के घुसपैठ को नाकाम करने और देश की सीमा में ना प्रवेश करने देने की जिम्मेदारी सेना की है. पाकिस्तान के सैनिकों द्वारा बार- बार संघर्ष विराम के उल्लंघन का जवाब देने की जिम्मेदारी सेना की है. शायद जम्मू कश्मीर ही एक ऐसी सीमा है जहां सबसे ज्यादा घुसपैठ और मुठभेड़ की घटनाएं होती है. इन हमलों में आतंकियों के अलावा सेना के जवान भी मारे जाते हैं. जम्मू कश्मीर में घुसपैठ की घटनाएं लगातार होती है.
गृहमंत्री राजनाथ सिंह की चेतावनी के बाद भी दिखे पाकिस्तान के झंडे
अलगाववादी नेता मसरत आलम को सभा में भारत विरोधी नारे लगाने और पाकिस्तान के झंडे लहराने के आऱोप में गिरफ्तार किया गया. इसके जरिये यह संदेश देने की कोशिश की गयी कि भारत विरोधी नारे और पाक के झंडों को जम्मू कश्मीर में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. लेकिन इसके बावजदू भी सभाओं में भारत विरोधी नारों को लगना बंद नहीं हुआ. पाकिस्तान के झंडे अलगाववादियों की सभाओं में आम हो गये. खुलकर पाकिस्तान के पक्ष में बातें की जाने लगी.
जम्मू कश्मीर का इतिहास भी है एक बड़ा कारण
1947 में जब भारत आजाद हुआ तो इसके साथ कई रियासतों ने भी खुद को आजाद घोषित कर दिया. हालांकि तात्कालिन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के सहयोग से अंखड भारत का निर्माण हुआ. जुनागढ़ और हैदराबाद जैसी रियासतों को एक करने से ज्यादा बड़ी चुनौती जम्मू कश्मीर को भारत के साथ जोड़े रखने की थी. इस समय का लाभ उठाते हुए मोहम्मद अली जिन्ना ने 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी सेना ने कबाइली लुटेरों के भेष में कश्मीर पर हमला कर दिया. इस हमले से भयभीत शासक हरिसंह ने भारत से मदद मांगी भारत ने विलय की शर्त रखी जिसे हरिसंह ने स्वीकार कर लिया.
उसके बाद भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों के शिकस्त देनी शुरू की अंत में 31 दिसंबर 1947 को जवाहर लाल नेहरू इस मुद्दे को यूएनओ में उठाया जिसके बाद 1 जनवरी 1949 को भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध-विराम की घोषणा कर दी गयी. 1949 के बाद 65-71 की लड़ाई में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर को कबजाने की पूरी कोशिश की लेकिन नाकाम रहा. अब पाकिस्तान भारत के अंदर अलगाववादी नेताओं के जरिये अपने हितों को साधने में लगा है.
आखिर क्यों पाकिस्तान के झंडो को लहराने से नहीं रोक पा रही केंद्र सरकार
अलगाववादियों को नजरबंद और गिरफ्तार करने के बावजदू भी केंद्र सरकार पाकिस्तान के झंडे को सभाओं में लहराने और नारेबाजी करने से नहीं रोक पा रही है. विशेषज्ञ इसका कई कारण बताते हैं एक तो राज्य सरकार में भाजपा की भूमिका भारतीय जनता पार्टी जम्मू कश्मीर के उन इलाकों में अपनी लोकप्रियता चाहती है जहां उसे इस बार कम वोट मिले और पीडीपी को ज्यादा वोट मिला. सरकार ऐसा माहौल तैयार करना चाहती है जिसमें कश्मीरियों से उनकी समस्या के विषय में बात की जा सके. इसका दूसरा पक्ष यह है कि भाजपा ने पीडीपी के साथ गंठबंधन करके अपने हाथ बांध लिये हैं.
पीडीपी इन्ही लोगों के दम पर आज सत्ता में है अगर इन पर सख्ती की गयी तो पीडीपी अपना हाथ पीछे खींच सकती है. जम्मू कश्मीर में इस तरह की गतिविधियों को समर्थन नेशनल कॉन्फ्रेस जैसी पार्टी कर रही है. एनसी के एडिशनल जनरल सेक्रेटरी और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के चाचा शेख मुस्तफा कमाल ने कहा, पाकिस्तान का झंडा फहराने में कुछ गलत नहीं है भारत को भी इसका सम्मान करना चाहिए. कुलमिलकार इस झंझे के पीछे चल रही राजनीति भी इन झंडों के पीछे एक बड़ा कारण है

Prabhat Khabar Digital Desk
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