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राही मासूम रजा : स्याह सचाइयों का अक्स था जिनके अल्फाज में

लखनउ : महाभारत जैसे अद्वितीय टेलीविजन धारावाहिक के संवाद लिखकर अपना अलग मुकाम बनाने वाले साहित्यकार राही मासूम रजा एक ऐसे शायर, लेखक और उपन्यासकार थे जिनके अल्फाज में हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव की हिफाजत के प्रति फिक्र झलकती है, वहीं समाज के अलग-अलग तबकों के आपसी कड़वे-मीठे रिश्तों का जीवन्त ताना-बाना भी नजर आता है. उत्तर […]

लखनउ : महाभारत जैसे अद्वितीय टेलीविजन धारावाहिक के संवाद लिखकर अपना अलग मुकाम बनाने वाले साहित्यकार राही मासूम रजा एक ऐसे शायर, लेखक और उपन्यासकार थे जिनके अल्फाज में हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव की हिफाजत के प्रति फिक्र झलकती है, वहीं समाज के अलग-अलग तबकों के आपसी कड़वे-मीठे रिश्तों का जीवन्त ताना-बाना भी नजर आता है.

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में एक सितम्बर 1927 को जन्मे राही मासूम रजा बेहद खुले दिमाग के लेखक थे और उन्होंने जो भी लिखा वह बहुत बेबाक लिखा.

प्रगतिशील जनवादी साहित्यकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने एक अदीब के तौर पर रजा के व्यक्तित्व के बारे में ‘भाषा’ को बताया कि रजा ने देश के विभाजन की पीड़ा को बहुत नजदीक से महसूस किया था और तकसीम के बाद हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव को लेकर उत्पन्न खतरा उनकी मूल चिंता थी और यह फिक्र उनके लेखन में बार-बार दिखायी देती थी.उन्होंने कहा कि आजादी और विभाजन के बाद हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव पर खतरे की समस्या बहुत बढ़ गयी थी। रजा ने दोनों समाजों को बहुत पैनी नजर से देखा और उन पर कलम चलायी.

बिस्मिल्लाह ने बताया कि रजा ने देश के विभाजन की त्रसदी और हिन्दुओं तथा मुसलमानों के आपसी रिश्तों पर पड़े उसके असर एवं भारतीय समाज के विभिन्न तबकों के बीच उत्पन्न टकराव का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है.उन्होंने बताया कि रजा की कलम ने साम्प्रदायिकता के साथ-साथ सामंतवाद पर भी कड़े प्रहार किये। उनकी रचनाएं ‘आधा गांव’ और ‘नीम का पेड़’ इसकी शानदार मिसाल हैं.

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