मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने एक अपील पर सुनवाई करते हुए 2008 में दरांती से अपनी भाई की हत्या करने के मामले में एक व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा देने के निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया है.
उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता हरिदास महाले को अपने भाई मोहन की हत्या के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग एक के तहत आपराधिक मानववध :हत्या के बराबर नहीं: का दोषी पाया और उसे आठ वर्ष कारावास की सजा सुनाई.
न्यायमूर्ति पी डी कोडे और न्यायमूर्ति विजय ताहिलरमानी ने मामले की चश्मदीद गवाह और मोहन की पत्नी लीला की गवाही को ध्यान में रखा.
लीला ने अदालत को बताया कि 30 अप्रैल 2006 को हरिदास, मोहन और उनका पिता भोजन करने के लिए घर आए. लीला जब रसोईघर में थी तो उसने सुना कि उसके पति मोहन ने हरिदास से कहा कि वह उसे उनकी संपत्ति में हिस्सा नहीं देगा.
इस बात से नाराज हरिदास दूसरे कमरे में गया और एक दरांती लेकर आया जिससे उसने मोहन के कान के पीछे वार किया. मोहन को अस्पताल ले जाया गया जहां उसकी मौत हो गई.
हरिदास के खिलाफ नासिक जिले के हरसुल पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई गई थी. नासिक सत्र अदालत ने 30 जुलाई 2008 को उसे भाई की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.