नयी दिल्ली : पुराणों और धर्मग्रंथों में वर्णित प्राचीन द्वारका नगरी और उसके समुद्र में समा जाने से जुड़े रहस्यों का पता लगाने का काम पिछले कई वर्ष से रुका पड़ा है, हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने ऐसी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए अगले दो साल में ‘अंडर वाटर आर्कियोलॉजी विंग’ को सुदृढ़ बनाने का निर्णय किया है.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक (धरोहर) ए के सिन्हा ने कहा, ‘‘पानी के भीतर खोज के काम के लिए बड़ी आधारभूत संरचना की जरुरत होती है. प्राचीन द्वारका नगरी की खोज जैसी परियोजना के लिए समुद्र में प्लेटफार्म और काफी संख्या में प्रशिक्षित गोताखोरों की जरुरत होती है जो गहराई में पानी में जा सकें.’’ उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण :एएसआई: में पानी के नीचे कार्य करने में सक्षम ऐसे आधारभूत संरचना और मानव संसाधन की कमी है. ‘‘साल दो साल में ‘अंडर वाटर आर्कियोलॉजी विंग’ को सुदृढ़ बनाया जायेगा ताकि ऐसी परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जा सके.’’
सिन्हा ने कहा कि एएसआई के अधिकारी रहे डा. एस आर राव ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओसेनोग्राफी के समुद्री पुरातत्व शाखा में काम करते हुए द्वारका, महाबलीपुरम नगरों से जुड़े रहस्यों पर काफी काम किया था. उनके नेतृत्व किये गए प्रयासों से प्राचीन द्वारका नगरी का पता लगाया गया और कुछ अवशेष एकत्र किये गए. हालांकि इसके बाद से काम रुका पड़ा है. गौरतलब है कि 2005 में नौसेना के सहयोग से प्रचीन द्वारका नगरी से जुड़े अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे छंटे पत्थर मिले और लगभग 200 नमूने एकत्र किये गए.
प्राचीन द्वारका नगरी के समुद्र में समा जाने के रहस्य के बारे में पूछे जाने पर सिन्हा ने कहा कि द्वारका नगरी का एक बड़ा हिस्सा समुद्र में डूब गया था लेकिन इसके कारण के बारे में प्रमाण के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता है. ‘‘हालांकि एक मान्यता यह है कि समुद्र का जलस्तर बढ़ने से यह प्रचीनतम नगरी डूब गई.’’ धरोहर विशेषज्ञ प्रो. आनंद वर्धन के अनुसार, महाभारत काल से अब तक पुराणों, धर्मग्रंथों एवं शोधकर्ताओं द्वारा किये गए अध्ययन में भगवान कृष्ण की द्वारका नगरी के प्रमाण मिले हैं.
उन्होंने कहा कि महाभारत में एक जगह पर ‘‘द्वारका समासाध्यम’’ वर्णित है. विष्णु पुराण में भी एक स्थान पर ‘कृष्णात दुर्गम करिष्यामि’ का जिक्र किया गया है. इसमें कहा गया है कि भगवान कृष्ण की मृत्यु के बाद द्वारका समुद्र में समा गई थी. बहरहाल, सिन्हा ने समुद्र के भीतर इस तरह की खोज के लिए विशेषज्ञता हेतु भारतीय नौसेना के साथ फ्रांस, स्पेन और आस्ट्रेलिया के अनुभव से सीखने की जरुरत बतायी.