नयी दिल्ली : कैलाश सत्यार्थी ने बुधवार को नोबेल पुरस्कार ग्रहण करने के दौरान कहा कि वह ‘खामोशी की आवाज’ और ‘बेकसूर की चीख पुकार’ का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. सत्यार्थी के एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन की ओर से जयपुर में संचालित बाल आश्रम के करीब 30 बच्चे नार्वे के दूतावास की हरी घास वाले लॉन में मौजूद थे जो शायद यह जाहिर करे रहे थे कि खामोशी और भोलापन समान रूप से हैं.
लेकिन जब उनके ‘भाईसाब’ को नोबेल पुरस्कार दिया गया, तब 13 वर्षीय अब्दुल से लेकर 20 साल के मन्नान तक ने तालियों की गडगडाहट के बीच ‘बाल श्रम मुर्दाबाद.. मुदार्बाद’ के नारे लगाए. अब्दुल ने बताया, ‘‘इस वक्त मैं क्या महसूस कर रहा हूं उसे बयां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं.’’ उसे एक झारखंड की एक खान से उस वक्त छुडाया गया था जब वह महज आठ साल का था.इससे पहले, एनजीओ ने दक्षिण दिल्ली के कालकाजी स्थित अपने कार्यालय में एक दिवसीय समारोह का आयोजन किया.
मलाला के गृह जिले में मनाया जा रहा है जश्न
पेशावर : नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित होने पर मलाला यूसुफजई के गृह नगर स्वात में लोगों ने जश्न मनाया. स्कूलों के छात्रों और इलाके के निवासियों ने मलाला की खुशियों में शामिल होने के लिए खपाल कोर हॉल में एक समारोह का आयोजन किया.
सभी ने मल्टीमीडिया प्रोजेक्टर और बडी टीवी स्क्रीन पर मलाला को नोबेल पुरस्कार लेते देखा और इस खुशी में मिठाईयां बांटी. समारोह में मौजूद लोगों ने खडे होकर इस 17 साल की मलाला को सलाम किया. इस वर्ष नोबेल शांति पुरस्कार पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई और भारत के कैलाश सत्यार्थी को संयुक्त रुप से दिया गया.
जिले में आयोजित इस समारोह को मलाला के शिक्षक फजल खालिक, उनके रिश्तेदार महमूदुल हसन और ग्लोबल पीस काउंसिल के अध्यक्ष अहमद शाह ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि मलाला को मिला पुरस्कार पूरे पख्तुन क्षेत्र के लिए गौरव की बात है और वे मलाला के संदेश को आगे ले जाएंगे. पेशावर में भी इसपर कार्यक्रम आयोजित किया गया और जश्न मनाया गया। वहां प्रेस क्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में ‘मलाला जिंदाबाद’ और ‘आतंकवादी मुर्दाबाद’ के नारे लगाए गए.