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एक वक्त खाकर जिंदगी के लिए दुआ करते रहे लोग

देहरादून : भूस्खलन और प्रलंयकारी बाढ़ से बचने के लिए होटल से सेना के शिविरों के बीच भागती दीक्षा के लिए इस पहाड़ी सुनामी से बच जाना किसी चमत्कार से कम नहीं था, जो चार दिन तक एक वक्त खाकर जिंदगी के लिए संघर्ष करती रही. तकरीबन 30 साल की दीक्षा ने इस अनुभव को […]

देहरादून : भूस्खलन और प्रलंयकारी बाढ़ से बचने के लिए होटल से सेना के शिविरों के बीच भागती दीक्षा के लिए इस पहाड़ी सुनामी से बच जाना किसी चमत्कार से कम नहीं था, जो चार दिन तक एक वक्त खाकर जिंदगी के लिए संघर्ष करती रही. तकरीबन 30 साल की दीक्षा ने इस अनुभव को खौफनाक करार देते हुए कहा कि उसके परिवार को उसकी खैर खबर अब तक नहीं मालूम. वह बताती हैं, ‘‘हमें चार दिन में सिर्फ एक वक्त खाना मिला. भूस्खलन हो रहा था..हम होटल से सेना के शिविरों की तरफ दौड़े. यह खौफनाक था, मेरे परिवार को पता तक नहीं था कि मैं कहां हूं.’’

मुंबई के रहने वाले स्वपन मजूमदार आध्यात्मिक संतोष के लिए धार्मिक यात्रा पर निकले थे, लेकिन उन्हें इस दौरान जो कुछ देखने को मिला उसे वह जीवनभर नहीं भूल पाएंगे. स्वपन कहते हैं, ‘‘मैं तीर्थ यात्रा करने के लिए मुंबई से आया था, लेकिन यहां गंगोत्री में फंस गया और मुझे नहीं पता कि मैं घर वापस कैसे जा पाउंगा.’’ एक अन्य व्यक्ति ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि उसने इस आपदा में अपने परिवार के सब सदस्य खो दिए हैं. उस व्यक्ति की बेबसी और पीड़ा हर सांत्वना से परे थी. वह फफक फफककर रो रहा था और देहरादून ले जाए जाने की गुहार लगा रहा था.

केदारनाथ इलाके से गुप्तकाशी लाए गए इस व्यक्ति ने बताया, ‘‘हमारा 400-500 व्यक्तियों का दल आया था, जिसमें से 150-200 लोगों की मौत हो चुकी है. मेरी पत्नी, बेटी और चार अन्य रिश्तेदार बह गए. कोई नहीं बचा. कोई मुझे देहरादून पहुंचने में मदद करो.’’ उन्होंने बताया कि बहुत से लोग अभी भी उंची पहाड़ियों में फंसे हैं. अपनी दुखद आपबीती सुनाते हुए अकसर उनका गला रुंध जाता है. उन्होंने बताया, ‘‘हादसे के बाद के एक दो दिन तक हेलीकाप्टर सीधे केदारनाथ चले जाते थे और रास्ते में फंसे लोगों को नहीं ले जा रहे थे. बाद में हमें बचाने के लिए हेलीकाप्टर आए.’’ हालांकि आधिकारिक तौर पर मरने वालों की तादाद 200 बताई जा रही है, लेकिन हादसे में जीवित बचे एक व्यक्ति का कहना था कि मरने वालों की तादाद अनुमान से बहुत ज्यादा है.

उत्तर प्रदेश की श्रद्धा तोमर भाग्यशाली थी कि प्रकृति के इस कहर में जीवित बच पाई, लेकिन वह वहां फंसे बाकी लोगों की खैरियत को लेकर फिक्रमंद है. तोमर कहती हैं, ‘‘मैं केदारनाथ से लौट आई. अभी बहुत से लोग वहां फंसे हैं. उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है. मैं नहीं जानती कि वह कब यहां पहुंच पाएंगे.’’सकुशल लौट आने के लिए भगवान का शुक्रिया अदा करने वाली निर्मला देवी वहां फंसे रह गए बाकी लोगों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं.

देवी बताती हैं, ‘‘हम अपने कमरों में फंसे हुए थे. हर तरफ अफरा तफरी का माहौल था, हमें लगा सब कुछ खत्म हो गया है, लेकिन ईश्वर की कृपा से हम वापस आने में कामयाब हुए, लेकिन हमें नहीं मालूम कि वहां फंसे रह गए बाकी लोग वापस लौट भी पाएंगे या नहीं.’’ चेन्नई के रहने वाले एन मेरीयप्पन का कहना था कि उन्होंने केदारनाथ में जो कुछ देखा उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. वह कहते हैं, ‘‘बहुत से लोग मर गए..मैं उस डरावने मंजर को शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता. मैंने तो बचने की तमाम उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन ईश्वर की दया से मैं बच गया.’’

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