मुंबईः शिवसेना और भाजपा गंठबंधन टूटने का कारण भाजपा ने छोटी पार्टियों की अनदेखी को बताया था. कई छोटी पार्टियां शिवसेना के सीट बंटवारे के फॉर्मूले से नाराज थी. भाजपा छोटी पार्टियों को साथ लेकर चलना चाहती थी, इसलिए उसने 25 सालों से चला आ रहा गंठबंधन तोड़ दिया. भाजपा ने जिन छोटी पार्टियों को आधार बनाकर गंठबंधन तोड़ा, अब वही छोटी पार्टियां शिवसेना और भाजपा दोनों के साथ डील करने में लगी है.
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पासवान जैसा करिश्मा महाराष्ट्र की राजनीति में कर पायेंगे अठावले ?
मुंबईः शिवसेना और भाजपा गंठबंधन टूटने का कारण भाजपा ने छोटी पार्टियों की अनदेखी को बताया था. कई छोटी पार्टियां शिवसेना के सीट बंटवारे के फॉर्मूले से नाराज थी. भाजपा छोटी पार्टियों को साथ लेकर चलना चाहती थी, इसलिए उसने 25 सालों से चला आ रहा गंठबंधन तोड़ दिया. भाजपा ने जिन छोटी पार्टियों को […]
शिवसेना और भाजपा के चार छोटे दल है जिसका खयाल रखते हुए भाजपा ने अलग राह पकड़ी. लेकिन अब भाजपा उन छोटे दलों को अपने साथ लेकर नहीं चल पा रही है. हालांकि स्वाभिमानी शेतकरी संगठन, राष्ट्रीय समाज पार्टी और शिवसंग्राम, तो भाजपा के साथ है. लेकिन आरपीआई के अठावले गुट के नेता रामदास अठावले ने भाजपा के साथ- साथ शिवसेना से भी मोलभाव शुरू कर दिया है. आरपीआई के आधा दर्जन धड़ो में अठावले गुट ही सबसे बड़ा है. अठावले की पहचान एक दलित नेता की है. अठावले की दलित समुदाय में अच्छी खासी अपील है. विदर्भ जैसे इलाके में जहां 26 प्रतिशत बौद्ध मतदाता है. वहां अठावले अपना असर दिखा सकते है.
बिहार में पासवान जैसा कमाल महाराष्ट्र में दिखा पायेंगे अठावले
राजनीतिक हलको में अब यह आकलन किया जा रहा है कि क्या अठावले बिहार के रामविलास पासवान की तरह महाराष्ट्र में भाजपा को फायदा पहुंचा पायेंगे. लोकसभा चुनाव में लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान ने ऐन वक्त पर भाजपा के साथ गंठबंधन का फैसला किया.
इसका फायदा भाजपा को भी मिला और दलित वोट बैंक भाजपा की तरफ आ गया. रामविलास को भी फायदा हुआ बिहार की राजनीति में उन्होंने अपनी खोयी जगह वापस पा ली. उन्हें विरोधियों ने मौसम वैज्ञानिक, पलटू जैसे कई नाम दिये. लेकिन इस फैसले से भाजपा और लोजपा दोनों को फायदा हुआ. लालू यादव व नीतीश कुमार जैसा बड़ा राजनीतिक जनाधार नहीं होने के बावजूद भाजपा जैसे ताकतवार दल के साथ आकर उन दोनों का खेल खराब कर दिया. अब बदले हालत में महाराष्ट्र में ऐसी ही स्थिति अठावले की बन गयी है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दलित वोट बैंक को ध्यान में रखकर रामदास अठावले को हर एक पार्टी अपनी ओर खींच रही है. ऐसे में अंततः भाजपा के साथ जाने का अठावले का फैसला कितना सही साबित होता है इसका पता चुनाव के परिणामों से पता चल जायेगा.
शिवसेना दे रही है उप मुख्यमंत्री का पद
भले ही भाजपा ने अठावले जैसे सहयोगियों का नाता देकर शिवसेना से नाता तोड़ा हो लेकिन अठावले राजनीतिक में मौकों का महत्व समझते है. इसलिए वह भाजपा के साथ शिवसेना से मोलभाव कर रहे हैं. उन्होंने दावा किया कि शिवसेना उन्हें उप मुख्यमंत्री का पद दे रही है. अगर शिवसेना उनके सहयोग से सत्ता में आती है तो उन्हें यह पद दिया जायेगा. उन्होंने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने मुझसे अनुरोध किया है कि अगर मैं उनके साथ गंठबंधन करता हूं तो वह मुझे उप मुख्यमंत्री की कुर्सी देंगे.
भाजपा से मांग रहे हैं मंत्री पद
उधर रामदास अठावले भारतीय जनता पार्टी से केंद्र में मंत्री का पद मांग रहे हैं. इसके लिए उन्होंने सार्वजनिक बयान दिया था. अब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलकर उनके सामने भी यह मांग रख दी है. ध्यान रहे कि अठावले भाजपा के सहयोग से ही राज्यसभा पहुंचे है. अब यह उनकी भाजपा से दूसरी सौदेबाजी है. भाजपा भी उनको केंद्रीय मंत्री बनाकर एक प्रमुख दलित चेहरे के रूप में महाराष्ट्र की राजनीति में उतारने पर काम शुरू कर चुकी है. पार्टी का मानाना है कि इससे पिछड़े और दलितों में बेहतर संदेश जायेगा. अठावले ने कहा कि उन्हें आठ विधानसभा सीट और सत्ता में आने पर विधानपरिषद की दो सीटों के साथ ही केंद्र में मंत्री पद देने का आश्वासन मिला है.
शरद पवार ने दिया था राकपा में शामिल होने का न्योता
भाजपा – शिवसेना गंठबंधन टूटने से पहले आरपीआई नेता रामदास अठावले ने दावा किया कि उन्हें राकांपा प्रमुख शरद पवार ने अपनी पार्टी के साथ आने के लिए न्यौता दिया था. अठावले ने उस वक्त कहा था, ‘‘शरद पवार ने फोन किया और आगामी चुनाव में राकांपा के साथ हाथ मिलाने के लिए कहा, उन्होंने एक बार अच्छी तरह सोचकर फैसला लेने का कहा था. उस वक्त उन्होंने मना करते हुए शरद पवार को जवाब दिया कि उन्हें उम्मीद है कि आरपीआई पार्टी 10 सीट जीतने में कामयाब रहेगी.
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