नयी दिल्ली : अब तक पार्टियों को मिलनेवाले चंदे का ब्यौरा हासिल करने के लिए पार्टियों द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष पेश की गयी आमदनी व आयकर विभाग में भरे गये रिटर्न की जानकारी मांगी जाती थी.
तीन जून, 2013 को केंद्रीय सूचना आयोग ने अहम फैसला सुनाते हुए राजनीतिक पार्टियों को जनता के प्रति जबावदेह करार दिया और उन्हें अपने खर्च और आमदनी की जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया. लेकिन यह फैसला इतना आसान नहीं था.
इससे पहले 2009 में भी सूचना आयोग
के समक्ष राजनीतिक पार्टियों को जनता के प्रति जवाबदेह तय करने का मुद्दा आया था, लेकिन उस बार फैसला राजनीतिक पार्टियों के हक में रहा था. बड़ी राजनीतिक पार्टियों को आरटीआइ के दायरे में लाने का फैसला आरटीआइ कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल और अनिल बैरवाल की अलग-अलग शिकायतों पर एक साथ कार्रवाई करते हुए दिया.
सूचना के अधिकार की लड़ाई : सुभाष चंद्र अग्रवाल ने भाजपा व कांग्रेस से सूचना के अधिकार के तहत चुनावी मेनिफेस्टो की कॉपी और पूरे किये गये व अधूरे रह गये वादों की जानकारी मांगी थी.
सुभाष अग्रवाल ने देश की दो सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियों से सदस्यों द्वारा पार्टी फंड में दिये गये चंदे की जानकारी भी मांगी थी. लेकिन अग्रवाल को इन सामान्य सवालों के जबाव नहीं मिल सका था. केंद्रीय सूचना आयोग के फैसले के बाद सुभाष चंद्र अग्रवाल ने कहा, ‘मैंने करीब छह हजार आरटीआइ दायर की हैं, जिनमें करीब दस फीसदी मामलों में मुझे सूचना आयोग पहुंचना पड़ा, जहां से अधिकतर निर्णय मेरे पक्ष में आये.
अपने अनुभव के आधार पर मैंने पार्टियों को सरकार से मिलनेवाली आर्थिक मदद से संबंधित तथ्य सूचना आयोग के समक्ष पेश किये थे, जिन्हें नकारा नहीं जा सकता था. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) की याचिका पर भी साथ ही सुनवाई की गयी थी. एडीआर ने राजनीतिक दलों को मिलनेवाली टैक्स छूट और सरकारी विज्ञापन में मिलनेवाली छूट का ब्यौरा दिया था.
सूचना आयोग ने हमारी बात समझी और देशहित में फैसला दिया.’ मामले में विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा था कि आरटीआइ सूचना प्राप्त करने के लिए है, इसके जरिये किसी को उत्पात नहीं मचाने दिया जायेगा. उनके बयान पर अग्रवाल ने कहा, ‘यह दुर्भाग्यपूर्ण बयान है.
संसद ने ही कानून बना देश को यह अधिकार दिया. अब यही कानून संसद में बैठनेवालों व राजनीतिक दलों की जानकारी लेने के लिए हो रहा है, तो उन्हें दिक्कत हो रही है.’ राजनीतिक पार्टियां सीआइसी के इस फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकती हैं.
इस संभावना पर सुभाष चंद्र अग्रवाल कहते हैं, ‘हम हाइकोर्ट में कैविएट दायर करने की तैयारी कर रहे हैं, ताकि एक्स-पार्टी स्टे ऑर्डर को रोका जा सके, हालांकि कोर्ट का क्या रु ख होगा, यह बाद की बात है, लेकिन अब हम राजनीतिक दलों से आरटीआइ के जरिये जबाव मांगेगे.’
प्लॉट भी आवंटित
कांग्रेस को सरकार की ओर से दो प्लॉट दिये गये हैं, जिनका बाजार मूल्य इस समय करीब 1036.41 करोड़ रुपये है. भारतीय जनता पार्टी को भी दो प्लॉट दिये गये हैं, जिनका बाजार मूल्य करीब 557.23 करोड़ रुपये हैं.
सीपीआइ (एम) को दिये गये प्लॉट का बाजार मूल्य लगभग 240.94 करोड़ रुपये है, जबकि सीपीआइ को 78.41 करोड़, राष्ट्रीय जनता दल को 122.92 करोड़, समाजवादी पार्टी को 261.36 करोड़, जदयू को 129.12 करोड़, एआइएडीएमके को 65.08 करोड़ और एआइटीसी को 64.56 करोड़ रुपये बाजार मूल्य के प्लॉट दिये गये हैं.
पॉश इलाके में नाममात्र किराया
दिल्ली के पॉश इलाके की सबसे अहम प्रॉपर्टियों में देश की बड़ी राजनीतिक पार्टियों के दफ्तर हैं. इन विशाल दफ्तरों का मासिक किराया आपको हैरान कर सकता है.
1. 24, अकबर रोड स्थित कांग्रेस के दफ्तर का मासिक किराया मात्र 42,817 रु पये है. पार्टी के पास तीन और दफ्तर भी हैं, जिनमें 26, अकबर रोड का किराया 3015 रु पये, 5, रायसीना रोड का किराया 34,189 रुपये और सी2/109, चाणक्यपुरी का किराया मात्र 8078 रुपये है.
2. 11, अशोक रोड स्थित बीजेपी के दफ्तर का किराया मात्र 66,896 रु पये है. पार्टी की दिल्ली इकाई के 14, पंडित पंत मार्ग स्थित ऑफिस का किराया मात्र 15077 रुपये है.
3. 10, डॉ. बीडी मार्ग स्थित नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के दफ्तर का मासिक किराया मात्र 1320 रुपये है.
4. 4, जीआरजी रोड को बसपा सुप्रीमो बहन मायावती ने 1320 रुपये की मासिक दर पर किराये पर लिया है.
5. 8, तीन मूर्ति लेन में सीपीआइ (एम) के राष्ट्रीय महासचिव प्रकाश करात रहते हैं. उसका मासिक किराया मात्र 1550 रुपये है.
6. 8, कॉपरनिकस मार्ग स्थित सपा के दफ्तर का किराया मात्र 12138 रुपये है.
।। दिलनवाज पाशा ।।