नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने बैंक के सुरक्षाकर्मी को बरी करने का निर्णय बरकरार रखते हुये उसकी इस दलील को स्वीकार कर लिया कि 2006 में उसने अपनी ड्यूटी का निर्वहन करते समय आत्मरक्षा में एक व्यक्ति पर गोली चलायी थी.
सुरक्षाकर्मी का तर्क था कि उसका उद्देश्य इस व्यक्ति को जान से मारना नहीं बल्कि भागने से रोकना था. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुरक्षाकर्मी चतुर्भुज सिंह को बरी करने के निचली अदालत के 2007 के फैसले को चुनौती देने वाली पुलिस की अपील खारिज कर दी.
न्यायालय ने कहा, हम महसूस करते हैं कि प्रतिवादी सिंह ने जब इस मामले में आत्मरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल किया तो उसके दिमाग में मृत्यु और गंभीर रुप से जख्मी होने की आशंका थी. प्रतिवादी जो सुरक्षाकर्मी था, उसने बैंक के अंदर एक काउंटर पर शोर सुना और फिर एक व्यक्ति को मुख्य द्वार से निकलने का प्रयास करते देखा था.
इस व्यक्ति को रोकने के इरादे से उसने दरवाजा बंद कर दिया था लेकिन मृतक रुका नहीं और उसने शीशे के दरवाजे को तोड़ दिया और जब उसे रोका गया तो उसने शीशे का एक बड़ा टुकड़ा उठा लिया था.
कश्मीरी गेट पुलिस ने नौ मार्च, 2006 की दोपहर में सर्वेश सपरा नाम के व्यक्ति पर राइफल से गोली चलाने और उसकी हत्या करने के मामले में चतुर्भुज सिंह के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था.
अदालत ने सिंह की इस दलील को स्वीकार कर लिया कि बैंक में सुरक्षाकर्मी के रुप में उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता बैंक और जनता के धन को लुटने से बचाना था. सिंह ने यह भी दलील दी कि मृतक एक अन्य व्यक्ति अमरजीत मौर्या की पासबुक लिये हुआ था और उसने मौर्या के फर्जी दस्तखत किये थे। बैंक के अधिकारियों ने उससे पूछताछ की तो उसे लगा कि बैंक के अधिकारी अब पुलिस बुला लेंगे.