नयी दिल्ली : राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि के मालिकाना विवाद से जुड़ी याचिकाओं पर आज दोपहर 2 बजे सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होगी.इस दौरान दैनिक आधार पर सुनवाईशुरूकरने की तारीख तय हो सकती है.सुप्रीमकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इस मामले में अब किसी भी सूरत में स्थगन आदेश नहीं दिया जायेगा.अयोध्याविवाद पर सुनवाई महत्वपूर्ण है, क्योंकि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने सुन्नी वक्फ बोर्ड तथा अन्य की इस दलील को खारिज कर दिया था कि वर्ष 2019 के आम चुनावों तक याचिकाओं पर सुनवाई टाल दी जाये. दूसरी तरफ, बाबरी मस्जिद के पैरोकार इकबाल अंसारी ने कह दिया है कि अब सुलह की कोई संभावना नहीं है.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने 5 दिसंबर, 2017 कोस्पष्टकर दिया था कि आठ फरवरी से इन याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू करेगी.साथ ही सभी पक्षों से संबंधित कानूनी कागजात सौंपने को कहा. इससे पहले वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने कहा था कि दीवानी अपीलों को या तो पांच या सात जजों की पीठ को सौंपदियाजाये या इसे इसकी संवेदनशील प्रकृति तथा देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और राजतंत्र पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2019 के आम चुनावों तक टाल दिया जाये.
किसी भी परिस्थिति में अब स्थगन नहीं
पिछली सुनवाइयों मेंजस्टिस दीपक मिश्रा,जस्टिस अशोक भूषण औरजस्टिस एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ ने स्पष्ट किया था कि किसी भी परिस्थिति में स्थगन नहीं दिया जायेगा. विशेष खंडपीठ ने ही इलाहाबाद हाइकोर्ट के वर्ष 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई शुरू करने के बारे में सहमति जतायी थी. शीर्ष अदालत ने भूमि विवाद में इलाहाबाद हाइकोर्ट के वर्ष 2010 के फैसले के खिलाफ 14 दीवानी अपीलों से जुड़े एडवोकेट आॅन रिकाॅर्ड से यह सुनिश्चित करने को कहा कि सभी जरूरी दस्तावेजों को शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को सौंपा जाये. चीफ जस्टिस ने कहा था कि उस दिन कोई भी डॉक्युमेंट्स के नाम पर सुनवाई टालने की मांग नहीं करेगा. सभी पक्ष अपने दस्तावेज तैयार करें. दूसरे पक्षों के साथ बैठकर कॉमन मेमोरेंडम बनायें. कोर्ट ने 11 अगस्त को 7भाषा के दस्तावेजों का अनुवाद कराने के लिए कहा था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले के खिलाफ अपील
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि 30 सितंबर, 2010 को अपने फैसले में कहा था कि तीन गुंबदों के ढांचे में बीच का गुंबद हिंदुओं का है. हाइकोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि को तीन हिस्सों में विभक्त करके इसे सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बांटने की व्यवस्था दी थी. इसके बाद हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. दूसरी तरफ, सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल की थी. अन्य पक्षकारों ने भी अपनी याचिकाएं दायर की थीं. याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के फैसले पर रोक लगाते हुए यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था.
दो महीने की देरी से शुरू होगी सुनवाई
अयोध्या विवाद पर 8 दिसंबर,2017 को सुनवाई हुई थी, लेकिन दस्तावेजों का ट्रांसलेशन (अनुवाद) नहीं हो पाया था. इसलिए कोर्ट ने तारीख दो महीने बढ़ा दी थी. तब कुल 19,590 पेज में से सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के हिस्से के 3,260 पेज जमा नहीं हुए. उस वक्त सुनवाई टालने की मांग करते हुए बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह केस सिर्फ भूमि विवाद नहीं, राजनीतिक मुद्दा भी है. चुनाव पर असर डालेगा.वर्ष 2019 के चुनाव के बाद ही सुनवाई करें. कोर्ट ने इन दलीलों को बेतुका बताते हुए कहा, ‘हम राजनीति नहीं, केस के तथ्य देखते हैं.’