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सीबीआई हो पारदर्शी, आनी चाहिए आरटीआई के तहत

नयी दिल्ली: सीबीआई को आरटीआई कानून के दायरे में लाने की वकालत करते हुए पूर्व सतर्कता आयुक्त आर श्रीकुमार ने आज कहा कि उसके द्वारा एकत्रित सत्य का खुलासा करने से जांच एजेंसी कभी ‘‘आहत’’ नहीं होगी तथा उसे सार्वजनिक समीक्षा के लिए अपने में खुलापन लाकर लोगों का दिल जीतना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘सीबीआई […]

नयी दिल्ली: सीबीआई को आरटीआई कानून के दायरे में लाने की वकालत करते हुए पूर्व सतर्कता आयुक्त आर श्रीकुमार ने आज कहा कि उसके द्वारा एकत्रित सत्य का खुलासा करने से जांच एजेंसी कभी ‘‘आहत’’ नहीं होगी तथा उसे सार्वजनिक समीक्षा के लिए अपने में खुलापन लाकर लोगों का दिल जीतना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘‘सीबीआई को आरटीआई कानून से छूट सीधे सरकार से प्राप्त हुई है. उन्होंने (सीबीआई ने) आरटीआर कानून से पूरी तरह छूट हासिल करने की मांग करते समय सीवीसी को शामिल नहीं किया.’’ श्रीकुमार ने कहा, ‘‘सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए काम कर रही एक सार्वजनिक संस्था होने के नाते सीबीआई को आरटीआई कानून के तहत गोपनीयता की शरण नहीं लेनी चाहिए और सार्वजनिक समीक्षा के लिए अपने को खुला रखना चाहिए.’’ उनकी इस टिप्पणी से एक दिन पहले ही पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी ने सीबीआई पर बरसते हुए कहा था कि वह ‘‘धुंधले परिधान में ढंकी, गोपनीयता के आभूषणों से लदी और अंतत: रहस्य से सुवासित है.’’

गांधी ने कहा था, ‘‘ थोडे ही समय के लिए सीबीआई आरटीआई कानून के तहत आयी थी. उस समय कोई आसमान नहीं टूट पडा था, लेकिन धुंधलेपन, गोपनीयता एवं रहस्य की तीन परतों ने उसे आरटीआई कानून के दायरे से बाहर कर दिया.’’ उन्होंने यहां सीबीआई के एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘यह बेहद दुख की बात है. सीबीआई भ्रष्टाचार एवं चंद अपराध की जांच के लिए है. यह कोई सुरक्षा या खुफिया एजेंसी नहीं है.’’ सूचना का अधिकार कानून लागू करने वाली नोडल एजेंसी कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने नौ जून 2011 को एक अधिसूचना जारी कर सीबीआई को इस पारदर्शिता कानून के दायरे से बाहर कर दिया था. पूर्व आईपीएस अधिकारी एवं सीबीआई में काम का अनुभव ले चुके श्रीकुमार ने इस एजेंसी पर केंद्रीय सतर्कता आयोग के उस सुझाव को खारिज करने का आरोप लगाया, जिसमें उसकी जांच में पारदर्शिता लाने को कहा गया था.

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