अमित शाह टीम मोदी के नंबर वन नेता है. यही वजह है कि शाह के पास देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा को स्थापित करने की जिम्मेदारी है. वो इस काम में ‘अपने तरीके’ से लगे भी हैं. ओपीनियन पोल में भाजपा को 50 से ज्यादा सीटे मिलने की भविष्यवाणी की गई हैं. इसका श्रेय उन्हें ही दिया जा रहा है.
पिछले दिनों अमित शाह ने मुजफ्फरनगर में जाटों की रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि अपमान का बदला लेना होगा. जहां तमाम विपक्षी दलों समेत चुनाव आयोग ने भी उनके इस बयान को सांप्रदायिक और भड़काऊ मानते हुए इस पर कड़ा स्टैंड लिया मगर खुद भाजपा के लोगों ने एक तरह से अमित शाह की पीठ ही थपथपाई. एक नेता ने तो उनके इस बयान की तुलना बराक ओबामा के उस बयान से कर डाली, जिसमें उन्होंने कहा था कि वोट डालना सबसे बेहतर बदला है. अभिनेता से राजनेता बने उनके गुजराती भाई परेश रावल ने भी उनके इस बयान को डिफेंड किया. भाजपा के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि दरअसल अमित शाह का यह बयान भाजपा की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत मोदी को अपनी छवि सर्व धर्म संभाव वाले नेता के तौर पर स्थापित करनी है और अमित शाह को हिंदुओं के ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को तेज करने वाले बयान देने हैं. इस तरह अब तक राज्यस्तरीय नेता माने जाने वाले अमित शाह को इस चुनाव में राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित करने की तैयारी अंतिम चरण में है.
दरअसल, अमित शाह को राजनीतिक हलकों में बेहतरीन चुनाव प्रबंधक और रणनीतिकार के तौर पर देखा जाता है. वे खुद चाणक्य और आदि शंकराचार्य को अपना गुरु मानते हैं और भाजपा में भी लोग उन्हें अपनी पार्टी का अहमद पटेल मानने लगे हैं. हाल के दिनों में जिस तरह एनडीटीवी ने सर्वेक्षण में यूपी में भाजपा को 53 सीटें मिलती बतायी है, उसका क्रेडिट अगर एक व्यक्ति को जायेगा तो वह अमित शाह ही होंगे. भाजपा नेता लालजी टंडन उनके बारे में बताते हैं कि यह अमित शाह का ही कमाल है कि यूपी के दलित जय भीम जय भारत की जगह आज जय मोदी जय भारत बोलने लगे हैं. गुजरात में मोदी की लगातार जीत के पीछे भी उनकी स्ट्रैटेजी को ही जिम्मेवार बताया जाता है. भाजपा से कांग्रेस में गये शंकर सिंह वाघेला कहते हैं कि यह अमित ही थे जिसने पूरे गुजरात का अपने तरीके से परिसीमन कराया, जिससे कम से कम 60 सीटों पर भाजपा की बढ़त सुनिश्चित हो गयी.
दरअसल, राजनीति में अमित शाह की शुरुआत चुनावी प्रबंधक और रणनीतिकार के तौर पर हुई. भाजपा की सदस्यता लेने के बाद उन्हें पहली जिम्मेदारी लालकृष्ण आडवाणी के लिए गांधीनगर की सीट के चुनावी प्रबंधन का था. उन्होंने कई दफा इस जिम्मेदारी का निर्वहन किया और भाजपा के नंबर दो नेता की चुनावी जीत सुनिश्चित की. एक समृद्ध व्यावसायिक परिवार से आने वाले अमित शाह ने पढ़ाई तो बायो-केमिस्ट्री की की थी, मगर अपना कैरियर शेयर ब्रोकर के रूप में शुरू किया. वे आरएसएस के स्वयंसेवक थे. बाद में विद्यार्थी परिषद के नेता बने. 1997 तक शाह एक छोटे नेता थे. उसी दौरान मोदी ने उन्हें एक उप चुनाव में विधानसभा का टिकट दिलवाया. इस बात पर पार्टी के अंदर उठे विरोध के बावजूद शाह ने चुनाव में बड़ी जीत हासिल की. इसी दौरान मोदी ने शाह के अंदर जोश देखा और उन्हें चुनाव प्रबंधन के लिए तैयार करना शुरू कर दिया. बाद में मोदी ने उन्हें अपनी कैबिनेट का सबसे युवा मंत्री बनाया और एक साथ दस मंत्रलयों की जिम्मेदारी दे दी.
हालांकि अमित शाह का राजनीतिक जीवन सिर्फ सफलताओं से भरा नहीं है. सोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर मामले और एक युवती की जासूसी के मामले में इनका नाम उछला और इनके खिलाफ मुकदमे भी हुए हैं. उन पर हत्या और फिरौती मांगने जैसे आरोप हैं. हालांकि यह भी माना जाता हैकि उन पर जितने आरोप हैं वे अपराध उन्होंने मोदी को लाभ पहुंचाने के लिए किये हैं. उन्हें ‘साहब’ का गुलाम भी कहा जाता है. मगर अमित शाह संभवत: यह मानते हैं कि इन केस-मुकदमों से वे मोदी की वजह से धीरे-धीरे उबर जायेंगे.