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26 नवंबर विश्व एनीमिया दिवस : असली स्त्री धन सोना नहीं, बल्कि ‘लोहा’ है

डॉ सुमिता कुमारी कन्सल्टेंट सीनियर डायटीशियन (डायबिटीज एंड ओबेसिटी केयर सेंटर), बोरिंग कैनाल रोड, पटना भारत में लगभग हर महिला खून की कमी से जूझती है, जिस वजह से वह एनीमिया बीमारी से ग्रसित हो जाती है. इसके अलावा हर महीने होनेवाले पीरियड के कारण भी महिलाओं के शरीर से 35 मिली लीटर रक्त का […]

डॉ सुमिता कुमारी
कन्सल्टेंट सीनियर डायटीशियन (डायबिटीज एंड ओबेसिटी केयर सेंटर), बोरिंग कैनाल रोड, पटना
भारत में लगभग हर महिला खून की कमी से जूझती है, जिस वजह से वह एनीमिया बीमारी से ग्रसित हो जाती है. इसके अलावा हर महीने होनेवाले पीरियड के कारण भी महिलाओं के शरीर से 35 मिली लीटर रक्त का स्राव हो जाता है, जो खून की कमी का एक बड़ा कारण बनता है.
आमतौर पर इस कमी का पता प्रेग्नेंसी के वक्त चलता है. सामान्यतः शहरी महिलाओं के बारे में कहा जाता है कि वह अपने स्वास्थ्य को लेकर बहुत जागरूक होती हैं, मगर जो आंकड़े सामने आये हैं, उनसे तो यही पता चलता है कि देश की 50 फीसदी शहरी महिलाएं भी आयरन की कमी से ग्रसित हैं.
जनवरी, 2018 में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के चौथे सर्वेक्षण के आंकड़े में यह बात सामने आयी है कि 40 प्रतिशत महिलाएं माइल्ड एनीमिया से ग्रसित हैं, 12 प्रतिशत महिलाओं में यह कमी औसत रूप में पायी जाती है और 1 प्रतिशत महिलाएं इससे गंभीर रूप से ग्रसित हैं. 15 से 49 वर्ष की महिलाओं में एनीमिया का स्तर 53 प्रतिशत और 15 से 19 वर्ष की किशोरियों में यह 54 प्रतिशत होता है.
क्या है एनीमिया की स्थिति : हमारे शरीर में दो तरह की रक्त कोशिकाएं होतीं हैं- लाल तथा सफेद. जब रक्त में पर्याप्त मात्रा में लाल रक्त कोशिकाएं या हीमोग्लोबिन की कमी होती है, वह स्थिति एनीमिया कहलाती है.
बॉडी सेल्स को एक्टिव रखने के लिए शरीर को ऑक्सीजन की जरूरत होती है, जिसे शरीर के अंगों तक पहुंचाने का कार्य हीमोग्लोबिन करता है, मगर जब शरीर में आयरन की कमी हो जाती है, तो उन सेल्स को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है. पुरुषों के मुकाबले भारतीय महिलाओं में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है. महिलाओं में यह समस्या अमूमन 30 के बाद अधिक देखने को मिलती है, जिसका कारण काफी हद तक गलत खान-पान है. ऐसे में हम सभी की जिम्मेवारी बनती है कि घर की स्त्रियों का ध्यान रखें. उनके उचित खान-पान को बढ़ावा दें.
पहचानें इन लक्षणों को : महिलाओं में खून की कमी के अनेकों कारण हो सकते हैं, जैसे- हरी सब्जियों का सेवन न करके अत्यधिक मात्रा में फास्ट फूड खाना, शरीर में फॉलिक एसिड की कमी होना, बार-बार गर्भधारण करना, पेट में हमेशा इन्फेक्शन होना, कैंसर का होना, विटामिन बी 12, विटामिन ए तथा आयरन की कमी होना. इस कारण महिलाओं को जल्दी थकान हो जाती है और त्वचा का रंग भी पीला पड़ जाता है.
इसके साथ सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, हाथों और पैरों का ठंडा होना, चक्कर आना, लगातार सिर में दर्द रहना और धड़कन का असामान्य होना भी इसके लक्षण होते हैं. पेट में कृमि की वजह से भी एनीमिया होता है, इसलिए महिलाओं को अपने डॉक्टर से मिल कर इसकी दवा साल में एक बार जरूर लेनी चाहिए. कई बार यह दवा सरकारी अस्पतालों और संस्थानों में मुफ्त में भी उपलब्ध होती है. अगर पारिवारिक इतिहास में अनुवांशिक बीमारियां, जैसे- सिकल सेल एनीमिया, ल्यूकेमिया और थैलिसीमिया की बीमारी रही है, तो फिर ऐसे में एनीमिया होने की आशंका 50 फीसदी तक बढ़ जाती है.
उचित खान-पान से होगा बचाव
एनीमिया से बचने के लिए बेहतर है कि खान-पान अपने आहार में उन चीजों को शामिल करें, जो पौष्टिक हैं, जैसे- हरी पत्तेदार सब्जियां. इसमें पालक जरूर हो, क्योंकि यह आयरन के साथ कैल्शियम, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई और बीटा कैरोटिन का भी बेहतरीन स्त्रोत है.
इसके अलावा राजमा, दाल, सलाद, अंकुरित मूंग, मशरुम, कद्दू के बीज, चुकंदर, साबूत अनाज की रोटी, सूखे मेवे और फल लें. आप सहजन की पत्तियां भी भोजन में शामिल कर सकती हैं, जो आयरन उत्तम स्रोत है. जिन खाद्य पदार्थों में विटामिन-सी की मात्रा हो, उनका सेवन जरूर करें, क्योंकि विटामिन-सी शरीर में आयरन अवशोषण की क्षमता को बढ़ाता है. यह नॉन-हेम आयरन सोर्स कहे जाते हैं, क्योंकि ये वनस्पतियों से प्राप्त होते हैं.
मांसाहार वाले लोगों के पास चिकन, अंडा, मछली और रेड मीट (सीमित मात्रा में) का अच्छा विकल्प होता है. इसे हम हेम आयरन की श्रेणी में रखते हैं.
एनीमिया मरीजों को डॉक्टर कुछ चीजों से परहेज रखने की सलाह देते हैं, जिनमें टैनिन युक्त खाद्य पदार्थ, जैसे कॉफी तथा ग्रीन टी आदि पाये जाते हैं. ग्लूटेन प्रोटीन का सेवन कम करके भी आप एनीमिया से बच सकते हैं. अगर महिलाएं इस तरह अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें, तो वह एनीमिया से बच सकती हैं, क्योंकि बेहतर खान-पान और स्वयं का ध्यान रखना ही इस बीमारी से बचा सकता है.
क्या है ‘स्त्री धन’ कैंपेन
महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए प्रोजेक्ट स्त्री धन नाम से एक कैंपेन शुरू किया गया है. इसे दुनियाभर में हेल्थ और न्यूट्रिशन पर काम करने वाली एजेंसी DSM (Dutch State Mines) ने महिलाओं में अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया है. इसमें महिलाओं में होनेवाली आयरन की कमी के बारे में बताया गया है.
इस कैंपेन में लगभग एक मिनट के वीडियो में महिलाओं को ‘लोहे’ में इन्वेस्ट करने की सलाह दी गयी है, जिसके बाद #investiniron हैशटैग ट्रेंड करने लगा है. इसे विज्ञापन संस्था FCB Ulka ने तैयार किया है.
प्रोजेक्ट ‘स्त्री धन कैंपेन’ का आइडिया स्वाति भट्टाचार्य का था और इसे धनतेरस के वक्त लांच किया गया था. भट्टाचार्य के अनुसार, “अभी तक आयरन की कमी को लेकर भारत में कई कैंपेन हुए हैं. सरकार भी कई वर्षों से इसे लेकर जागरूकता फैला रही है, फिर भी भारत में हर दो में से एक महिला को आयरन कमी रहती है. असली स्त्री धन सोना नहीं, बल्कि आयरन है. प्रोजेक्ट स्त्री धन किसी शुभ चीज पर इन्वेस्ट करने की बात करता है, जो महिलाओं के शरीर में जाकर लोहा बनेगा.”
फैक्ट प्वाइंट्स
डब्ल्यूएचओ की रिर्पोट के अनुसार वर्ष 2011 में 15-49 उम्र की 38 प्रतिशत (32.4 मिलियन) प्रेग्नेंट महिलाओं में एनीमिया पाया गया है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एनीमिया से निबटने के लिए कई कदम उठाये गये हैं, जिनमें एनीमिया मुक्त भारत (AMB), साप्ताहिक लौह और फोलिक अम्ल अनुपूरण और प्रधानमंत्री मातृत्व सुरक्षा अभियान (PMSMA) शामिल हैं.
पीरियड्स के दौरान अत्यधिक रक्त स्त्राव का होना भी एनीमिया का मुख्य कारण बनता है.
29 प्रतिशत नॉन-प्रेग्नेंट और 38 प्रतिशत प्रेग्नेंट महिलाएं एनीमिया की बीमारी से जूझती हैं.
‘सही पोषण-देश रोशन’ की टैगलाइन से शुरू हुए पोषण अभियान के अंतर्गत एनीमिया मुक्त भारत अभियान का उद्देश्य वर्ष 2022 तक देश को एनीमिया मुक्त बनाने का है.
हीमोग्लोबिन का स्तर
एनीमिया के तीन प्रकार हैं- माइल्ड, मॉडरेट और सीवियर. स्टडी के अनुसार भारतीयों में खून की कमी ज्यादा पायी जाती है, जिसमें 70 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है. वहीं करीब 57.8 प्रतिशत गर्भवती एनीमिया से पीड़ित रहती हैं.
हर 7 में से एक महिला ऐसी होती है, जिनमें हीमोग्लोबिन की मात्रा 7 ग्राम/डीएल होता है जबकि एक स्वस्थ महिला के शरीर में हीमोग्लोबिन का सामान्य स्तर 12-15 ग्राम/डीएल होना चाहिए. यह स्तर अगर 9-7 ग्राम/डीएल हो तो यह माइल्ड एनीमिया होता है. वहीं अगर हीमोग्लोबिन 8 से 9 ग्राम/डीएल हो तो इसे मॉडरेट एनीमिया कहते हैं. जबकि सीवियर एनीमिया में हीमोग्लोबिन 8 ग्राम/डीएल से कम होता है. यह एक गंभीर स्थिति होती है, जिसमें मरीज की हालत के अनुसार खून चढ़ाने की भी नौबत आ जाती है.

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