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बच्चों के लिए आप हैं कैसे पैरेंट्स, जानें कुछ खास बातें

वंदना बाजपेयीvandanabajpai5@gmail.comपैंरेंट्स वो भी टॉक्सिक ? ये तो असंभव है. जो माता-पिता अपने बच्चों से इतना प्यार करते हैं, उनके लिए पैसे कमाते हैं, घर में सारा समय देखभाल करते हुए बिताते हैं वो भला टॉक्सिक कैसे हो सकते हैं. शीर्षक पढ़ते ही पहला ख्याल आपको यही आया होगा. आप का सोचना भी गलत नहीं […]

वंदना बाजपेयी
vandanabajpai5@gmail.com

पैंरेंट्स वो भी टॉक्सिक ? ये तो असंभव है. जो माता-पिता अपने बच्चों से इतना प्यार करते हैं, उनके लिए पैसे कमाते हैं, घर में सारा समय देखभाल करते हुए बिताते हैं वो भला टॉक्सिक कैसे हो सकते हैं. शीर्षक पढ़ते ही पहला ख्याल आपको यही आया होगा. आप का सोचना भी गलत नहीं है, पर दुखद सत्य यह है की कई बार माता-पिता न चाहते हुए अपने बच्चों के टॉक्सिक पैरेंट्स बन जाते हैं. यह न सिर्फ अपने ही हाथों से अपने बच्चों का बचपन छीन लेते हैं, अपितु वयस्क के रूप में भी उन्हें एक अन्धकार से भरे मार्ग पर धकेल देते हैं. अगर आप भी जाने-अनजाने टॉक्सिक पैरेंट्स बन गये हैं, तो अभी भी समय है अपने आप को बदल लें, ताकि आप की बगिया के फूल आप के बच्चे जीवन भर मुस्कुराते रहे. आप टॉक्सिक पैरेंट हो या न हों, लेकिन अपने व्यवहार पर गौर कीजिए. यहां कुछ लक्षण दिये जा रहे हैं. अगर उनमें से कुछ लक्षण आपसे मिलते हैं, तो निश्चित जानिए कि आपके बच्चे आपके साथ अच्छा महसूस नहीं कर रहे हैं. इतना ही नहीं, वे बड़े होकर एक संतुलित वयस्क भी नहीं बन पायेंगे.

क्रिटिक पैरेंट्स : ऐसे कोई माता-पिता नहीं होते, जो कभी-न-कभी अपने बच्चे की आलोचना न करते हों. कबीर के दोहे ‘भीतर हाथ संभार दे बाहर बाहे चोट’ की तर्ज पर बच्चों को दुनियादारी सिखाने और उन्हें उनके द्वारा की गयी गलतियों का एहसास कराने के लिए यह जरूरी भी है, लेकिन यहां बात हो रही है जरूरत से ज्यादा आलोचक पैरेंट्स की. ऐसे पैरेंट्स दिन हो या रात, अकेले हों या भरी महफिल में, हर समय उन्हें अपने बच्चों के व्यवहार और व्यक्तित्व में कोई-न-कोई कमी नजर आती ही रहती है. "तुम तो कोई काम ठीक तरीके से नहीं कर सकते”; ”जब मैं तुम्हारे जितनी बड़ी थी/जितना बड़ा था, तो फलां काम को ज्यादा बेहतर करता था/करती थी” आदि उनके फेवरेट डायलॉग होते हैं. उनके ऐसे व्यवहार से बच्चों का आत्मविश्वास कमजोर होता है और वे एक अशक्त वयस्क रूप में बड़े होते हैं.

टफ पैरेंट्स : आज्ञाकारी बच्चे भला किसे अच्छे नहीं लगते ! पर उन्हें आज्ञाकारी बनाने की जगह रोबोट मत बनाइए. जीवन एक नदी की तरह है. कई बार यहां रास्तों को काटना होता है, कई बार विपरीत धाराओं को मोड़ना होता है. अपने ही नियम चलानेवाले माता-पिता को लगता है कि उन्हें बच्चों से ज्यादा पता है, तो बच्चों को उनकी बात माननी ही चाहिए, लेकिन कई बार इसका उल्टा असर देखने को मिलता है. बच्चों में निर्णय लेने की क्षमता का विकास नहीं हो पाती. वे बात-बात पर दूसरों का मुंह देखते हैं. जीवन के संग्राम में अनिर्णय की स्थिति में रह कर असफल होते हैं.

थ्रेंटनिंग पैरेंट्स : एक पुरानी कहावत है- ‘जब पिता का जूता बेटे के पैर में आने लगे, तो उसे बेटा नहीं दोस्त समझना चाहिए.’ ऐसे पैरेंट्स बच्चों को अपनी संपत्ति समझते हैं, इसलिए उनके बड़े होने पर भी उन्हें डराना-धमकाना जारी रखते है. कई बार भय से बच्चे उनकी बात मान भी लेते हैं, लेकिन उनका यह व्यवहार बच्चों के मनोविज्ञान को पूरी रूप से नकारात्मक बना देता है.

साइलेंट एग्रेसिव पैरेंट्स ऐसे पैरेंट्स मौन रह कर बच्चों की उपस्थिति को नजरंदाज करते हैं और पैसिव तरीके से अपना गुस्सा निकालते हैं. इसका बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. यूं समझें कि बच्चों पर हाथ उठाने या उन्हें अपशब्द कहने से भी अधिक नुकसानदायक है उनके प्रति मौन व्यवहार. इससे दोनों ही पक्ष समस्या के बारे में सकारात्मक तरीके से नहीं सोच पाते हैं.

ओवर पजेसिव पैरेंट्स
कौन माता-पिता नहीं चाहते कि बच्चे उनका ध्यान रखें, लेकिन बच्चा हर समय उनकी तीमारदारी में ही लगा रहे, ये तो उसके साथ ज्यादती है न. ऐसा अक्सर वे पैरेंट्स करते हैं, जिनका खुद का जीवन अभावों में बीता हो और वे अपने बच्चे से अपनी उम्मीदें पूरा करने की चाह रखते हैं. इस कारण हर समय उन्हें अपने आसपास रखना चाहते हैं. उन्हें बिल्कुल भी स्पेस नहीं देते. याद रखें, आपको बच्चा एक स्वतंत्र जीव है. उसे अपना पैरासाइट न बनाए. अगर वह हर वक्त आपमें ही उलझा रहेगा, तो आपसे अलग होकर जिंदगी के अनेक अनुभवों को सीखने के अवसरों से वंचित रह जायेगा.

कमेंटिंग पैरेंट्स
हर बच्चा एक अपने आप में अनमोल है. वह जन्म के साथ ही अपने साथ एक विशेष प्रतिभा ले कर आता है. हो सकता है अभिभावक होने के नाते आपने उसके लिए जो सोच रखा हो, उसमें उसका मन न लगे. जैसे- नेहा का मन नृत्य में लगता था. टीवी में जैसे ही कोई डांस का प्रोग्राम आता, नेहा के पैर स्वत: थिरकने लगते. उसका यह नाच-गान माता-पिता को पसंद नहीं था. वे उसे हमेशा सबके सामने ही ताना देने लगते- ”पढ़ना-लिखना छोड़ कर नचनिया बनना है क्या?” ऐसी बातें, बच्चों के आत्मविश्वास को कमजोर करती हैं और उन्हें कुछ बेहतर करने से रोकती हैं.

सेल्फ ऑब्सेस्ड पेरेंट्स
कई पैरेंट्स बच्चों पर अपना गुस्सा तो निकाल देते हैं, पर जब उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है, तो वे बच्चों से माफी मांगने से भी गुरेज नहीं करते, लेकिन सेल्फ ऑब्सेस्ड पैरेंट्स ऐसा नहीं करते. उनमें इगो अधिक होता है. वे गुस्सा उतरने के बाद भी बच्चे की नजरों में महान बनने की लालसा रखते हैं. उन्हें एहसास दिलाते हैं कि गलती उनकी है. इसी कारण उन्हें डांट या मार पड़ती है. अपने व्यवहार को तार्किक ढंग से सही सिद्ध करने की कोशिश करते हैं. इससे बच्चा खुद को हीन और कमजोर मानने लगता है और यह सोच उसे भविष्य में आगे बढ़ने से रोकती है.

कई पैरेंट्स बच्चों पर अपना गुस्सा तो निकाल देते हैं, पर जब उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है, तो वे बच्चों से माफी मांगने से भी गुरेज नहीं करते, लेकिन सेल्फ ऑब्सेस्ड पैरेंट्स ऐसा नहीं करते. उनमें इगो अधिक होता है. वे गुस्सा उतरने के बाद भी बच्चे की नजरों में महान बनने की लालसा रखते हैं. उन्हें एहसास दिलाते हैं कि गलती उनकी है. इसी कारण उन्हें डांट या मार पड़ती है. अपने व्यवहार को तार्किक ढंग से सही सिद्ध करने की कोशिश करते हैं. इससे बच्चा खुद को हीन और कमजोर मानने लगता है और यह सोच उसे भविष्य में आगे बढ़ने से रोकती है.

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