ध्रुपद गायन में देश की नामचीन शख्सियतों में भोपाल के पद्मश्री गुंदेचा बंधुओं का नाम आता है. वे ध्रुपद गायकी की वैश्विक पहचान हैं. इनका मानना है के बिहार के बिना ध्रुपद की कल्पना करना भी बेमानी है. पं सियाराम तिवारी जन्म शताब्दी समारोह के मौके पर पटना पहुंचे गुंदेचा बंधुओं से हमारे संवाददाता ने बात की.
-ध्रुपद गायकी में बिहार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. आप बिहार के योगदान को किस प्रकार रेखांकित करेंगे?
ध्रुपद बिहार के बगैर अधूरा है. दरभंगा घराने के बिना ध्रुपद गायकी की कल्पना भी नहीं कर सकते. दरभंगा के अलावा बिहार में ध्रुपद के कई और भी प्रसिद्ध घराने हुए. दु:ख की बात है कि बिहार एक ऐसा दौर भी आया जब ध्रुपद कहीं खो सा गया था. बाद में इसी बिहार से ऐसे लोग भी हुए, जिन्होंने ध्रुपद को दुबारा से लोकप्रिय बनाया. यही नहीं पखावज, नृत्य, ठुमरी और दादरे की परंपरा बिहार में बेहद समृद्ध रही है. संगीत में बिहार की इतनी महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसे कोई नहीं नकार सकता.
-पं सियाराम तिवारी की ध्रुपद गायन में भूमिका पर आप क्या कहेंगे?
पंडित जी ध्रुपद के अग्रणी गायकों में से एक थे. पूरे भारत में जहां भी ध्रुपद की चर्चा होती है तो पंडित सियाराम तिवारी को नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है. पंडित जी ने अपना सारा जीवन ध्रुपद को समर्पित कर दिया था. उन्होंने ध्रुपद को ऐसे समारोहों में प्रस्तुत किया, जिसने ध्रुपद गायकी को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया. यह समझिए कि यह बेहद जरूरी भी था. वे नामी संगीतज्ञ के साथ ही कर्मयोगी भी थे.
-संगीत की नयी पौध बिहार से बाहर जा रही है, इसके लिए सरकार को क्या करना चाहिए?
बिहार सरकार को इस दिशा में आगे आना चाहिए. वैसे यहां के कलाकार देश भर में नाम कमा रहें हैं. यहां संगीत की नयी पौध को सींचने की आवश्यकता है, ताकि संगीत की पुरानी परंपरा यहां विकसित हो सके. बिहार सरकार को अपनी अपनी बेहतर सांस्कृतिक नीति बनानी चाहिए. शास्त्रीय संगीत के विकास के लिए विशेष प्रयास करने की जरूरत है, ताकि युवा पीढ़ी को इसकी अहमियत बतायी जा सके. विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक संगीत की शिक्षा मुहैया कराने की जरूरत है. संगीत से जुड़ीं मृतप्राय संस्थाओं को दुबारा से जिंदा किया जाना चाहिए. बिहार में कई बड़े संगीत घराने रहें, उन्हें प्रोत्साहित करने से नये लोग संगीत से जुड़ेंगे.