नयी दिल्ली: देश के जाने माने औद्योगिक घराने टाटा समूह ने एक बार फिर सिंगापुर एयरलाइंस के साथ नयीविमानन सेवा शुरु करने के लिये हाथ मिलाया है. करीब 18 साल पहले भी टाटा ने सिंगापुर एयरलाइंस के साथ इसका प्रयास किया था जो तब सफल नहीं हो पाया.टाटा समूह की ज्यादातर कंपनियों की होल्डिंग कंपनी […]
नयी दिल्ली: देश के जाने माने औद्योगिक घराने टाटा समूह ने एक बार फिर सिंगापुर एयरलाइंस के साथ नयीविमानन सेवा शुरु करने के लिये हाथ मिलाया है. करीब 18 साल पहले भी टाटा ने सिंगापुर एयरलाइंस के साथ इसका प्रयास किया था जो तब सफल नहीं हो पाया.टाटा समूह की ज्यादातर कंपनियों की होल्डिंग कंपनी टाटा संस ने आज सिंगापुर एयरलाइंस के साथ नई एयरलाइन कंपनी के लिये आपसी सहमति के ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये. प्रस्तावित नई एयरलाइन कंपनी में टाटा संस की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी जबकि शेष 49 प्रतिशत सिंगापुर एयरलाइंस के पास होगी. टाटा समूह ने कहा है कि उसने नई एयरलाइन के लिये विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) के पास मंजूरी के लिये आवेदन किया है.
इससे पहले इस साल फरवरी में मलेशिया की एयर एशिया के साथ बजट एयरलाइन शुरु करने के लिये टाटा समूह के साथ भागीदारी की है.नयी विमानन कंपनी के बोर्ड में शुरु में तीन सदस्य होंगे. इनमें दो सदस्य टाटा संस की तरफ से होंगे और एक सिंगापुर एयरलाइंस का होगा. बोर्ड के चेयरमैन टाटा संस की तरफ से नामांकित प्रसाद मेनन होंगे.
टाटा और सिंगापुर एयरलाइंस का भारतीय नागरिक विमानन क्षेत्र में प्रवेश करने का यह एक और प्रयास है. इससे पहले वर्ष 1995 में नई पूर्ण विमानन सेवा के लिये टाटा समूह ने विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड में आवेदन किया था जिसे एक साल बाद मंजूरी मिल गई लेकिन बाद में 1997 में नागरिक उड्डयन नीति में बदलाव होने से यह उपक्रम शुरु नहीं हो पाया. नीति में घरेलू एयरलाइन में विदेशी विमानन कंपनियों को इक्विटी लेने से रोक दिया गया था.टाटा समूह का यह प्रयास सफल नहीं हो पाया और कई साल बाद टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा ने यह टिप्पणी भी की थी कि यह प्रयास इस लिये सफल नहीं हो पाया कि टाटा समूह ने एक केंद्रीय मंत्री को रिश्वत देने से इनकार कर दिया था.
सरकार ने पिछले साल ही निवेश नीति में बदलाव करते हुये घरेलू एयरलाइन में विदेशी एयरलाइन कंपनियों को 49 प्रतिशत निवेश की अनुमति दी है. वर्ष 2,000 में टाटा और सिंगापुर एयरलाइंस ने मिलकर एयर इंडिया की 40 प्रतिशत भागीदारी के लिये बोली लगाई लेकिन दिसंबर 2001 में इससे पीछे हट गये. राजनीतिक विरोध के चलते एयर इंडिया का विनिवेश नहीं हो पाया.
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