नयी दिल्ली: भारत के लिए कच्चे तेल की रणनीतिक भंडारण क्षमता बढ़ाने और इसका बुनियादी ढांचा विकसित करने का यह बेहतर अवसर है इसका सबसे बड़ा कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम घटने से इस समय इसपर काफी कम लागत आयेगी.
एसोचैम द्वारा तैयार दस्तावेज के मुताबिक ‘‘भारत के लिये पिछले कई दशकों में यह बेहतर मौका है, जब कच्चे तेल के रणनीतिक भंडार को तीन महीने की खपत से भी अधिक समय के लिये बढाया जा सकता है.’’ दस्तावेज के अनुसार मई 2014 के मुकाबले नवंबर 2014 में देश के कच्चे तेल के आयात बिल में तीन अरब डालर मासिक की कमी आई है. इन छह महीनों के दौरान कच्चे तेल की आयात बास्केट का दाम 106 डालर प्रति बैरल से घटकर 60 डालर प्रति बैरल रह गया है. ऐसे में मौजूदा दाम पर कच्चे तेल का रणनीतिक भंडार बनाना 40 प्रतिशत सस्ता पडेगा.
एसोचैम दस्तावेज में इस मामले में सचेत भी किया गया है. इसमें कहा गया है कि कच्चे तेल के सस्ते दाम का लाभ उठाने के लिये बुनियादी ढांचा खड़ा करना जरुरी है, जिसमें समय लगेगा. ‘‘आज यदि नई भंडारण सुविधा का निर्माण कार्य शुरु किया जाता है तो कोई नहीं जानता कि जब तक यह तैयार होगी तब तक दाम कहां होंगे, फिर भी क्षमता बढाई जानी चाहिये.’’
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के 2001 के समझौते के अनुसार सभी सदस्य देशों को 90 दिन की खपत लायक पेट्रोलियम पदार्थों का रणनीतिक भंडार बनाना जरुरी है. एसोचैम महासचिव डी.एस. रावत ने कहा, पहले इस बेंचमार्क को हासिल करना चाहिये उसके बाद आगे बढना चाहिये ताकि तेल मूल्यों के झटकों से बचा जा सके.
देश में इस समय तीन स्थानों पर कच्चे तेल की रणनीतिक भंडारण सुविधा बनाने का काम चल रहा है. इनमें एक आंध्र प्रदेश में और दो कर्नाटक में हैं. इसके अलावा राजस्थान में बीकानेर, गुजरात में राजकोट, कर्नाटक में पादुर और ओड़िशा में चांदीखोलीन में भी भंडारण सुविधायें विकसित करने का प्रस्ताव है. सरकार की इन पर 5,000 से 6,000 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है.
एसोचैम ने कहा है कि सरकार को यह निवेश बढाकर 15,000 से 20,000 करोड़ करना चाहिये और इसमें इंडियन स्ट्रेटजिक पेट्रोलियम रिजर्व लिमिटेड (आईएसपीएल) नामक विशेष निकाय के साथ साथ तेल विपणन कंपनियों को भी निवेश बढाना चाहिये. आईएसपीएल के लिये भी संसाधन बढाये जाने चाहिये. आईएसपीएल की स्थापना रणनीतिक भंडार बनाने के लिये की गई है.
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