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बढ़ते खर्च और कम होती आय से बिगड़ा संतुलन, आखिर ठप हुई जेट एयरवेज

जेट एयरवेज की सेवाओं के स्थगन ने भारतीय विमानन सेवा के संकट को गंभीर बना दिया है. हजारों कर्मचारियों के भविष्य के साथ बैंकों के खरबों रुपये डूबने का खतरा भ्ी पैदा हो गया है.कर्ज और घाटे में डूबे इस क्षेत्र में पहले भी सेवाएं बंद हुई हैं तथा मौजूदा सेवाएं वित्तीय कठिनाई के साथ […]

जेट एयरवेज की सेवाओं के स्थगन ने भारतीय विमानन सेवा के संकट को गंभीर बना दिया है. हजारों कर्मचारियों के भविष्य के साथ बैंकों के खरबों रुपये डूबने का खतरा भ्ी पैदा हो गया है.कर्ज और घाटे में डूबे इस क्षेत्र में पहले भी सेवाएं बंद हुई हैं तथा मौजूदा सेवाएं वित्तीय कठिनाई के साथ चल रही हैं. संकट के शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करने के कारण ऐसा हो रहा है. इस स्थिति में विमानन सेवा के नियमन, संचालन और प्रबंधन पर ठोस सोच-विचार की जरूरत को रेखांकित करते हुए जेट एयरवेज और उड्डयन क्षेत्र पर आधारित इन दिनों की प्रस्तुति…
जेट एयरवेज संकट
भारतीय विमानन क्षेत्र की हालत
मोदी सरकार के पांच वर्षों के दौरान नागरिक विमानन क्षेत्र पर काफी ध्यान दिया गया. इस अवधि में घरेलू विमानन बाजार ने लगातार 52 महीनों तक दो अंकों में वृद्धि दर्ज की.
इसी दौरान ‘उड़ान’ योजना समेत कई बड़ी घोषणाएं भी की गयीं. वहीं दूसरी तरफ, विमानन बुनियादी ढांचा, खासकर हवाई यातायात प्रबंधन, हवाई यातायात की मांग के साथ तालमेल बिठाने में नाकाम रहा. अब जबकि वर्तमान सरकार के पांच वर्ष पूरे होने जा रहे हैं, सभी निजी एयरलाइंस कंपनियां कर्ज में डूबी हुई हैं.
इनमें जेट एयरवेज का भविष्य तो अधर में लटका हुआ है. विशेषज्ञों की मानें, तो मोदी सरकार के पांच वर्षों के दौरान विमानन क्षेत्र मिश्रित फलदायी रहा है. रीजनल कनेक्टिविटी योजना ‘उड़ान’ के शुरू होने और हवाई ईंधन टैक्स में 11 प्रतिशत की कटौती से इन पांच वर्षों में एयरलाइंस के प्रचालन के दोगुने होने में मदद मिली है. हालांकि, भारत सरकार इस उद्योग के हितधारकों की अनेक समस्याओं को हल करने में विफल रही है.
इन कंपनियों ने भी समेटा अपना कारोबार
आर्थिक संकट से गुजर रही एयरलाइन जेट एयरवेज की सभी विमान सेवाएं अस्थायी तौर पर बंद हो गयी हैं. इस एयरवेज पर आठ हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है. वित्तीय संकट व अन्य कारणों से इससे पहले भी कई ऑपरेटरों को अपनी विमान सेवा बंद करनी पड़ी है. इनमें किंगफिशर जैसी एयरलाइन कंपनी भी शामिल है. जेट एयरवेज के अलावा, बीते सात वर्षों में देश की पांच एयरलाइन कंपनियां अपना कारोबार समेट चुकी हैं.
किंगफिशर
विजय माल्या के स्वामित्व वाली यूबी ग्रुप की किंगफिशर एयरलाइंस 2003 में शुरू हुई थी. लेकिन, लगातार कर्ज में डूबे रहने के कारण इस एयरलाइंस ने 2012 में अपना कारोबार बंद कर दिया. किंगफिशर के मालिक विजय माल्या पर बैंकों के नौ हजार करोड़ रुपये का बकाया है और वे देश से भागकर ब्रिटेन में रह रहे हैं.
जूम एयर
सुरेंद्र कुमार कौशिक के स्वामित्व वाली घरेलू एयरलाइंस जूम एयर 2013 में अस्तित्व में आयी थी. वर्ष 2017 में इसने अपनी पहली उड़ान भरी. तेजपुर, जोरहट, नयी दिल्ली, औरंगाबाद, जबलपुर, दुर्गापुर और कोलकाता इसके उड़ान क्षेत्र थे. प्रचालन शुरू होने के लगभग डेढ़ साल बाद जुलाई, 2018 में नागर विमानन नियामक ने जूम एयर को सुरक्षा नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया और इसकी हवाई सेवा को निलंबित कर दिया.
एयर पेगसास
बेंगलुरु की एयरलाइंस एयर पेगसास ने 2015 में हवाई सेवा की शुरुआत की थी. यह कंपनी डेकोर एविएशन की सहायक कंपनी थी. वर्ष 2016 में वित्तीय संकट के कारण यह सेवा भी बंद हो गयी.
एयर कोस्टा
रीजनल एयरलाइंस कंपनी एयर कोस्टा का विस्तार दक्षिण भारत में था. एलईपीएल ग्रुप ने वर्ष 2013 में इसकी शुरुआत की थी और 2016 में इसे देश भर में प्रचालन का परमिट मिला. इसके बाद इस एयरलाइंस ने छोटे शहरों पर ध्यान केंद्रित किया. लेकिन वित्तीय संकट के कारण वर्ष 2017 में इस कंपनी को भी अपनी उड़ान सेवा बंद करनी पड़ी.
एयर कार्निवल
सीएमसी ग्रुप की एयरलाइन एयर कार्निवल की स्थापना 2013 में एसआई नाथन ने की थी. इस एयरलाइन ने अपनी पहली उड़ान 2016 में भरी. शुरुआती महीनों में इसका विस्तार दक्षिण भारत में हो रहा था, लेकिन करीब एक साल में इस पर कर्ज हो गया तथा 2017 में यह कंपनी बंद हो गयी.
ठीक नहीं था जेट का मैनेजमेंट
डॉ सनत कौल
पूर्व संयुक्त सचिव, नागरिक उड्डयन मंत्रालय
जेट एयरवेज कंपनी का मैनेजमेंट ठीक नहीं था, इसलिए इतनी सारी मुश्किलें आती गयीं और आज वह बंद हो गयी है. टिकटों को लेकर प्राइस वार में फंसना एक वजह तो है, क्योंकि इसका बिजनेस मॉडल बहुत महंगा था. लेकिन प्राइस वार बड़ी वजह नहीं है. बाकी हर चीज में इन्होंने कीमतों को ऊंची रखा है. बाकी एयरलाइंस ने कई यात्रा स्थानाें के लिए यात्रियों को बहुत सारी आसानियां दे रखी हैं, जो जेट एयरवेज नहीं देता था. वहीं, इसके भीतर अपने खर्चे बहुत ज्यादा थे.
जेट एयरवेज के बिजनेस मॉडल को इस तरह से समझा जा सकता है. मान लीजिये, अगर किसी गांव में कोई व्यक्ति फाइवस्टार होटल खोले, जहां पहले से ही छोटे-छोटे और सस्ते होटल मौजूद हैं, तो क्या वह फाइवस्टार अपनी महंगी सुविधाओं के साथ वहां बिजनेस कर पायेगा? क्या ग्रामीण लोग या बाहरी लोग उस गांव में उन महंगी सुविधाओं के लिए फाइवस्टार में जायेंगे?
अगर जायेंगे, तो वे क्यों जायेंगे जब वहां उनके बिजनस से संबंधित कोई मीटिंग या कोई और काम आदि न हो? इन सब चीजों को देखते हुए अगर वह व्यक्ति वनस्टार या टूस्टार होटल खोलता है, तो एक वह अपना बिजनेस कर लेगा, लेकिन फाइवस्टार होटल को तो उसे बंद ही करना पड़ेगा. यही हुआ जेटएयरवेज के साथ. तमाम एयरलाइंस की भीड़ में उसने अपनी ऊंची कीमतों से समझौता नहीं किया, नतीजा यह हुआ कि खर्च बढ़ता गया और आय कम होती चली गयी.
जब से लोकॉस्ट स्ट्रक्चर वाले एयरलाइंस आये हैं, तब से ही जेटएयरवेज की मुश्किलें बढ़नी शुरू हो गयी थीं, क्योंकि जेटएयरवेज का कॉस्ट स्ट्रक्चर बहुत ही ऊंचा था. अभी तो इन सब चीजों का ऑडिट होना बाकी है कि और किन-किन चीजों ने इस एयरलाइन को कर्ज में डुबाया. जहां तक सरकार की बात है, तो वह पहले ही दो एयरलाइंस में फंसी हुई है- एक तो एयर इंडिया में और दूसरे किंगफिशर मामले में, इसलिए सरकार से तो कोई मदद मिलने से रही. और सरकार को मदद करने की जरूरत भी क्या है, क्योंकि यह तो एक प्राइवेट कंपनी का मामला है. हां, सरकार इतना जरूर कर सकती है कि वह एयरलाइंस कंपनियों से टैक्स बहुत ज्यादा वसूलती है, उसमें कुछ कटौती कर दे.
अगर एयरलाइन को चलाने का खर्च 30-40 प्रतिशत है, तो यह बहुत ज्यादा है. एयरलाइंस को मिलनेवाले तेल में ज्यादा टैक्स लगाया है सरकार ने, साथ ही सेल्स टैक्स, इंपोर्ट ड्यूटी और सुरक्षा आदि के अलावा भी कई और टैक्स हैं, जो सब मिलकर एयरलाइंस के खर्चे को बढ़ा देते हैं, जिससे उसकी आमदनी स्वाभाविक तौर पर घटने लगती है. एयरलाइंस से सरकार सिक्योरिटी टैक्सतो लेती ही है, एयरपोर्ट भी इस मद में कुछ चार्ज करता है. हालांकि, ये सभी एयरलाइंस के लिए है, फिर भी जिनका बिजनेस मॉडल ज्यादा महंगा होगा, उसके लिए पैसे की बचत कर पाना मुश्किल तो हो ही जायेगा.
इन सब बातों के मद्देनजर सरकार एक काम कर सकती है कि एक कमिटी गठित करके उड्डयन उद्योग की इन परेशानियों का हल निकाला जाये.
सरकार की जिम्मेदारी भले ही एक एयरलाइन बचाने की न हो, लेकिन पूरी एविएशन इंडस्ट्री को बचाने की पूरी जिम्मेदारी सरकार की है. जहां तक जेट एयरवेज के किसी द्वारा खरीदे जाने का प्रश्न है, तो इस पर कर्ज बहुत है, इसलिए उम्मीद नहीं है कि कोई भारतीय कंपनी इसको खरीद ले. जो भी कंपनी इसको खरीदेगी, उसे कर्जों के साथ ही खरीदना होगा. लेकिन यह मुश्किल लग रहा है. अगर कोई विदेशी कंपनी इसे खरीदती है, तो उसके लिए फायदे वाली बात होगी. इसके कई उदाहरण मौजूद हैं.
बैंक यूनियन की सरकार से अपील
जेट एयरवेज के अस्थायी तौर पर बंद होने के बाद 19 अप्रैल को अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ ने सरकार से जेट एयरवेज के अधिग्रहण की अपील की है, ताकि हजारों कर्मचारियों के भविष्य को बचाया जा सके.
घरेलू विमानन सेवाओं का हालिया प्रदर्शन
इस वर्ष जनवरी से फरवरी के बीच घरेलू एयरलाइंस से 238.56 लाख यात्रियों ने उड़ान भरी, जबकि बीते वर्ष इसी अवधि में यात्रियों की संख्या 222.09 लाख थी. इस लिहाज से देखा जाये, तो इस वर्ष इन दो महीनों में यात्रियों की संख्या में 7.42 प्रतिशत का इजाफा हुआ.
बीते वर्ष जनवरी से दिसंबर के बीच घरेलू हवाई सेवाओं ने 1,389.76 लाख यात्रियों को हवाई यात्रा करायी थी, जबकि 2017 में 1,171.76 लाख लोगों ने यात्रा की थी. इस हिसाब से 2017 की तुलना में 2018 में हवाई यात्रियों की संख्या में 18.60 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी.
स्रोत : डीजीसीए
विमानन सेवा की मुश्किलें
देश में 700 से अधिक विमानों में 100 विभिन्न कारणों से उड़ान नहीं भर पाते हैं. इस कारण 500-600 उड़ानें रोजाना रद्द होती हैं, जिससे 75-80 हजार यात्री रोजाना परेशान होते हैं. उन्हें या तो यात्रा स्थगित करनी पड़ती है या महंगे टिकट लेने पड़ते हैं.
जेट एयरवेज और एयर इंडिया को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है, तो इंडिगो और गो-एयर के पास कर्मचारियों की कमी है. स्पाइस जेट को अपने सभी 12 बोइंग 737 मैक्स की उड़ान रोकनी पड़ी है, क्योंकि इस मॉडल के दो विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद भारत समेत कई देशों ने इनके उड़ने पर रोक लगा दी है.
टिकटों के सस्ते रहने से भी हवाई सेवाओं को नुकसान हो रहा है. इंडिगो ही एकमात्र ऐसी सेवा है, जो 2011 से लगातार मुनाफे में है. बाकी सभी घाटे में हैं या सिर्फ खर्च ही निकाल पा रहे हैं. स्पाइसजेट की स्थिति हाल में कुछ सुधरती दिख रही है.
सार्वजनिक क्षेत्र की सेवा एअर इंडिया सरकारी सहयोग से चल रही है और लगातार कोशिशों के बावजूद उसके बड़े हिस्से के लिए खरीदार नहीं मिल रहे हैं. इस सेवा का घाटा बढ़ता जा रहा है. इस पर अभी कर्ज और घाटा (सहयोगी कंपनियों को मिलाकर) करीब 54 हजार करोड़ रुपये है.
विशेषज्ञों का मानना है कि अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव तथा बढ़ते खर्च के कारण विमानन सेवा में सुधार की अभी कोई संभावना नहीं है.

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