नयी दिल्ली : केंद्र सरकार की 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की योजना के तहत उनके द्वारा उपजाये जाने वाले अनाजों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य को डेढ़ गुना अधिक निर्धारित करने वाला फाॅर्मूला तय कर दिया है. मीडिया की खबरों में इस बात की चर्चा की जा रही है कि किसानों को डेढ़ गुना ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के दो फॉर्मूले को मंगलवार को मंत्रियों के समूह ने अंतिम रूप दे दि. हालांकि, दावा यह भी किया जा रहा है कि इन दो नये फाॅर्मूले को जल्द ही कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा जायेगा.
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किसानों को उनकी फसल पर ज्यादा दाम देने के मुद्दे पर मंगलवार को मंत्रियों के समूह की बैठक आयोजित की गयी थी. इसमें तय एक फॉर्मूले के मुताबिक, केंद्र सरकार बढ़ी हुई न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से सीधे अनाज खरीदेगी. इसका पूरा खर्चा केंद्र सरकार उठायेगी. अनाज की खरीद, रख-रखाव की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी. वहीं, दूसरे फॉर्मूला के अनुसार, मध्य प्रदेश के भावांतर योजना के तहत स्कीम चलायी जायेगी. भावांतर योजना के तहत किसानों के कम दाम पर अनाज बेचने पर मजबूर होने पर केंद्र सरकार किसान को भरपाई करेगी. यह राज्य सरकार के पर निर्भर करेगा कि वह इनमें से किस फॉर्मूले को अपनाना चाहती है.
गौरतलब है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट 2018-19 में घोषणा की थी कि सरकार किसानों को उनकी फसलों की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देगी. हालांकि, वित्त मंत्री की इस घोषणा के बाद कृषि विशेषज्ञ और जनता के बीच अब तक हैरानी का माहौल बना है कि जो सरकार आज से चार साल पहले जब किसानों के दर्द को सुन सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार फसलों की लागत का 50 फीसदी से ज्यादा एमएसपी दे, तब इसी सरकार ने साफ-साफ इनकार कर दिया था. लगातार दो फसल वर्ष 2016-17 (जुलाई-जून) और 2017-18 में धान, गेहूं, दलहन, तिलहन आदि फसलों का रिकाॅर्ड उत्पादन होने के बावजूद किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिल पाया था.
2004 में यूपीए ने भी बनाया था राष्ट्रीय आयोग
इसके पहले वर्ष 2004 में भी कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाया था. इसका लक्ष्य भारत में खेती, खाद्यान्न उत्पादन, सूखे की समस्या से निपटने के लिए अपने सुझाव देना था. बाद में इस आयोग को स्वामीनाथन आयोग के नाम से जाना गया. अपने गठन के दो साल बाद वर्ष 2006 में आयोग की आेर से पेश की गयी रिपोर्ट में किसानों को फसलों पर आयी लागत का 50 फीसदी न्यूनतम समर्थन मूल्य देने को कहा गया था.
स्वामीनाथ आयोग ने तीन श्रेणी की सिफारिश की थी
2006 में सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में स्वामीनाथन आयोग ने फसल पर आने वाली लागत को तीन हिस्सों क्रमशः A2, A2+FL और C2 में बांटा था. A2 श्रेणी में किसानों के फसल उत्पादन में किये गये सभी तरह के नकदी खर्च को शामिल किया गया था. इसमें बीज, खाद, रासायनिक खाद, मजदूरी की लागत, ईंधन की लागत, सिंचाई आदि लागतें शामिल होती हैं. इसी तरह A2+FL की श्रेणी में नकदी लागत के साथ ही परिवार के सदस्यों की मेहनत की अनुमानित लागत को भी जोड़ा गया था, जबकि C2 श्रेणी में फसल उत्पादन में आयी नगदी और गैर-नकदी के साथ ही जमीन पर लगने वाले लीज रेंट और जमीन के अलावा दूसरी कृषि पूंजियों पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया था.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने की थी 50 फीसदी न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात
बजट के दौरान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था ि किसानों को उनकी फसल में लागत पर 50 फीसदी न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा. हालांकि, उन्होंने यह साफ नहीं किया था कि यह समर्थन मूल्य किस तरह की लागत पर मिलेगा. स्वामीनाथन आयोग आने के बाद से किसानों की लागत को तीन श्रेणियों में बांटा गया है. किसानों से सीधे अनाज खरीद के दौरान किसानों को अगर C2 लागत पर 50 फीसदी न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता है, तो उन्हें फायदा होगा आैर अगर A2 श्रेणी के आधार पर 50 फीसदी न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता है, तब इससे किसानों को लाभ होने के आसार कम ही नजर आते हैं.
जानिये, कैसे तय हो सकता है न्यूनतम समर्थन मूल्य
एक अनुमान के मुताबिक, 2017-18 में उपजाये गेहूं की A2+FL श्रेणी की लागत 817 रुपये प्रति क्विंटल बैठती है. इसमें 50 फीसदी लागत जोड़ देने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य 1325 रुपये प्रति क्विंटल हो जाती है. इसी तरह गेहूं की ही C2 श्रेणी के आधार पर लागत 1256 रुपये प्रति क्विंटल बैठती है और इसमें 50 फीसदी लागत और जोड़ने से न्यूनतम समर्थन मूल्य 1879 रुपये प्रति क्विंटल हो जाती है. केंद्र सरकार ने अक्टूबर, 2017 में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1735 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था. इस तरह से किसान को प्रति क्विंटल गेहूं पर 144 रुपये कम मिलेंगे.
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