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अनिल शुक्ल

वरिष्ठ पत्रकार

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संजय चौहान की विदाई के मायने

रिसर्च और पत्रकारिता संजय चौहान की रग-रग में व्याप्त थी. उम्र के पूर्वार्द्ध के उत्तरार्द्ध में वह अपनी इन्हीं 'रगों' को लेकर मुंबई की मायानगरी में दाखिल हुए और उन्होंने स्क्रिप्ट के चाल-चरित्र को बदल दिया. वह कहते थे कि वह बिना रिसर्च और डॉक्यूमेंटेशन के कथा या पटकथा की परिकल्पना ही नहीं कर सकते.

असाध्य रोगों से जूझते बुजुर्ग

वृद्धों की उपेक्षा केवल सरकार द्वारा ही नहीं की जाती है, बल्कि उस परिवार, जहां वे रहते हैं, में भी वे प्राय: उपेक्षा के शिकार होते पाये जाते हैं. 'बुढ़ापे की लाठी' मुहावरा तो प्राचीन काल में गढ़ा गया था.