सुखदेव भगत को अपनों ने ही दिया दगा
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मोदी लहर में तीसरी बार चुनाव जीते सुदर्शन भगत
सुखदेव भगत को अपनों ने ही दिया दगा तीन बार चुनाव जीत कर हैट्रिक बनायी और लाेहरदगा संसदीय क्षेत्र में एक नया इतिहास रच दिया लोहरदगा : लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र से दो बार सांसद रह चुके केंद्रीय मंत्री सुदर्शन भगत ने लगातार तीन बार चुनाव जीत कर हैट्रिक बनायी है और एक नया इतिहास रच […]
तीन बार चुनाव जीत कर हैट्रिक बनायी और लाेहरदगा संसदीय क्षेत्र में एक नया इतिहास रच दिया
लोहरदगा : लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र से दो बार सांसद रह चुके केंद्रीय मंत्री सुदर्शन भगत ने लगातार तीन बार चुनाव जीत कर हैट्रिक बनायी है और एक नया इतिहास रच दिया. इसके पूर्व कोई भी सांसद लगातार तीन बार चुनाव नहीं जीता था.
मोदी लहर में सुदर्शन भगत की स्वच्छ छवि ने उनकी चुनावी नैया पार करा दी. राष्ट्रहित के मुद्दे पर चुनाव जीतने वाले केंद्रीय मंत्री सुदर्शन भगत के चुनाव प्रचार के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोहरदगा आये थे, इसका जबर्दस्त प्रभाव देखा गया. केंद्र सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने वाले लोगों ने भाजपा को वोट देकर साबित कर दिया कि मोदी है, तो मुमकिन है.
सुदूरवर्ती ग्रामीण पहाड़ी इलाकों में गैस चूल्हा और सिलिंडर ने कोरामीन का काम किया. लोगों ने पहले भी कहा था कि राष्ट्रवाद और मोदी के नाम पर वोट दिये हैं. मोदी बनाम अन्य की तर्ज पर यह चुनाव लड़ा गया. सुदर्शन भगत के निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के सुखदेव भगत के साथ कुछ कांग्रेसियों ने जम कर भितरघात किया.
सुखदेव भगत के पक्ष में चुनाव प्रचार करने कांग्रेस पार्टी का कोई भी बड़ा नेता नहीं आया. इस क्षेत्र के भी बड़े नेता कहे जाने वालों ने उनसे दूरी बनाये रखी और अपने स्तर से उन्हें हानि पहुंचायी. पूरे चुनाव के दौरान सुखदेव भगत अकेले नजर आये. पार्टी की संगठनात्मक स्थिति भी उतनी मजबूत नहीं थी जिसकी बदौलत वे लोकसभा चुनाव का वैतरणी पार कर पाते. पार्टी के अंदर व्याप्त अंतरकलह का भी प्रभाव इस चुनाव में देखने को मिला. कटु सत्य तो यह है कि उन्हें कांग्रेसियों ने ही हरा दिया. हालांकि इसका अंदाजा सुखदेव भगत को पहले से ही था.
उन्होंने मेहनत तो जबर्दस्त की, लेकिन मोदी की आंधी के सामने वे टिक न सकें. इस चुनाव में सुखदेव भगत की हार भविष्य में कई नये चौंकाने वाला समीकरण बनायेगा. वैसे भी कहा जाता है कि कांग्रेस पार्टी में नेता ज्यादा और कार्यकर्ता कम हैं. नेताओं के तीन-पांच का सीधा प्रभाव चुनाव पर पड़ा और सुखदेव भगत लोकसभा चुनाव हार गये. चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेसी खेमे में उदासी है.
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