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स्वास्थ्य के लिए हानिकारक आरओ वाटर सिस्टम!

कोलकाता: साफ, स्वास्थ्यवर्धक पेयजल उपलब्ध कराने के लिए रिवर्स-ओस्मोसिस (आरओ) जल शोधक प्रणाली को एक अच्छा आविष्कार माना जाता है, लेकिन अब वैज्ञानिकों का कहना है कि आरओ प्रौद्योगिकी का अनियंत्रित प्रयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकता है. भारत में सबसे लोकप्रिय जलशोधकों में से एक आरओ प्रक्रि या खासतौर से दूषित […]

कोलकाता: साफ, स्वास्थ्यवर्धक पेयजल उपलब्ध कराने के लिए रिवर्स-ओस्मोसिस (आरओ) जल शोधक प्रणाली को एक अच्छा आविष्कार माना जाता है, लेकिन अब वैज्ञानिकों का कहना है कि आरओ प्रौद्योगिकी का अनियंत्रित प्रयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकता है.
भारत में सबसे लोकप्रिय जलशोधकों में से एक आरओ प्रक्रि या खासतौर से दूषित पानी वाले इलाकों में आर्सेनिक और फ्लोराइड जैसे विषाक्त पदार्थो का शोधन करने में कुशल हैं. इसके साथ ही घरेलू और औद्योगिक स्तर पर लगे आरओ सिस्टम इन विषाक्त पदार्थो को वापस भूजल जलवाही स्तर पर पहुंचा देते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि आरओ के गैरपरीक्षित उपयोग को रोकने के लिए नियम बनाने की जरूरत है.
फिल्टर के बाद बचा दूषित पानी है वजह : हाल के एक सर्वे में पाया गया है कि बोतल बंद पानी जैसे औद्योगिक फर्म और घरों में आरओ फिल्टर के बाद बचा दूषित पदार्थ युक्त बेकार पानी भूजल के जलवाही स्तर में वापस डालने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं है. बेकार पानी जलवाही स्तर पर पहुंचने से इनसानों और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. सर्वे के मुताबिक बेकार पानी में सल्फेट, कैल्शियम, बाईकाबरेनेट्स जैसे पूरी तरह विघटित लवण और कार्बनिक पदार्थ तथा आर्सेनिक और फ्लोराइड उच्च मात्र में होते हैं.
30 से 40 फीसदी पानी हो जाता है बेकार
‘करंट साइंस जर्नल’ में 25 अप्रैल को ‘ग्रोथ ऑफ वॉटर प्यूरीफिकेशन टेक्नोलॉजीज इन एरा ऑफ रेगुलेटरी वैकम इन इंडिया’ शीर्षक से प्रकाशित इस सर्वे में शोधन के बाद बचे दूषित बेकार पानी को खत्म करने के उपयुक्त तरीकों के अभाव पर भी सवाल उठाये गये. शोध में बताया गया कि भारत में बोतल बंद पानी बेचने वाली अधिकतर कंपनियां अपने प्लांटों में आरओ प्रणाली का प्रयोग करती हैं, क्योंकि आयन-एक्सचेंज विधि की तुलना में इस प्रणाली में कम निगरानी में अधित मात्र में जल शोधन किया जा सकता है. हालांकि इसमें एक दोष है. औद्योगिक प्रयोग के दौरान कुल उपयोग किये गये पानी में 30 से 40 फीसदी पानी बेकार हो जाता है. जल शोधक बाजार में कदम रखने वाली कंपनी कुचीना के निदेशक निमत बाजोरिया ने बताया कि बचा बेकार पानी चिंता का विषय है. बाजोरिया ने बताया, यह समान और विपरीत प्रतिक्रि या जैसा है. 100 लीटर पानी में केवल 10 से 12 लीटर शुद्ध पानी मिलता है. इसलिए बेकार बचा पानी एक बड़ी समस्या है. लेकिन मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि इससे भूजल को नुकसान हो सकता है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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