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स्वाधीनता आंदोलन की बिखरी कड़ियां – 2 : बैंड पार्टी की मदद से लूटा गया था रेलवे का कैश

रवींद्र कुमार दोपहर में आने के बाद उन्होंने बताया कि ट्रेन छह बजे शाम में आयेगी और उसी के अनुसार सभी लोग तैयार हो जाएं. इसके बाद हथियारों का बंटवारा हुआ, जिसमें रामदेनी सिंह ने अपने पास एक भुजाली रखी. भरत सिंह, चंद्रिका सिंह और त्रिलोकी सिंह को एक-एक भुजाली और दो-दो बम दिये गये. […]

रवींद्र कुमार

दोपहर में आने के बाद उन्होंने बताया कि ट्रेन छह बजे शाम में आयेगी और उसी के अनुसार सभी लोग तैयार हो जाएं. इसके बाद हथियारों का बंटवारा हुआ, जिसमें रामदेनी सिंह ने अपने पास एक भुजाली रखी.

भरत सिंह, चंद्रिका सिंह और त्रिलोकी सिंह को एक-एक भुजाली और दो-दो बम दिये गये. चंद्रमा सिंह को जगरनाथ सिंह ने एक पिस्तौल दी. तय कार्यक्रम के अनुसार रुपये वाला थैला ले जा रहे रेलकर्मी से बैग छीनने का कार्य रामदेनी सिंह ने अपने ऊपर लिया, जिसे लेकर भागने की जिम्मेदारी त्रिलोकी सिंह और चंद्रिका सिंह को दी गयी.

भरत सिंह पहलवानी करते थे, जिस कारण रामदेनी सिंह के पकड़े जाने पर पकड़ने वाले व्यक्ति से मल्लयुद्ध कर रामदेनी सिंह को उन्हें छुड़ाना था. आवश्यकता पड़ने पर चंद्रमा सिंह पर गोली चलाने की जिम्मेदारी दी गयी. जगरनाथ सिंह की ड्यूटी हाजीपुर-बरौनी रेलखंड पर लाइन के पूरब वाली केबिन पर थी, जहां इस डकैती को अंजाम देने के बाद सभी को इकट्ठा होना था, क्योंकि स्थानीय होने के कारण वे आस-पास के गांवों और सुरक्षित भागने के रास्तों से परिचित थे. उन्हें स्टेशन पर इसलिए नहीं रखा गया था कि वहां के कई कर्मचारी उन्हें पहचानते थे.

यह ‘मनी ऐक्शन’ गुरु जी यानी रामदेनी सिंह के नेतृत्व में कार्यान्वित किया गया. जब ये लोग स्टेशन पहुंचे, तो ट्रेन के तीन घंटे विलंब से आने की सूचना मिली. संयोग से प्लेटफॉर्म पर किसी बरात पार्टी से लौटी हुई मुजफ्फरपुर की एक मशहूर बैंड पार्टी को इन लोगों ने देखा, जिसकी ट्रेन 11 अप ट्रेन के बाद थी. रामदेनी सिंह ने उस बैंड पार्टी को 11 अप ट्रेन के अगले डिब्बे के पास बैंड बजाने को यह कहकर राजी कर लिया कि उस ट्रेन के अगले डिब्बे में उनके मालिक आ रहे हैं, जो नामी रईस हैं. यदि उन्हें बैंड पार्टी पसंद आ गयी, तो इनाम देने के साथ ही वे इसे अपने लड़के की शादी के लिए ठीक भी कर लेंगे.

बैंड पार्टी को अगले डिब्बे के पास बैंड बजाने को इसलिए कहा गया कि गार्ड का डिब्बा पीछे होता है, जिससे कैश बैग भेजा जाता है. ट्रेन जैसे ही आने को हुई, प्लेटफॉर्म के अगले हिस्से में बैंड पार्टी ने मनोयोगपूर्वक बैंड बजाना शुरू कर दिया, जिसे सुनने के लिए यात्री अगले हिस्से में इकट्ठे हो गये. नतीजतन प्लेटफॉर्म का पिछला हिस्सा प्राय: खाली हो गया .

वह 15 जून, 1931 ई. की नौ बजे रात्रि का वक्त था, जब 11 अप ट्रेन हाजीपुर प्लेटफॉर्म पर लगी और स्टेशन मास्टर पंडित शिवपाल मिश्र, ट्रेन्स क्लर्क केसी चटर्जी, रेलवे चौकीदार देवनाथ सिंह और खलासी झपसी दो सीलबंद कैश बैग लेकर स्टेशन से ट्रेन के कैश सेफ में जमा करने के लिए निकले.

झपसी और देवनाथ सिंह जैसे ही गार्ड के डिब्बे में प्रवेश करने को हुए, रामदेनी सिंह ने देवनाथ सिंह की आंख पर जोर से मुक्का मारा, जिससे एक कैश बैग गिर गया, लेकिन दूसरा थैला उसकी कांख में ही दबा रह गया.

तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार त्रिलोकी सिंह और चंद्रिका सिंह गिरे हुए कैश बैग को उठाकर भाग निकले. इधर स्थिति भांपते ही देवनाथ सिंह डाकू-डाकू चिल्लाने लगा, जिस पर भरत सिंह ने एक बम का विस्फोट किया. डाकू-डाकू का शोर सुनकर जब स्टेशन मास्टर ने इधर-उधर नजर दौड़ायी, तो उन्हें साधु वेशधारी रामदेनी सिंह के सिवा कोई नहीं दिखा. अत: फैजाबाद के उस बलिष्ठ स्टेशन मास्टर ने रामदेनी सिंह को दबोच कर नीचे गिरा दिया.

रामदेनी सिंह को बुरी तरह दबा देखकर चंद्रमा सिंह ने दो फायर किये, जिनमें पहली गोली छाती की बगल में घाव करती हुई निकल गयी, लेकिन दूसरी गोली पीठ में घाव करती हुई पेट में चली गयी. स्टेशन मास्टर की पकड़ से छूटने के बाद रामदेनी सिंह भागने ही वाले थे कि ट्रेन्स क्लर्क केसी चटर्जी डाकू-डाकू चिल्लाता हुआ इन्हें पकड़ने के लिए दौड़ा, जो चंद्रमा सिंह के तीसरे फायर की गोली से ठेहुने में लगी सख्त चोट के कारण वहीं गिर गया.

तभी प्वाइंट्स मैन गोपाल भगत शोर सुनकर वहां पहुंचा और रामदेनी सिंह को पकड़ लिया, लेकिन रामदेनी सिंह भुजाली से उस पर वार करते हुए निकल भागे.

इधर देवनाथ सिंह से दूसरा बैग छीनने के लिए भरत सिंह का जो मल्ल युद्ध चल रहा था, उसमें देवनाथ सिंह नीचे दबा हुआ जोर-जोर से चिल्ला रहा था. इसे सुन कर बत्ती (लाइट) दिखलाने वाले एक रेल कर्मचारी ने दौड़ते हुए वहां पहुंचकर बत्ती (लाइट) से ही भरत सिंह के सिर पर प्रहार कर दिया, जिससे लगी चोट से भरत सिंह के सिर से तेजी से खून बहने लगा. फलत: उन्हें देवनाथ सिंह को छोड़कर भागना पड़ा. इसके बाद सील बैग लिये देवनाथ सिंह वहीं बैठ गये. प्वाइंट्समैन गोपाल भगत ने उनसे बचा हुआ सील बैग लेकर सहायक स्टेशन मास्टर हरिशंकर गौड़ को दे दिया.

सहायक स्टेशन मास्टर ने इसे ट्रेन के गार्ड सीएस पियर्स के यहां जमा कर दिया. इस वारदात में गोली से घायल स्टेशन मास्टर शिवपाल मिश्र और ट्रेन्स क्लर्क केसी चटर्जी को पटना जेनरल अस्पताल भेजा गया, जहां स्टेशन मास्टर की मृत्यु हो गयी. शेष घायलों का इलाज हाजीपुर सदर अस्पताल में चला .

इधर पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सभी लोग सिग्नल के पास इकट्ठे हुए, जहां जगरनाथ सिंह इन लोगों की प्रतीक्षा कर रहे थे. वहां से जगरनाथ सिंह के साथ रेलवे लाइन पकड़े हुए ही सभी लोग और पूरब की तरफ बढ़े और एक मठ में रुककर रेलवे के कैश बैग को खोला, जिसमें 630 रुपये 12 आने थे.

इस रकम से इन्हें थोड़ी निराशा भी हुई, क्योंकि उस दिन अधिक रुपये भेजे जाने की इन्हें सूचना थी. थैले में ईंट-पत्थर भरकर इनलोगों ने उसे मठ के कुएं में डाल दिया. इसकी आवाज सुनकर मठ के महंत जाग गये और इस आवाज का पता लगाने आये, तब इन लोगों ने बताया कि हाजीपुर से तारीख करके लौट रहे हैं और पानी भरते समय कुएं में लोटा गिर गया है, जिसे ये लोग बाद में आकर निकाल लेंगे. वहां से कुछ और आगे बढ़ने पर जगरनाथ सिंह और चंद्रमा सिंह से विदा लेकर शेष चार लोग आगे बढ़े और सुबह होने पर बैकठ घाट से गंगा नदी पार कर मारूफगंज पहुंचे.

बैकठ घाट के ठेकेदार रामदौली (तत्कालीन मुजफ्फरपुर और अब वैशाली जिला) निवासी दुंग बहादुर सिंह से परिचित होने के कारण उनके पूछने पर इनलोगों ने उनसे बहाना बनाया कि मारुफगंज बाजार से सामान खरीदने जा रहे हैं. दिन भर मारुफगंज में रहकर शाम को ये लोग दीघा घाट पहुंचे, जहां से तीन बजे खुलने वाले कार कंपनी के जहाज से ये लोग बगही (दिघवारा) पहुंचे. रामदेनी सिंह सुरक्षा की दृष्टि से अपने गांव न जाकर दिघवारा में ही एक मुसलमान के घर में ठहर गये और शेष लोग अपने-अपने घर चले गये.

आधार सामग्री : (1.) टेरोरिज्म इन इंडिया : शैलेश्वर नाथ, (2.) पोलिटिकल (स्पेशल) बिहार तथा उड़ीसा सरकार फाइल संख्या – 46 (सी), 1931 ई., (3.) बिहार में स्वातंत्र्य आंदोलन का इतिहास – डॉक्टर केके दत्त, भाग-2, (4.) भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास – मन्मथ नाथ गुप्त, (5.) भूपेंद्र अबोध की ‘सागर थे आप’ नामक पुस्तक में ‘गंगा के गर्भ में विलीन होती क्रांति कथा’ शीर्षक से प्रकाशित निबंध, (6.) आजादी की जंग (बिहार के मशहूर क्रांतिकारी) – डॉक्टर एनएमपी श्रीवास्तव

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