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राम के निहितार्थ को समझने की जरूरत हिंदू धर्म शास्त्र में भगवान के तीन प्रमुख रूप माने गये हैं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश. इन तीनों में विष्णु के ही अवतार बहुत हुए हैं. राम भी विष्णु के ही अवतार हैं. चूंकि वे विष्णु के अवतार हैं, इसलिए एक तरह से वे विष्णु ही हैं. धार्मिक […]

राम के निहितार्थ को समझने की जरूरत

हिंदू धर्म शास्त्र में भगवान के तीन प्रमुख रूप माने गये हैं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश. इन तीनों में विष्णु के ही अवतार बहुत हुए हैं. राम भी विष्णु के ही अवतार हैं. चूंकि वे विष्णु के अवतार हैं, इसलिए एक तरह से वे विष्णु ही हैं. धार्मिक और आध्यात्मिक लोग राम के प्रति वैसी ही आस्था रखते हैं, जैसी आस्था विष्णु के प्रति है. और भारत के सर्वसाधारण जनमानस में राम आस्था के प्रतीक हैं. लेकिन, राम केवल आस्था तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे तो असीम हैं. यही वजह है कि जो रामकथा है, उस पर लगभग तीन सौ पुस्तकें लिखी गयी हैं और विभिन्न भाषाओं में लिखी गयी हैं.
यहां तक कि उर्दू और फारसी में भी रामकथा पर किताबें लिखी गयी हैं. उर्दू में तो कई किताबें हैं, लेकिन फारसी में केवल एक ही किताब है, और वह हिंदुस्तान में ही लिखी गयी है. वह है- मसीही रामायण. मसीही नाम से भ्रम होता है कि शायद यह किसी ईसाई ने लिखी होगी, लेकिन इसे मुल्ला वसी ने लिखी थी. जामिया मिलिया इस्लामिया की लाइब्रेरी में लगभग सारी उर्दू रामायणें मौजूद हैं. अगर तीन सौ से ज्यादा रामकथाएं हैं, तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राम के प्रति कितना श्रद्धा है, कितनी अकीदत है, और कितना विश्वास लोगों में है. सभी रामकथाओं पर बात करना तो मुश्किल है, लेकिन वाल्मिकी के रामायण पर चर्चा की जा सकती है.
पुरुषों में भी उत्तम पुरुष राम
राम को हर व्यक्ति अपने नजरिये से देखता है. राम का एक रूप वह है, जिसमें धार्मिक नजरिये से उन्हें अवतार माना जाता है. वह सही है. लेकिन, एक लेखक के तौर पर मैं उन्हें मनुष्य के भीतर एक आदर्श पुरुष के रूप में देखता हूं. यह तो सभी जानते हैं कि उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, यानी जो पुरुषों में भी उत्तम हो. जब हम मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं, तब पुरुष शब्द का बोध होता है न! और पुरुष एक पुलिंग शब्द है. राम को अगर पुरुष कहा गया है, इसका अर्थ है कि वे मनुष्य हैं.
क्योंकि ईश्वर न तो पुरुष है, न ही स्त्री है. हालांकि, हम लोग ईश्वर को भी पुलिंग की ही संज्ञा देते हैं, स्त्रीलिंग की नहीं. इसलिए राम अगर मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, तो इसका अर्थ है कि वे पुरुष हैं, पर हां, पुरुषों में भी वे उत्तम हैं. अब अगर राम और पुरुष, इन दोनों को आमने-सामने रखकर देखें, तो राम ने पुरुष के सभी रूपों को जिया है. जैसे कि- पुत्र के रूप को, भाई के रूप को, पति के रूप को, पिता के रूप को, और अगर घर में कोई और भी है, तो उस रिश्ते के रूप को भी उन्होंने जिया है. और सभी रूपों में उनका जीवन एक आदर्श पुरुष का जीवन रहा है. यही वह तत्व है, जो उनकी प्रासंगिकता को हमेशा बरकरार रखता है.
आदर्श पुत्र राम
विश्वामित्र ऋषि को यज्ञ में जब राक्षस बाधा पहुंचाने लगे, तब वे राजा दशरथ के पास गये और राम-लक्ष्मण को मांगा. दशरथ ने कहा कि हम अपनी पूरी सेना भेज देंगे, क्योंकि राम के बिना तो हम रह ही नहीं सकते. लेकिन, विश्वामित्र अड़ गये कि नहीं मुझे राम-लक्ष्मण ही चाहिए, ये दोनों ही राक्षसों का संहार करेंगे. बहुत दुखी मन से दशरथ ने राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेजा. और पिता का आदेश पाकर दोनों भाई चले भी जाते हैं. जब राम को वनवास मिला, तब भी उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया. इसीलिए वे पुरुषों में सबसे उत्तम पुरुष कहे जाते हैं. इसीलिए उनका जीवन पूरी मानवता के लिए एक संदेश है, जिसका हमें अनुसरण करना चाहिए.
राम-सीता का पूर्व राग
विवाह से पहले ही राम और सीता एक-दूसरे को देखते हैं और दोनों में एक प्रेमभाव पैदा हो जाता है. इसको भरत मुनि ने अपने नाट्य शास्त्र में ‘पूर्व राग’ कहा है, यानी विवाह से पहले उत्पन्न हुआ लगाव. राम जब जनक की पुष्प वाटिका में जाते हैं, तो वहां वे सीता को देखते हैं और दोनों एक दूसरे को अपलक देखते रह जाते है- ‘भए विलोचन चारु अचंचल, मनहु सकुचि निमी तजे दिगंचल.’ जैसे दोनों की खूबसूरत आंखें एक-दूसरे से मिलकर ठहर-सी जाती हैं. यही पूर्व राग है. राम ने पति के रूप में भी अपनी बेहतरीन भूमिका का निर्वाह किया है. जब उन्हें वनवास जाना होता है, तब भरत मनाने जाते हैं, पर पिता की आज्ञा नहीं टाल सकते थे, इसलिए वे भरत को मना कर देते हैं.
अयोध्या : यानी जहां युद्ध न हो
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम पर आजकल जिस तरह की देश में राजनीति हो रही है, वह बहुत ही दुखद है. मैं इस बात को राजनीतिक नजरिये से नहीं, बल्कि साहित्यिक नजरिये से बताना चाहूंगा. सारी राजनीति अयोध्या में राममंदिर को लेकर हो रही है. अयोध्या का क्या अर्थ है? अयोध्या का अर्थ है- ‘जहां युद्ध न हो.’ आज अयोध्या एक शहर का नाम भले है, लेकिन तब अयोध्या वह स्थान था, जो युद्ध का विरोधी था. अयोध्या का शासन का अर्थ है- शांति एवं सद्भाव का शासन. राम ने तो लंका में युद्ध किया है, अयोध्या में नहीं. लेकिन, हमारी राजनीति ने अयोध्या में युद्ध का माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.
राम का दुखमय जीवन
राम की भक्ति की बात बहुत होती है, लेकिन राम के जीवन पर बिल्कुल बात नहीं होती है. राम का पूरा जीवन दुखमय बीता है, लेकिन फिर भी वे अपने निर्वाह-कर्तव्य से आजीवन डिगे नहीं. राम जैसा दुख इस दुनिया में किसी ने नहीं झेला. राम के जीवन को देखें आप, तो बचपन से ही वे दुख में थे. वे पैदा हुए और थोड़े से बड़े हुए, तो विश्वामित्र उन्हें राक्षसों का संहार करने के लिए लेकर चले गये. अपने उस पिता से बिछड़ गये, जिसने राम के बिना रह पाने की कभी कल्पना भी नहीं की थी.
सीता से शादी हो गयी, तो उसके कुछ समय बाद ही उन्हें वनवास जाना पड़ा. एक बार फिर से वे अपने पिता से बिछड़ गये और राज-पाट छोड़कर जंगल में रहने चले गये. कुछ समय बाद रावण ने सीता को उठा लिया. राम अपनी पत्नी से बिछड़ गये और उसके लिए उन्हें लंका जाकर युद्ध करना पड़ा. वहां से जब वापस लौटे, तो थोड़ा-सा जय-जयकार हुआ, लेकिन फिर उन पर अभियोग लगा दिया गया कि उन्होंने सीता का निष्कासन किया. इस वियोग में वे कितना तड़पे होंगे, इसका किसी को अंदाजा नहीं हो सकता.
उनका जीवन बहुत दुखमय था. वे कभी सुखी नहीं रहे. मेरी इस बात का लोग बुरा मानेंगे, लेकिन यही सत्य है कि राम को जल-समाधि लेकर अपना जीवन समाप्त करना पड़ा. राम के दुख से हमें सबक लेनी चाहिए कि जिसने इतना दुख झेलने के बाद भी उफ्फ तक नहीं किया हो, उसके नाम पर हम कितनी गंदी राजनीति करते हैं! अगर राम की प्रासंगिकता बरकरार रखनी है, तो हमें राम के नाम को केवल भक्ति के आधार पर नहीं, बल्कि उनके जीवन के आधार पर आधुनिक जीवन-दर्शन से संबद्ध करके देखना होगा.
हमारे समाज में राम
राम की आदर्श प्रासंगिकता कैसे बरकरार रहे और अगली पीढ़ी को कैसे समृद्ध करे, इस पर हमें विचार करना चाहिए. हमारे पास सशक्त माध्यम हैं, जिनके जरिये राम के आदर्श को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. लेकिन विडंबना है कि आज राजनीति और धर्म हमारे समाज और मीडिया पर हावी हैं. लेखक और बुद्धिजीवियों की बात कोई सुननेवाला नहीं है.
नेता-प्रवक्ता, मुल्ला-पंडित और ढोंगी बाबाओं की बातें ही सुनी जा रही हैं. ऐसे बुरे समय में हम जी रहे हैं, जिसमें न हम कुछ कर पा रहे हैं और न ही नयी पीढ़ी के लिए कुछ अच्छा सोच या कर पा रहे हैं. राम का संदेश पूरे समाज में पहुंचाने की जरूरत है, लेकिन इसके लिए राजनीति से बचना होगा और लेखकों-बुद्धिजीवियों को ही आगे आना होगा. राम के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने को हमें अपना कर्तव्य समझना चाहिए.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
अल्लामा इकबाल के राम
लबरेज है शराबे-हकीकत से जामे-हिंद1
सब फल्सफी हैं खित्ता-ए-मगरिब के रामे-हिंद2
ये हिंदियों के फिक्रे-फलक3 उसका है असर,
रिफअत4 में आस्मां से भी ऊंचा है बामे-हिंद5
इस देश में हुए हैं हजारों मलक6 सरिश्त,7
मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे-हिंद
है राम के वजूद8 पे हिंदोस्तां को नाज,
अहले-नजर समझते हैं उसको इमामे-हिंद
एजाज9 इस चिरागे-हिदायत,10 का है यही
रोशन तिराज सहर11 जमाने में शामे-हिंद
तलवार का धनी था, शुजाअत12 में फर्द13 था,
पाकीजगी14 में, जोशे-मुहब्बत में फर्द था.
शब्दार्थ
1- हिंद का प्याला सत्य की मदिरा से छलक रहा है.
2- पूरब के महान चिंतक हिंद के राम हैं.
3- महान चिंतन:
4- ऊंचाई.
5- हिंदी का गौरव या ज्ञान.
6- देवता.
7- ऊंचे आसन पर.
8- अस्तित्व.
9- चमत्कार.
10- ज्ञान का दीपक.
11- भरपूर रोशनी वाला सवेरा.
12- वीरता.
13- एकमात्र.
14- पवित्रता.
रामायण एक वैश्विक आख्यानः पौला रिचमैन
मूर्धन्य विद्वान प्रोफेसर पौला रिचमैन ने दक्षिण एशिया में राम कथा की विविधता और विभिन्नता पर दो महत्वपूर्ण ग्रंथों का संपादन किया है. वे बरसों से दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों की राम कथा परंपराओं पर शोधपरक लेखन करती रही हैं. ‘नर्तकी डॉट कॉम’ की ललिता वेंकट को 2008 में दिये इस साक्षात्कार में उन्होंने राम के आख्यानों पर अपने विचार साझा किया है.
< तमिल, तेलगू, मलयालम और कन्नड़ भाषाओं में रामायण के आधुनिक पुनर्पाठ में विशेष मुद्दों, घटनाओं और चरित्रों की भिन्न तरीके से अभिव्यक्ति पर.
इन चारों भाषाओं में कुछ मुद्दे और प्रश्न बार-बार आते हैं- सीता को देखने का नजरिया, हाशिये के किरदारों पर पुनर्विचार की कोशिश, और कथित राक्षसों को समझने के तरीके निकालना. चूंकि रामकथा के बारे में अधिकांश शोध वाल्मिकी के ‘रामायण’ या तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ पर आधारित हैं, इसलिए दक्षिण भारत के पुनर्पाठों पर ध्यान देने से हमें नये दृष्टिकोण मिलते हैं. इसके अलावा, भले ही अधिकतर लोग रामकथा को प्राचीन महाकाव्य युग से संबद्ध देखते हैं, ये आधुनिक पुनर्पाठ यह जानने की कोशिश करते हैं कि पात्र और उनके असमंजस किस तरह से हमारी अपनी दुनिया से जुड़ते हैं. ऐसा कर ये पुनर्पाठ कथा को आज की पीढ़ी के लिए जीवित रखते हैं.
< पश्चिमी दुनिया से होने के नाते आप वैश्विक संस्कृति में रामायण की भूमिका को कैसे देखती हैं?
पहली बात तो यह कि रामकथा एक क्लासिक है, जीवन में चुनौतियों एवं बाधाओं के सामने कैसे मनुष्य अर्थ और व्यवस्था रचता है- यह गाथा इस बारे में हैं. अपने विस्तार, गहनता, चरित्रों की व्यापकता (सीता की माता से लेकर शंबुक की पत्नी तक) और कथा-समूहों (रावण के शैशवावस्था से लेकर हनुमान के बचपन तक) के कारण सभी क्लासिकों की तरह राम और सीता की गाथा भी आज भी हमारे लिए अर्थपूर्ण है. दूसरी बात, ऐसे लोग, जिनके लिए रामायण केंद्रीय महत्व रखता है, वे आज पूरी दुनिया में हैं जिनमें भारत, थाईलैंड, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, फीजी, त्रिनिदाद, सूरीनाम, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, यूरोप के अनेक हिस्से और अन्यत्र शामिल हैं. इस तरह यह वास्तव में एक वैश्विक आख्यान बन चुका है और साथ ही वैश्विक रंगमंच का हिस्सा भी.
< आख्यान की मौखिक परंपराओं और आस्थाओं का पूर्वी रामायणों पर प्रभाव पर
जिस प्रकार से दक्षिण भारत में कुछ विशेष मुद्दे बार-बार आते हैं, वैसे ही पूर्वोत्तर में कुछ अन्य बिंदु उभरकर आते हैं. मैं भारत में किसी इलाके में पहली बार जाती हूं, यह मेरा सौभाग्य होता है कि मुझे कथा को नये दृष्टिकोण से देखने का मौका मिलता है. रामायण परंपरा एक ऐसा आख्यान है जो इतना समृद्ध है कि कोई एक पाठ या प्रदर्शन इसे पूरी तरह से समाहित ही नहीं कर सकता है.
< दक्षिण एशिया के समाज-संस्कृति को गढ़ने में रामायण की क्या भूमिका रही?
यह गाथा दक्षिण एशिया की संस्कृति को आकार देने में प्रमुख कारक रही है और आज भी इसकी महत्ता बरकरार है. इस विषय पर मेरे दीर्घ शोध काल में मैंने पाया है कि रामायण की कथाओं पर आधारित कहानियां और नाटक सबसे सुंदर साहित्यिक उपलब्धियों में हैं तथा इनमें राम और सीता की कथा को बहुत गंभीरता से बयान किया गया है.
प्रो अब्दुल बिस्मिल्लाह
वरिष्ठ सािहत्यकार

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