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काशी में जीत या मिलेगा मोक्ष!

समीरात्मज मिश्र भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नरेंद्र मोदी के वाराणसी से चुनाव लड़ने की घोषणा कर तमाम अटकलों पर विराम लगा दिया. वाराणसी सीट बेहद दिलचस्प होनेवाली है, क्योंकि आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने मोदी को टक्कर देने का एलान किया है. उन्होंने कहा है कि वाराणसी की जनता कहेगी, […]

समीरात्मज मिश्र

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नरेंद्र मोदी के वाराणसी से चुनाव लड़ने की घोषणा कर तमाम अटकलों पर विराम लगा दिया. वाराणसी सीट बेहद दिलचस्प होनेवाली है, क्योंकि आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने मोदी को टक्कर देने का एलान किया है. उन्होंने कहा है कि वाराणसी की जनता कहेगी, तभी वह चुनाव लड़ेंगे. बहरहाल, इस सीट पर एक पार्टी के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार का सामना एक अन्य पार्टी के पीएम पद के अघोषित उम्मीदवार से होगा. वरिष्ठ पत्रकार अतुल चंद्रा कहते हैं कि मुकाबला दिलचस्प होगा. केजरीवाल खुद में बहुत विवादास्पद हो गये हैं. वे दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे हैं और मोदी को चुनौती देने के लिए बनारस यह सोच कर आ रहे हैं कि वे दिल्ली का इतिहास यहां भी दोहरा पायेंगे.

हालांकि, ऐसा होगा या नहीं, यह तो समय बतायेगा. लेकिन, कांग्रेस ने ठीक-ठाक उम्मीदवार दिया, तो मुकाबला रोचक होगा. एक बात और है कि कुछ ही दूरी पर आजमगढ़ से मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़ेंगे, इससे पूरे क्षेत्र का चुनाव रोचक होने जा रहा है. मोदी और केजरीवाल के अलावा समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी भी वाराणसी के चुनावी मैदान में हैं. और भी उम्मीदवार हैं. चुनावी संघर्ष बहुकोणीय दिख रहा है. ज्यादातर उम्मीदवार ‘बाहरी’ ही हैं.

इस पर अतुल चंद्रा कहते हैं कि सपा प्रत्याशी कैलाश चौरसिया मिर्जापुर से हैं, सपा, बसपा, कांग्रेस, ‘आप’, मुख्तार अंसारी, मुकाबला छह कोणीय तो साफ दिखाई देता है. देखना है कि केजरीवाल नुकसान किसको पहुंचाते हैं, नरेंद्र मोदी को या कांग्रेस को.

वाराणसी का महत्व
अतुल चंद्रा कहते हैं कि बसपा प्रत्याशी आरपी जायसवाल भी बनारस के लिए एक तरह से अजनबी हैं. हालांकि, सुना जा रहा है कि कि बसपा अपना उम्मीदवार बदल भी सकती है. लेकिन, इस बारे में अभी पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है. दूसरी ओर, वाराणसी से नरेंद्र मोदी के प्रत्याशी बनाये जाने के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं में नया जोश दिख रहा है. धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से वाराणसी का महत्व तो है ही, यह शहर खास अंदाज के लिए भी जाना जाता है.

बनारस को पहचान दिला सकते हैं मोदी
वरिष्ठ साहित्यकार काशीनाथ सिंह कहते हैं कि 70 के दशक के पंडित कमलापति त्रिपाठी के बाद नरेंद्र मोदी के रूप में बनारस को ऐसा कोई नेता मिला है, जो इस नगर को राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय पहचान दे या इस नगर के विकास के लिए कुछ करे. त्रिपाठी कांग्रेस से थे. 1990 के बाद वाराणसी से ज्यादातर भाजपा के सांसद रहे. लेकिन नगर का न कोई विकास हुआ, न देश या विदेश में इसकी कोई छवि बन पायी. बनारस बिहार और उत्तर प्रदेश का लाइन ऑफ कंट्रोल है. एक केंद्र है, जहां से बिहार भी प्रभावित होता है और उत्तर प्रदेश भी. बनारस की एक छवि है और इस छवि के नाम पर और राष्ट्रीय राजनीति में पहचान के लिए इस शहर में एक छटपटाहट रही है. काशीनाथ सिंह कहते हैं कि मोदी बाहरी जरूर हैं, लेकिन बनारस के लोगों को लग रहा है कि उनके आने से शहर का विकास होगा. लेकिन, सवाल है कि क्या खांटी बनारसी अंदाजवाले इस शहर के लोग मोदी को आत्मसात कर पायेंगे? खुद मोदी किस हद तक बनारस के लोगों से जुड़ पायेंगे?

पहली बार पीएम पद का उम्मीदवार वाराणसी से लड़ रहा चुनाव
कांग्रेस खेमा विभाजित लगता है. कयास है कि पार्टी राजेश मिश्र के बजाय अजय राय को टिकट देगी. अजय भूमिहार हैं. वाराणसी में लगभग डेढ़ लाख भूमिहार हैं. लेकिन डर इस बात का है कि राजेश मिश्र का टिकट कटने से दो लाख के आसपासब्राह्नाणनाराज हो जायेंगे. अजय राय तीन बार यहां से भाजपा के विधायक रह चुके हैं और 2009 में सपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं. राजेश मिश्र एक बार वाराणसी से कांग्रेस के सांसद रह चुके हैं, लेकिन इस बार पार्टी को लग रहा है कि अन्य पिछड़ी जाति के वोट के साथ ब्राह्नाण वोट भी भाजपा को जायेंगे, जबकि भूमिहार वोट के साथ शायद ऐसा न हो. यह पहली बार होगा कि बाबा भोलेनाथ की नगरी काशी से कोई प्रत्याशी प्रधानमंत्री पद का मजबूत दावेदार होगा. यह भी पहली बार हो रहा है कि एक अन्य पिछड़ा जाति का व्यक्ति यहां से लोकसभा के लिए भाजपा का प्रत्याशी है.

मतों का ध्रुवीकरण
काशीनाथ सिंह कहते हैं कि भाजपा का नेटवर्क दूसरी पार्टियों की तुलना में मजबूत है. काम करनेवाले लोग ज्यादातर संघ के हैं. पिछले 40 साल में ऐसी कोई शख्सीयत बनारस लड़ने नहीं आयी, जिससे कहा जाये कि कांटे का मुकाबला होगा. यहां सिर्फ धार्मिक और जातीय आधार पर ध्रुवीकरण होता था. मुङो लगता है कि बनारस के लोग इस बार धर्म और जाति को ठेंगा दिखायेंगे. गंगा जिस तरह से मैली होती जा रही है, शहर जिस तरीके से जाम में फंसा है, लोगों को उम्मीद है कि इसी बहाने शहर का विकास तो होगा. लेकिन जहां तक ध्रुवीकरण का सवाल है, तो नरेंद्र मोदी की वजह से ही पूरे देश में आशंका जतायी जा रही है कि ऐसा होगा और इसी ध्रुवीकरण के केंद्रबिंदु मोदी ही बनारस से चुनाव लड़ रहे हैं.

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