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कॉकरोचों को हराना आसान नहीं

अमेरिकी शोधकर्ताओं के दल को यूरोप में कॉकरोचों (तिलचट्टों) की ऐसी किस्म मिली है जो कॉकरोच के लिए तैयार किये गये कीटनाशक को चखते ही पहचान लेते हैं. जैव विकास के परिणामस्वरूप इन कॉकरोचों की स्वाद ग्रंथि परिवर्तित हो गयी है. कीटनाशक गोलियों पर चढ़ायी गयी चीनी की परत इन्हें मीठी के बजाय कड़वी लगती […]

अमेरिकी शोधकर्ताओं के दल को यूरोप में कॉकरोचों (तिलचट्टों) की ऐसी किस्म मिली है जो कॉकरोच के लिए तैयार किये गये कीटनाशक को चखते ही पहचान लेते हैं. जैव विकास के परिणामस्वरूप इन कॉकरोचों की स्वाद ग्रंथि परिवर्तित हो गयी है.

कीटनाशक गोलियों पर चढ़ायी गयी चीनी की परत इन्हें मीठी के बजाय कड़वी लगती है. नार्थ कैरोलिना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के एक दल ने कॉकरोचों को जैम और पीनट बटर में से एक को चुनने का विकल्प दिया. इसके बाद वैज्ञानिकों ने इनकी स्वाद ग्रंथियों का विश्लेषण किया.

लंबा चला अध्ययन

शोधकर्ताओं के इसी दल ने बीस साल पहले किये गये अपने अध्ययन में पाया था कि कॉकरोचों के लिए तैयार किये गये कुछ कीटनाशक उन पर असर नहीं कर रहे हैं क्योंकि कॉकरोच कीटनाशक मिलाकर रखी गयी गोलियों को खाते ही नहीं थे. डॉक्टर कॉबी शाल ने साइंस जर्नल में इस शोध के बारे में समझाते हुए कहा है कि इस नये अध्ययन से कॉकरोचों के इस व्यवहार के पीछे की स्नायविक प्रक्रि या सामने आ चुकी है. इस प्रयोग के पहले चरण में वैज्ञानिकों ने भूखे कॉकरोचों को पीनट बटर और ग्लूकोज वाला जैम खाने को दिया.

कॉकरोचों के लिए तैयार किये गये कुछ कीटनाशक उन पर असर नहीं कर रहे हैं. जैम में ग्लूकोज की मात्र बहुत ज्यादा होती है जबकि पीनट बटर में काफी कम ग्लूकोज होता है. डॉक्टर कॉबी कहते हैं, आप देख सकते हैं कि ये कॉकरोच जेली खाते ही झटका खा कर पीछे हट जाते हैं लेकिन पीनट बटर पर वे टूट
पड़ते हैं.

जैव विकासवाद का ऐतिहासिक होड़

लंदन स्थित इंस्टीट्यूट आफ जूलॉजी की डॉक्टर एली लीडबीटर ने इस प्रयोग पर प्रतिक्रि या देते हुए कहा, यह एक रोचक काम है. डॉक्टर एली कहती हैं, असल में प्राकृतिक चयन जब स्वाद क्षमता को परिवर्तित करता है तो यह जंतुओं को किसी खास स्वाद के प्रति कम या ज्यादा संवेदनशील बना देता है. जैसे कि शहद एकत्रित करने वाली मक्खियां दूसरी मक्खियों की तुलना में चीनी के प्रति कम संवेदनशील होती हैं. इसका मतलब है कि शहद बनाने वाली मक्खियां केवल गाढ़ा शहद ही एकत्रित कर सकती हैं.

जैविक विकास ने उनके लिए चीनी को कम मीठा कर दिया है लेकिन अभी भी वो चीनी को पसंद करती हैं. डॉक्टर एली कहती हैं कि इन कॉकरोचों को चीनी कड़वी लग रही है. प्राकृतिक चयन का यह एक आसान तरीका है जिससे ऐसे कॉकरोचों का जन्म होता है जो चीनी में लपेट कर रखी गयी जहरीली गोलियों को नहीं खाते. डॉक्टर शाल कहते हैं, मनुष्य और कॉकरोचों के बीच चल रही ऐतिहासिक होड़ में यह एक नया अध्याय है. हम कॉकरोचों को मिटाने के लिए कीटनाशक बनाते जा रहे हैं और कॉकरोच इन कीटनाशकों से बचने के उपाय करते जा रहे हैं.

(साभार : बीबीसी)

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