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नदियों को जोड़ने की दिशा में बढ़े कदम

-प्रमोद भार्गव बाढ़ और सुखाड़ की समस्या के समाधान और शहरों तक पर्याप्त मात्र में पानी पहुंचाने के नाम पर नदियों को जोड़ने की परियोजना का ताना-बाना पिछले कई दशकों से बुना जा रहा है. पिछले दिनों इस दिशा में पहली कामयाबी तब मिली, जब मध्य प्रदेश में नर्मदा और क्षिप्रा नदियों को जोड़ने का […]

-प्रमोद भार्गव

बाढ़ और सुखाड़ की समस्या के समाधान और शहरों तक पर्याप्त मात्र में पानी पहुंचाने के नाम पर नदियों को जोड़ने की परियोजना का ताना-बाना पिछले कई दशकों से बुना जा रहा है. पिछले दिनों इस दिशा में पहली कामयाबी तब मिली, जब मध्य प्रदेश में नर्मदा और क्षिप्रा नदियों को जोड़ने का काम पूरा कर लिया गया. हालांकि, पर्यावरणविद् शुरू से ही नदियों को आपस में जोड़ने या उसके प्राकृतिक बहाव में किसी तरह के कृत्रिम व्यवधान को भविष्य के लिहाज से बेहद खतरनाक मान रहे हैं. क्या है नदियों को जोड़ने की परियोजना का इतिहास और वर्तमान तथा क्या हैं इसके नफा-नुकसान, इसी पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज..

जीवनदायी नर्मदा का जल आखिरकार मोक्षदायिनी क्षिप्रा नदी में प्रवाहित हो गया. नर्मदा-क्षिप्रा जोड़ परियोजना का सफल क्रियान्वयन राष्ट्रीय नदी जोड़ो परिकल्पना की एक छोटी, किंतु बेहद अहम कड़ी है और भविष्य की बड़ी नदी जोड़ो परियोजनाओं के लिहाज से एक मिसाल भी है. इस बहुप्रतिक्षित और महत्वाकांक्षी परियोजना को मध्य प्रदेश में तय अवधि में पूरा किया गया है. इन नदियों के जुड़ने के बाद मध्य प्रदेश देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है, जिसने नदियों को जोड़ने का ऐतिहासिक काम किया है. दरअसल, इस राज्य में जल की बहुलता होने के बावजूद लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ता है. हालांकि देश की प्रमुख नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाएं फिलहाल केंद्र सरकार के ठंडे बस्ते में है, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने केंद्र की सहायता के बिना अपने ही बूते दो नदियों को जोड़ने का काम पूरा कर लिया है. 432 करोड़ रुपये की इस परियोजना को ‘नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ जोड़ उद्वहन परियोजना’ नाम दिया गया है.

नर्मदा देश की पांचवीं सबसे बड़ी नदी होने के साथ मध्य प्रदेश की जीवन-रेखा मानी जाती है. मध्य प्रदेश से निकल कर महाराष्ट्र और गुजरात में बहनेवाली नर्मदा तो बारहमासी नदी है ही, लेकिन अब नर्मदा का पानी क्षिप्रा में प्रवाहित हो जाने से यह भी सदानीरा बन जायेगी. मध्य प्रदेश में इंदौर जिले के क्षिप्रा कुंड से निकलनेवाली क्षिप्रा देवास, उज्जैन, रतलाम व मंदसौर जिलों से बहती हुई चंबल नदी में मिल जाती है.

कुंभ में पर्याप्त पानी

प्राकृतिक रूप से क्षिप्रा बारिश का मौसम खत्म होने के तकरीबन छह माह बाद ही सूख जाती थी, जबकि प्रत्येक 12 वर्षो के अंतराल पर इसी नदी के किनारे उज्जैन में ‘कुंभ’ लगता है. कुंभ में यहां आनेवाले देश-दुनिया के करोड़ों श्रद्धालु क्षिप्रा में डुबकी लगा कर पुण्य-लाभ कमाने के साथ मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं. इसीलिए इसे मोक्षदायिनी नदी कहा जाता है. किंतु क्षिप्रा में पर्याप्त निर्मल जल का अभाव रहता था. लफूंदर नदी पर बने गंभीर बांध से पानी लाकर क्षिप्रा में भरा जाता था, जो प्रवाहित न रहने के चलते जल्दी ही गंदा और प्रदूषित हो जाता था. लेकिन अब उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2016 में लगनेवाले कुंभ में श्रद्धालुओं को क्षिप्रा की बहती जलधारा में स्नान करने का मौका मिलेगा. इतना ही नहीं, जलसंकट से जूझ रहे मालवा अंचल के देवास और उज्जैन जिलों की पेयजल समस्या का समाधान होगा. भूजल स्तर बढ़ेगा और 70 नगरों तथा तीन हजार गांवों के लोगों को इस जल का सीधा लाभ मिलेगा. हालांकि इस जल का सिंचाई के लिए उपयोग करने पर प्रतिबंध है. नदियों को जोड़ने की यह परिकल्पना खंडवा जिले में नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बांध के पूरे हो जाने से संभव हुई है. बांध में पर्याप्त पानी है. बांध की नहर से पांच मिलियन क्यूबिक मीटर पानी लिफ्ट करके सिसलिया तालाब में डाला गया. इसे फिर तीन चरणों में बूस्टर पंप से लिफ्ट करके पाइप लाइन के जरिये करीब 50 किलोमीटर दूर इंदौर जिले के उज्जैयिनी गांव के जिजालवंती नाले में डाला गया. इस नाले के माध्यम से नर्मदा का जल क्षिप्रा में प्रवाहित होकर इसे सालभर सदानीरा बनाये रखेगा.

नदियों को जोड़ने की परियोजना का इतिहास

देश की विभिन्न नदियों को जोड़ने का सपना देश की आजादी के तुरंत बाद देखा गया था. इसे डॉ मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया, डॉ राममनोहर लोहिया और डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जैसी हस्तियों का समर्थन मिलता रहा है. हालांकि, आजादी से पूर्व भारत में नदियों को जोड़ने की पहली पहल ऑर्थर कॉटन ने बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में की थी. लेकिन इस माध्यम से फिरंगी हुकूमत का मकसद देश में गुलामी के शिकंजे को और मजबूत करने के साथ देश की बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा का दोहन था, क्योंकि उस समय भारत में सड़कों और रेल-मार्गो की संरचना अपने पहले चरण में थी, इसलिए अंगरेज नदियों को जोड़कर जल-मार्ग विकसित करना चाहते थे.

हालांकि, आजादी के बाद 1971-72 में तत्कालीन केंद्रीय जल एवं ऊर्जा मंत्री तथा इंजीनियर डॉ कनूरी लक्ष्मण राव ने गंगा-कावेरी को जोड़ने का प्रस्ताव भी तैयार किया था. दरअसल, राव खुद जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी की सरकारों में जल संसाधन मंत्री भी रहे. लेकिन जिन सरकारों में राव मंत्री रहे, उन सरकारों ने इस महत्वाकांक्षी प्रस्ताव को कभी गंभीरता से नहीं लिया, अन्यथा चालीस साल पहले ही नदी जोड़ो अभियान की बुनियाद रखी जा चुकी होती. राव के इस प्रस्ताव से प्रभावित होकर प्रख्यात तमिल कवि सुब्रrाण्यम भारती ने भी अपनी कविताओं में कामना की थी कि उत्तर भारत की पवित्र नदियों की अटूट जलराशि दक्षिण की शुष्क भूमि के लिए वरदान बने?

वाजपेयी सरकार में कार्यबल का गठन

आखिरकर, पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार में इस योजना को मूर्त रूप देने की योजना बनायी गयी. हालांकि, एक कार्यबल गठित किये जाने के सिवा वाजपेयी भी इस योजना का क्रियान्वयन नहीं करा सके. दरअसल, इस योजना के औचित्य पर इतने सवाल खड़े कर दिये गये कि इसे शुरू कर पाना संभव ही नहीं हो पाया. खासकर पर्यावरणविद नदियों के प्राकृतिक बहाव में किसी भी तरह के कृत्रिम हस्तक्षेप के खिलाफ थे. इसके साथ ही, इस योजना के अमल में बड़ी मात्र में धन जुटाने और भूमि अधिग्रहण जैसी चुनौतियां भी सामने आयीं. इन्हीं विवादों के क्रम में यह योजना उच्चतम न्यायालय में विवाद के हल के लिए पहुंचा दी गयी. आखिरकार, 28 फरवरी, 2012 को न्यायालय ने सरकार को नदी जोड़ो परियोजना को चरणबद्ध तरीके से अमल में लाने की हरी झंडी दे दी. इस बाधा के दूर होने पर नर्मदा और क्षिप्रा को जोड़ने की इच्छाशक्ति शिवराज सिंह चौहान ने दिखायी और उन्होंने तय समय-सीमा में दो नदियों को जोड़ने के काम को अंजाम तक पहुंचा दिया. अगली बारी अब केन और बेतवा नदियों को जोड़ने की है. मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के भूगोल में बहनेवाली इन नदियों को जोड़ने पर सहमति दोनों प्रदेशों के बीच बन भी चुकी है. लगता है अब नदियों को जोड़ने का सिलसिला अनवरत बना रहेगा.

भारत में नदियों को जोड़ने की परियोजना का सपना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देखा था, ताकि देश के किसी भी किसान को सिंचाई के लिए जलाभाव का सामना नहीं करना पड़े. वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मध्य प्रदेश में महज 14 माह में नर्मदा-क्षिप्रा को जोड़ने की योजना को पूरी हो गयी है. – लालकृष्ण आडवाणी

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