।। अनुज सिन्हा।।
(वरिष्ठ संपादक प्रभात खबर)
एक और पत्रकार साथी ओम प्रकाश चौरसिया का साथ छूट गया. कोलकाता के अस्पताल में कैंसर का इलाज कराने के दौरान उनकी मौत हो गयी. हाल में हमने अपने कई पुराने साथियों को खोया है. चाहे शशिकांत हों, राजीव हों, बुद्धदेव हों या धर्मेद्र हों, मौत की हर खबर के बाद मन विचलित होता रहा. मन में अनेक सवाल उठते रहे. कैसे देखते-देखते जीवन खत्म हो जाता है.
इस बार भी यही सवाल उठ रहे हैं. ओमप्रकाश का मेरा 25 सालों से ज्यादा का संबंध था. गुमला में वह रहते थे. रात हो या दिन, सुविधा हो या नहीं, काम पर कोई फर्क नहीं दिखा. जज्बेवाले पत्रकार. कभी शिकायत नहीं की. सीमित संसाधन में काम के बल पर आगे बढ़ने का तेवर. संवेदनशील पत्रकार और उससे बेहतर इंसान. 17 साल पहले ओमप्रकाश की खबर हमने छापी थी कि कैसे परमवीर चक्र विजेता शहीद अलबर्ट एक्का की विधवा अभाव में जी रही हैं. यह खबर छपने के बाद कार्यक्रम कर सहायता राशि जमा की गयी थी. एक बड़ी राशि अलबर्ट एक्का की विधवा को दी गयी थी. जैसे ही अ़ोमप्रकाश की मौत की खबर मिली, 17 साल पहले छपी अलबर्ट एक्का वाली रिपोर्ट आंखों के सामने से गुजरने लगी. यानी व्यक्ति का काम बोलता है. व्यक्ति चला जाता है, पर उसके काम याद आते हैं. दुनिया का कटु सत्य है कि एक न एक दिन तो हर व्यक्ति को यहां से जाना है. कोई इस धरती का स्थायी बाशिंदा नहीं है. जो व्यक्ति समाज-देश के लिए जितना अच्छा करता है, उसे उतना ही याद किया जाता है.
धार्मिक ग्रंथ भी तो यही संदेश देते हैं. कर्म की प्रधानता. अच्छा कर्म करो, दूसरों को पीड़ा न दो, बेहतर इंसान बनो, दूसरों की सहायता करो. मां-पिता, परिवार, समाज के प्रति अपना दायित्व निभाओ. ये सारी बातें हर कोई जानता है. वह यह भी जानता है कि इस धरती पर हर कोई खाली हाथ आता है और खाली हाथ ही जाता है. आप भले ही लखपती हों, करोड़पति हों या अरबपति, आप एक पैसा भी साथ नहीं ले जा सकते. धन-दौलत, नाते-रिश्ते सब यहीं छूट जाते हैं. फिर भी गलती पर गलती करता है. पाप करता है. अनैतिक तरीके से धन जमा करता है. भौतिक चकाचौंध में इस बात को मनुष्य भूल जाता है कि वह किस्मतवाला है, क्योंकि उसने मनुष्य जाति में जन्म लिया है. ईश्वर ने उसे कुछ करने का अवसर दिया है. काश! इस अवसर का मनुष्य लाभ उठा पाता और इसका सही-सही उपयोग कर पाता. काश! देश के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे भ्रष्ट राजनेता-अफसर ईश्वर की लीला को थोड़ा भी समझ पाते.
लोग याद तो अच्छे और बुरे दोनों व्यक्तियों को करते हैं. जो अच्छा काम करते हैं, उन्हें बेहतर कामों के लिए लोग याद करते हैं. उनकी कमी खलती है. जो गलत काम कर दुनिया से जाते हैं, लोग उन्हें भी याद करते हैं. साथ ही यह कहना भी नहीं भूलते- चलो, अच्छा हुआ कि चला गया, वरना कितनों की जिंदगी और बर्बाद कर देता. अब इंसान को तय करना है कि वह किस रूप में याद करना पसंद करता है.
व्यक्ति जब साथ होता है तो उसका महत्व पता नहीं चलता. यही तो हर इंसान की कमजोरी है. जमाना तेजी से बदल रहा है. परिवार टूट रहे हैं. बुजुर्ग माता-पिता अकेले में किसी तरह जिंदगी के दिन काटते हैं. अकेलापन खलता है. अच्छे पदों पर बैठे बेटों को मां-पिता की सेवा की चिंता नहीं रहती. जब वही माता-पिता दुनिया से विदा ले लेते हैं, तब मां-पिता याद आने लगते हैं. उनका महत्व पता चलता है. लेकिन तब तक काफी विलंब हो गया होता है. पछताने से मां-पिता, मित्र लौटते नहीं हैं. ईश्वर किसी को धरती पर भेजने के पहले उसकी जिंदगी-मौत तय कर देता है. यह इंसान की कमजोरी है जो उस समय को पढ़ नहीं पाता. यह समय अनंत नहीं होता है. कब किसका बुलावा आ जाये, कोई नहीं जानता. बेहतर है कि समय का उपयोग अच्छे काम में करें. अगर साधन है, तो उसे अच्छे काम में लगायें. समाज/परिवार या देश के भले में उसका उपयोग करें. इतिहास याद करेगा. पछतावा नहीं रहेगा.