18.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जिंदा रही तो लाश की तरह मरी तो पचड़े में पड़ी लाश

।। शरद दीक्षित ।। वाराणसी : गाजीपुर की अधंउ गांव की रहनेवाली सरला दुनिया से कूच कर गयी. इस जहान से रुखसत होना उसके लिए नर्क से निकलने के बराबर रहा. किस्मत की मारी इस दुखियारी ने जिंदगी के 55 साल पागलखाने में गुजार दिये. 16 साल की थी तो सहपाठी के कत्ल के झूठे […]

।। शरद दीक्षित ।।

वाराणसी : गाजीपुर की अधंउ गांव की रहनेवाली सरला दुनिया से कूच कर गयी. इस जहान से रुखसत होना उसके लिए नर्क से निकलने के बराबर रहा. किस्मत की मारी इस दुखियारी ने जिंदगी के 55 साल पागलखाने में गुजार दिये. 16 साल की थी तो सहपाठी के कत्ल के झूठे इल्जाम में जेल पहुंच गयी. जेल में पागल हो गयी. इसलिए जब मुकदमे से छूटी तो पागलखाने भेज दिया गया. कुछ लोगों की जिंदगी ऐसी होती है, जो जन्म इसलिए लेते हैं कि मानो वो नर्क भोगने के लिए जन्मे हों, गाजीपुर की सरला का जन्म भी शायद इसलिए हुआ था. अधंउ गांव की रहनेवाली सरला दो बहने थीं.

1959 में 16 साल की उम्र में उसकी शादी सेना में नौकरी करनेवाले हनुमान से हुई. पति ने एक ही दिन बाद सरला को घर से निकाल दिया. सरला दसवीं पास थी. पति के घर से सीधे इलाहाबाद चली गयी और वहां मुट्ठीगंज में एक नर्सिंग ट्रेनिंग स्कूल में दाखिला ले लिया. जिस हॉस्टल मे सरला रहती थी उसी में पास के कमरे में रहनेवाली उसकी सहपाठी की हत्या हो गयी. इल्जाम सरला पर आया और पुलिस ने उसे नैनी जेल पहुंचा दिया. तकरीबन एक साल ट्रायल चला, अदालत ने सरला को बरी कर दिया, लेकिन अभागिन को तो अभी बहुत भुगतना था.

जेल में रहने के दौरान ही वो पागल हो गयी. चिकित्सकों की रिर्पोट पर मुकदमे से बरी होने के बावजूद अदालत ने उसे बनारस के मानसिक चिकित्सालय भेज दिया. उधर, पति द्वारा घर से निकाले जाने के बाद से सरला का जब कोई पता ठिकाना नहीं मिला, तो परिजनों ने उसे मरा मान लिया. पागलखाने में सरला की पूरी जवानी कट गयी. बुढ़ापा आ गया, कमर झुक गयी, आंखों की रोशनी कम हो गयी.

सरला का नाम पागलखाने की चहारदीवारी से तब बाहर निकला जब मानवाधिकार मामलों के वकील रमेश उपाध्याय ने सन 2009 में पागलखाने में 33 साल से बंद शंकर दयाल के मामले में वहां जाना शुरू किया. वहीं रमेश उपाध्याय को पता चला कि पागलखाने में सरला बंद है. सबसे चौंकानेवाली बात यह थी कि सरला को 2005 में मेडिकल बोर्ड ने स्वस्थ करार दे दिया था, बावजूद इसके उसे छोड़ा नहीं गया. रमेश उपाध्याय ने सरला को छोड़ने की दरियाफ्त की तो मानसिक चिकित्सालय ने उसे पागल बताया और उस पर मुकदमा होने की बात कह कर छोड़ने से मना कर दिया.

खबर अखबारों में छपी तो बात गाजीपुर के अंधउ गांव तक पहुंच गयी. सरला के परिजन मानसिक अस्पताल उसका हालचाल लेने पहुंच गये. उधर, रमेश इलाहाबाद गये और मुकदमे का पता लगाया तो पता चला कि सरला तो 48 साल पहले ही अदालत से निर्दोष करार दी जा चुकी है. रमेश ने सरला के मामले को लेकर हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की.

चीफ जस्टिस ने मानसिक अस्पताल से सरला को पेश करने का आदेश दिया. सरला चीफ जस्टिस के सामने पेश हुई. मानसिक अस्पताल ने उसे पागल बताया. चीफ जस्टिस ने उसे ऐसे वृद्धाश्रम में भेजने का विकल्प रखा, जहां मानसिक रोगियों का चिकित्सक हो. ऐसी व्यवस्था न होने पर चीफ जस्टिस ने उसे फिर से मानसिक अस्पताल भेज दिया.

16 साल की उम्र से कैद में रह रही दुखियारी ने 19 फरवरी को शाम पांच बजे मंडलीय अस्पताल में दम तोड़ दिया. उसकी मौत के साथ उसकी पीड़ा का भी अंत हो गया, लेकिन दुर्भाग्य देखिए मरने के बाद सरला की लाश को भी कैद से निकालना कठिन हो गया. परिजन कह रहे थे कि लाश उन्हें सुपुर्द की जाये, ताकि उसका दाह संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से हो सके.

मानसिक चिकित्सालय ने नियम कानूनों का हवाला देते हुए शव उन्हें सौंपने से इनकार कर दिया. दो दिनों की जद्दोजहद के बाद परिजनों को अदालत की शरण लेनी पड़ी. एडीजे प्रथम की अदालत ने मानसिक चिकित्सालय को आदेश दिया कि सरला का शव उसके परिजनों को सौंपा जाये. इस तरह सरला की कहानी का अंत हो गया साथ ही अंत हो गया उसके अरमानों का, जो उसने कभी संजोया होगा.

तकलीफ उसने कितनी सही होगी इसका अंदाजा तो हम आप लगा भी नहीं सकते. बयान करने के लिए शब्दों की भी सीमा है पर तन के कष्ट को इसी से समझिये कि 81 साल की बूढ़ी सरला जब मरी, तो पोस्टमार्टम से पहले उसके शरीर पर गंभीर चोट के पांच निशान देखे गये.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें