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नियम ताक पर तो कैसे होगा अल्पसंख्यक विकास

अल्पसंख्यकों के सामाजिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक विकास के लिए सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं. पर, राज्य में उनका हाल खस्ता है. इन योजनाओं के लिए केंद्र से राज्य को अच्छा-खासा पैसा भी मिलता है, पर राज्य उनका सदुपयोग नहीं कर पाता. राज्य केंद्र को योजनाओं के लिए डीपीआर भी बना कर नहीं दे पाता. […]

अल्पसंख्यकों के सामाजिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक विकास के लिए सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं. पर, राज्य में उनका हाल खस्ता है. इन योजनाओं के लिए केंद्र से राज्य को अच्छा-खासा पैसा भी मिलता है, पर राज्य उनका सदुपयोग नहीं कर पाता. राज्य केंद्र को योजनाओं के लिए डीपीआर भी बना कर नहीं दे पाता. इन योजनाओं को लागू करने के लिए इसमें पंचायत प्रतिनिधियों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जानी चाहिए. पर, सरकार ने इसके लिए कोई पहल नहीं की. राहुल सिंह की रिपोर्ट :

15 फरवरी को राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान में राज्य के कद्दावर नेता बाबूलाल मरांडी अपनी पार्टी झाविमो के झारखंड विकास अल्पसंख्यक मोरचा के बैनर तले जब मुसलमान अधिकार रैली को संबोधित कर रहे थे, तब उन्होंने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों पर आरोप लगाया कि वे उनका (अल्पसंख्यकों का) वोट बैंक की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. मरांडी ने अल्पसंख्यक वोटों के महत्व को बताते हुए कहा कि उनकी पार्टी को मुसलमानों का साथ व सहयोग चाहिए. दरअसल, हकीकत यह है कि अकेले मरांडी को नहीं देश व राज्य के सभी राजनेताओं व पार्टियों को मुसलमान सहित सभी प्रकार के अल्पसंख्यकों का वोट चाहिए. झाविमो की यह रैली चुनावी मौसम में अचानक से अल्पसंख्यकों का महत्व बढ़ जाने का प्रतीक है.

अब अल्पसंख्यकों के लिए इस तरह की रैलियों-सम्मेलनों का सिलसिला दूसरी राजनीतिक पार्टियां भी शुरू करेंगी. इसमें हमारे राजनेता समय भी लगायेंगे और संसाधन भी. पर, अल्पसंख्यकों के विकास के लिए केंद्र सरकार की पहल पर बनाये गये 15 सूत्री कार्यक्रम की समन्वय समिति की बैठक में शामिल होने के लिए आम तौर पर समय हमारे राजनेताओं को नहीं मिलता है. राज्य के ज्यादातर बड़े राजनेता राज्य या फिर स्तरीय 15 सूत्री कार्यक्रम समन्वय समिति के सदस्य हैं. उन योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करवाने में उनकी भागीदारी व सक्रियता अहम हो सकती है.

15 सूत्री कार्यक्रमों का हाल बुरा
अल्पसंख्यकों के सर्वागीण विकास के लिए केंद्र सरकार ने एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम चलाया है, जिसे अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री का 15 सूत्री कार्यक्रम नाम दिया गया है. अल्पसंख्यकों के विकास के लिए संघर्षरत छात्र नेता एस अली कहते हैं : अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए 15 सूत्री कार्यक्रम पर दूसरे राज्यों में 2009 में काम शुरू हो गया, लेकिन झारखंड में उन पर काफी संघर्ष के बाद 2013 में इन योजनाओं पर औने-पौने ढंग से काम शुरू हो सका. 15 सूत्री कार्यक्रम के तहत एकीकृत बाल विकास सेवाओं की समुचित उपलब्धता, विद्यालयी शिक्षा की उपलब्धता को सुधारना, उर्दू शिक्षण के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध कराना, मदरसा शिक्षा का आधुनिकीकरण, अल्पसंख्यक समुदायों के मेधावी विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्ति, मौलाना आजाद शिक्षा प्रतिष्ठान के माध्यम से शैक्षिक अवसंरचना को उन्नत करना, गरीबों के लिए स्वरोजगार तथा मजूदरी रोजगार योजना, तकनीकी शिक्षा के माध्यम से कौशल विकास, आर्थिक क्रियाकलापों के लिए अभिवृद्धि ऋण सहायता, राज्य व केंद्रीय सेवाओं में भर्ती, ग्रामीण आवास योजना में उचित हिस्सेदारी, अल्पसंख्यक समुदायों वाली मलिन बस्तियों की स्थिति में सुधार, सांप्रदायिक घटनाओं की रोकथाम, सांप्रदायिक अपराधों के लिए अभियोजना, सांप्रदायिक दंगों के पीड़ितों का पुनर्वास, जैसे कार्य किये जाने हैं. पर, झारखंड में शायद ही इनमें से किसी योजना के लिए प्रभावशाली ढंग से कार्य चल रहा है. राज्य में 15 सूत्री कार्यक्रमों के लिए राज्य व जिले स्तर पर बनायी गयी समितियों में ही गड़बड़ियां हैं.

सरकार को ही यह पता नहीं है कि जिन लोगों को उसने अल्पसंख्यक कल्याण के लिए विशेष काम करने की योग्यता के आधार पर समिति में शामिल किया है, उन्होंने आखिर अल्पसंख्यकों के लिए क्या किया है(देखें पेज नौ का बॉक्स). पांच अक्तूबर 2012 को राज्य व जिला स्तरीय 15 सूत्री कमेटी में किसी भी पंचायत प्रतिनिधि को जगह नहीं दी गयी, जबकि सरकार अपनी अधिसूचना में खुद कह रही है कि उस समिति में पंचायतों के प्रतिनिधि होने चाहिए. हाल में बाद में कई जिलों में उनको प्रतिनिधित्व दिया गया. जबकि जिस समय यह सूची जारी की गयी, उस समय भी पंचायत प्रतिनिधि राज्य में थे. पिछले साल से लागू हुए बारहवीं पंचवर्षीय योजना में केंद्र सरकार ने 15 सूत्री कार्यक्रमों को लागू करने के लिए जिलों के बजाय प्रखंडों को इकाई बनाने की पहल की. इसके तहत प्रखंड स्तर पर 15 सूत्री समिति के गठन की बात कही गयी.

केंद्र ने राज्य सरकार से कहा कि जिन प्रखंडों में 25 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं, उन्हें चिह्न्ति कर केंद्र को रिपोर्ट करें, ताकि वहां पर एमएसडीपी लागू किया जा सके. अगर किसी प्रखंड में 25 प्रतिशत अल्पसंख्यक नहीं हैं और वहां के किसी राजस्व गांव में 50 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं, तो उस गांव को भी 15 सूत्री कार्यक्रम के दायरे में लाने की बात कही गयी है. पर राज्य में ऐसा एक भी गांव में नहीं हो सका. केंद्र सरकार ने अपने दिशा-निर्देश में कहा कि पंचायत स्तर पर भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए पंचायत स्तरीय समिति हो, जो योजना प्रस्ताव का चयन कर जिले को भेजे. पर, इस संबंध में पंचायत को कोई जानकारी ही नहीं है. ज्यादातर मुखिया व दूसरे पंचायत प्रतिनिधि इससे अनजान है. सरकार और अफसरों को भी लगता है कि अगर उन्हें इसकी जानकारी नहीं है, तो यही बेहतर स्थिति है. क्योंकि जानकारी के अभाव में वे योजनाओं में उनकी सुस्ती का हिसाब नहीं लेंगे. पिछले साल कई प्रखंडों में 15 सूत्री समितियों का गठन किया, जिसमें राजनीतिक कार्यकर्ताओं को जगह दी गयी.

अल्पसंख्यक वित्त का क्या है हाल
झारखंड सरकार अल्पसंख्यकों के विकास के लिए मिलने वाले पैसों का समुचित उपयोग नहीं कर पाती है. पिछले वर्ष जब मुंडा सरकार के पतन के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन था, तब अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री के रहमान खान अल्पसंख्यक कल्याण की योजनाओं की समीक्षा के लिए रांची के दौरे पर आये थे. राज्यपाल, उनके सलाहकार, मुख्य सचिव सहित वरीय अधिकारियों के साथ हुई उस बैठक में केंद्रीय मंत्री ने इस बात पर चिंता जतायी कि राज्य से समय से योजनाओं का प्रस्ताव नहीं मिलने से उनके क्रियान्वयन में दिक्कतें आती हैं.

इस समीक्षा बैठक में यह तथ्य भी सामने आया कि अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में तकनीकी शिक्षा के लिए बनने वाले आइटीआइ एवं पॉलिटेक्निक का डीपीआर नहीं बनने के कारण उस मद की राशि 23.75 करोड़ रुपये केंद्र को वापस भेज दी गयी. 11 वी पंचवर्षीय योजना के तहत केंद्र से एमएसडीपी (बहु क्षेत्रीय विकास योजना) के लिए मिली 145.36 करोड़ रुपये राज्य को मिले थे. इसमें केंद्र को 73.19 करोड़ रुपये का ही उपयोगिता सर्टिफिकेट भेजा गया. जबकि 89 करोड़ रुपये की योजनाओं का उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित रह गया. जिले के स्तर पर 36.13 करोड़ रुपये की राशि के व्यय का केंद्र को उपयोगिता प्रमाण नहीं दिया जा सका. केंद्रीय मंत्री ने राज्य के अधिकारियों को उस बैठक में 10-10 करोड़ की योजनाएं पारित कराने को कहा था. पर, समय पर उसका प्रस्ताव राज्य की ओर से नहीं भेजे जाने के कारण वह पैसा लैप्स हो गया.

राज्य में अल्पसंख्यक विकास के लिए तंत्र नहीं
राज्य में अल्पसंख्यक विकास की योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए तंत्र नहीं है. राज्य में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री व कहने को विभाग तो है, पर अबतक उसका निदेशालय नहीं है. अल्पसंख्यक कल्याण से जुड़ी योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए राज्य स्तर से लेकर जिला स्तर पर अफसर तैनात नहीं किये गये हैं. राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष डॉ शाहिद अख्तर अफसोस प्रकट करते हुए कहते हैं : अफसरों की कमी और निदेशालय नहीं होने का खामियाजा अल्पसंख्यक समुदाय को भुगतना पड़ता है.

वे कहते हैं बिहार सहित देश के कई राज्यों ने प्रदेश के साथ राज्य स्तर तक अफसरों की इसके लिए तैनाती की है. बिहार में अल्पसंख्यक मामलों के जिला स्तरीय अधिकारी होते हैं, जो एमएसडीपी व पंद्रह सूत्री योजनाओं के क्रियान्वयन का काम देखते हैं. वे कहते हैं कि जब अफसर नहीं होते तो अल्पसंख्यकों की योजनाओं का लाभ भी जरूरतमंदों को नहीं मिल पाता. जैसे प्री मैट्रिक तक के 1.02 लाख छात्रों को पिछले साल यहां छात्रवृत्ति दी जानी थी, लेकिन जागरूकता के अभाव में मात्र 65 हजार आवेदन आये. राज्य में काफी प्रयास के बद अल्पसंख्यक वित्त निगम का गठन किया गया, लेकिन उसके प्रभार में जो अधिकारी थे, उन्हें भी किसी जिले में उपायुक्त बना कर भेज दिया गया. इस कारण इसका कामकाज भी प्रभावी नहीं हो पा रहा है.

किसान खुशहाली योजना के लाभ से वंचित रहे अल्पसंख्यक
अल्पसंख्यक समुदाय को विकास योजनाओं में अपेक्षित हिस्सेदारी नहीं मिल पाती है. ऐसा कई बार जानकारी के अभाव में तो कई बार अधिकारियों की उपेक्षा के कारण होता है. पिछले साल राज्य में मुख्यमंत्री किसान खुशहाली योजना के तहत पॉवर टिलर, सिंचाई पंपसेट जैसे कृषि उपकरण किसानों के बीच बांटे जाने थे. आश्चर्यजनक रूप से राज्य के चार जिलों हजारीबाग, बोकारो, धनबाद व गिरिडीह में एक भी अल्पसंख्यक समुदाय के एक भी किसान को इस योजना का लाभ नहीं दिया गया. राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने इस संबंध में जानकारी मिलने के बाद चार जनवरी 2014 को मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर कार्रवाई की मांग की है. जबकि इन जिलों में 13 से 22 प्रतिशत तक अल्पसंख्यक हैं. इन जिलों में अल्पसंख्यक समुदाय के अंतर्गत आने वाले विभिन्न धर्मो को मानने वाले लोग हैं.

पंचायत प्रतिनिधियों की भागीदारी नहीं, जागरूकता की भी कमी
अल्पसंख्यक विकास की विभिन्न प्रकार की योजनाओं का का प्रभावी ढंग से प्रचार-प्रसार नहीं हो सका है. राज्य के ज्यादातर पंचायत प्रतिनिधि इसके विभिन्न पक्षों से अनजान हैं. कुछ जागरूक पंचायत प्रतिनिधि हैं, जो इसको लेकर संवेदनशील हैं. जैसे रांची के कांके से जिप सदस्य मो मजीद अंसारी ने अपने क्षेत्र के रोजगार प्रशिक्षण के जरूरतमंद अल्पसंख्यकों की एक सूची विभाग को भेजी.

अल्पसंख्यक आयोग अब इन लोगों को आजीविका मिशन के माध्यम से रोजगार का प्रशिक्षण दिलाने के लिए प्रयास करेगा. अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष डॉ शाहिद कहते हैं हमलोगों ने सरकार को पत्र लिखा है कि अल्पसंख्यक कल्याण की योजनाओं के लिए जागरूकता लाने के लिए ब्लॉक स्तर पर जन जागरण कार्यक्रम चलाया जाये.

वे कहते हैं कि अभी हमारे पास इतना फंड नहीं होता है कि हम पंचायत प्रतिनिधियों को जागरूक करें. पर, जब हम जिलों में समीक्षा के लिए जाते हैं तो उससे पहले अल्पसंख्यक समुदाय के प्रमुख लोगों को बुलाते हैं और उन्हें इस संबंध में बताते हैं. राज्य में साहिबगंज व पाकुड़ जैसे जिले देश की अल्पसंख्यक बहुलता वाले जिलों की सूची में शामिल हैं. साहिबगंज के जिला परिषद अध्यक्ष रामकृष्ण सोरेन कहते हैं : उनके जिले की 15 सदस्यीय कमेटी में किसी भी जिप सदस्य को सदस्य नहीं बनाया गया है और वे इस संबंध में डीसी व डीडीसी के साथ होने वाली अपनी बैठक में बात करेंगे. हालांकि वे यह कहते हैं कि प्रखंड पर बनी ऐसी समितियों में प्रमुख को अध्यक्ष बनाया गया है. वहीं, पाकुड़ की जिप अध्यक्ष गेमिलीना सोरेन कहती हैं कि उनके यहां बाद में एक जिप सदस्य शिवचरण मालतो को समिति में जगह दी गयी. ओरमांझी के उपप्रमुख मुंजजिर अहमद रजा अफसोस प्रकट करते हुए कहते हैं कि ज्यादातर पंचायत प्रतिनिधियों व मुखियों को अल्पसंख्यक कल्याण की योजनाओं के बारे में पता ही नहीं है, तो भला योजनाएं कैसे प्रभावी होंगी?

झारखंड राज्य अल्पसंख्यक आयोग के सदस्यों का फोन नंबर :

डा शाहिद अख्तर : अध्यक्ष : 0651-2400946

भूषण तिर्की : उपाध्यक्ष : 0651-2400630

याकूब अंसारी : उपाध्यक्ष : 0651-2400951

शैलेंद्र सिंह : सदस्य : 9431184807

एकरारूल हसन : सदस्य : 7739569779

रफीक अनवर : सदस्य : 9431168189

कारी बरकत अली : सदस्य : 9470116006

असगर मिसवाही : सदस्य : 9709077374

सैमुएल गुड़िया : सदस्य : 9334294161

कल्याण भट्टाचार्य : सदस्य : 9835516129

झारखंड राज्य अल्पसंख्यक आयोग

3, आर्टिसियन हॉस्टल, सेक्टर – 3, धुर्वा, रांची – 834004

फोन नंबर : 0651-24000952

इमेल है : hairman@jsmc.in

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