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आतंक का गढ़ पाकिस्तान

यह जगजाहिर तथ्य है कि पाकिस्तान उन गिने-चुने देशों में से है, जहां न सिर्फ बड़ी संख्या में आतंकी संगठन सक्रिय हैं, बल्कि उन्हें बाकायदा सरकारी और सैनिक संरक्षण भी मिला हुआ है. ये संगठन पाकिस्तान के भीतर कट्टरपंथ और उग्रवाद बढ़ाने के साथ भारत, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों को अस्थिर करने की […]

यह जगजाहिर तथ्य है कि पाकिस्तान उन गिने-चुने देशों में से है, जहां न सिर्फ बड़ी संख्या में आतंकी संगठन सक्रिय हैं, बल्कि उन्हें बाकायदा सरकारी और सैनिक संरक्षण भी मिला हुआ है. ये संगठन पाकिस्तान के भीतर कट्टरपंथ और उग्रवाद बढ़ाने के साथ भारत, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों को अस्थिर करने की कोशिश में लगे रहते हैं. एशिया के अन्य हिस्सों में तथा दुनिया में अन्यत्र होनेवाली अनेक आतंकी घटनाओं में भी पाकिस्तान से संचालित गिरोहों की भूमिका रही है. यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र समेत विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने पाकिस्तान से इन तत्वों पर लगाम लगाने की लगातार मांग की है.

कुछ समय से पाकिस्तान ने कुछ गिरोहों पर प्रतिबंध लगाने और कुछ संगठनों का सफाया करने का दावा जरूर किया है, लेकिन लचर नीतियों और पड़ोसी देशों के साथ छद्म युद्ध के रवैये के कारण ऐसे संगठनों की गतिविधियों और उपस्थिति में उल्लेखनीय कमी नहीं आयी है. खुद पाकिस्तान में बीते सालों में हजारों सुरक्षाकर्मी और नागरिक आतंक का शिकार बने हैं, लेकिन राजनीतिक और रणनीतिक लाभ के लिए सरकार और सेना ने कभी भी गंभीरता से इनसे निपटने की कोशिश नहीं की है. पाकिस्तान में सक्रिय बड़े आतंकी और अतिवादी संगठनों से संबंधित जानकारियों और विश्लेषण के साथ पेश है विशेष…

जैश-ए-मोहम्मद

गठन : जनवरी, 2001 (कराची)

संस्थापक : मौलाना मसूद अजहर

प्रमुख आतंकी : मसूद अजहर, मौलाना कारी मंसूर अहमद, अब्दुल जब्बार, मौलाना सज्जाद उस्मान, शाहनवाज खान उर्फ साजिद जेहादी, मुफ्ती मोहम्मद असगर.

जैश-ए-मोहम्मद भारत की संसद पर 13 दिसंबर, 2001 को हमले का मुख्य दोषी है. 2001 में ही भारत और अमेरिका ने इसे आतंकी संगठन घोषित कर दिया था. इंडियन एयरलाइंस विमान अपहरण का दोषी मसूद अजहर रिहाई के बाद कराची में 31 जनवरी, 2001 को जैश-ए-मोहम्मद को लांच किया. इसे खड़ा करने में मजलिस-ए-तवान-ए-इसलामी के मुफ्ती निजामुद्दीन शामजई, दारुल-इफ्ता-ए-वल-इरशाद के मुफ्ती राशिद अहमद और शेख-उल-हदीथ दारुल हक्कानिया के मौलाना शेर अली ने मदद की.

सक्रियता : यह संगठन बनने के बाद से जम्मू-कश्मीर में सक्रिय है. इसके अलावा भारत में कई शहरों में हमले का आरोपी है.

2009 से 11,700 से अधिक मौतें हो चुकी हैं आतंकी हमलों में साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल (एसएटीपी) की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान में इस वर्ष सितंबर तक हुईं 125 आतंकवादी घटनाओं में 831 लोगों की जान चली गयी, जिनमें 222 आम नागरिक, 102 सुरक्षाकर्मी और 507 आतंकवादी/ लड़ाके शामिल हैं. इनमें 82 बड़ी वारदातों (प्रत्येक में तीन या उससे अधिक लोगों की मौत) में 715 लोग (183 अाम नागरिक, 68 सुरक्षाकर्मी और 464 आतंकवादी) मारे गये. विस्फोट की 43 अन्य घटनाओं में 176 लोगों की मौत हो गयी और 520 से ज्यादा लोग घायल हो गये. पिछले वर्ष इसी अवधि में पाकिस्तान में हुई आतंकी वारदातों में 1,334 लोगों की मौत हुई थी, जिसमें 351 आम नागरिक, 107 सुरक्षाकर्मी और 876 आतंकवादी सम्मिलित थे. इसी दौरान 111 बड़े आतंकी हमलों में 1,021 लोग (147 आम नागरिक, 59 सुरक्षाकर्मी और 815 लड़ाके) मारे गये और विस्फोट की 83 घटनाओं में 214 की जानें चली गयीं और 398 घायल हुए थे.

गत वर्ष 2015 में आतंकी हमलों में 3,682 मौतें हुई थीं, जबकि 2014 में मरनेवालों की संख्या 5,496 थी. वर्ष 2015 में हुई कुल मौतों में 940 आम नागरिक, 339 सुरक्षाकर्मी और 2,403 आतंकवादी/ लड़ाके शामिल थे. जबकि 2014 में 1,781 आम नागरिक, 533 सुरक्षाकर्मी और 3,182 आतंकवादी/ लड़ाकों समेत कुल 5,496 लोग मारे गये थे.

इसी प्रकार, 2015 में बम विस्फोट के 216 मामले हुए, जिनमें 495 लोगों की मौत हुई, जबकि 2014 में ऐसे ही घटना में 840 लोग मारे गये थे. इसके अलावा, 2014 में हुए 25 आत्मघाती विस्फोटों में 336 लोगों की जान चली गयी थी, जबकि 2015 में ऐसी 19 घटनाओं में 161 लोग मारे गये.

पाकिस्तान में 2009 से आतंकी घटनाओं बाद कमी आने के बावजूद इस अवधि में 11,704 लोग (2,324 आम नागरिक, 991 सुरक्षाकर्मी और 8,389 आतंकी) मारे गये. वहीं 2013 में हुई 5,379 लोगों की मौतों की तुलना में वर्ष 2014 में कुल 5,496 लोग मारे गये. बलूचिस्तान, केपी, पंजाब और सिंध समेत पाकिस्तान के चारों प्रांत और संघ शासित आदिवासी क्षेत्रों (एफएटीए) एवं पाकिस्तान शासित कश्मीर में भी मृत्यु के मामले में कमी दर्ज की गयी.

जर्ब-ए-अज्ब अभियान से मारे गये 3,400 आतंकी

पाकिस्तान के आदिवासी इलाकों में 15 जून, 2014 को शुरू किये गये जर्ब-ए-अज्ब अभियान के कारण मौत के आंकड़ों में परिवर्तन हुआ. इस अभियान के दौरान सैन्य बलों ने पूरे दम-खम के साथ घरेलू स्तर पर सक्रिय आंतकी समूहों को निशाना बनाया. इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आइएसपीआर) के डायरेक्टर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल असीम सलीम बाजवा ने 12 दिसंबर, 2015 को दावा किया था कि इस अभियान के शुरू होने से लेकर अब तक 3,400 आतंकी मारे जा चुके हैं और उनके 837 ठिकाने तबाह कर दिये गये हैं. लेकिन इस अभियान में पाकिस्तानी सेना के अधिकारी व जवान, फ्रंटियर कॉन्सटाबुलरी, खैबर पख्तूनख्वा और बालोन व सिंध के रेंजर्स समेत 488 लोगों की जान चली गयी और 1,914 अन्य लोग जख्मी हो गये.

3 अप्रैल, 2016 को आइएसपीआर ने दावा किया कि फाटा के उत्तरी वजीरिस्तान एजेंसी में सुरक्षाकर्मियों ने 4,304 वर्ग किमी क्षेत्र से आतंकियों का सफाया कर दिया है अौर वहां पूरे इलाके, विशेष रूप से फाटा के दूर-दराज के इलाकों में सरकारी शासन पुन: बहाल कर दिया गया है.

सामरिक हितों के लिए आतंक कोपालता है पाक

मार्च, 2016 में जारी पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी सेना राज्य हित में काम करनेवाले आतंकियों को नुकसान पहुंचाने से अब तक बचती रही है. इसलामाबाद की आतंकी समूहों पर पहचान आधारित कार्रवाई करने की नीति के कारण ही वहां आतंकवाद अभी तक बरकरार है.

एसएआइआर ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि इसलामाबाद, अपने पड़ाेसी अफगानिस्तान और भारत में अपने सामरिक हितों की पूर्ति के लिए अभी भी आतंकी समूहों काे अपनी जमीन इस्तेमाल करने की इजाजत दे रहा है. इस रिपोर्ट की मानें, तो हाल ही में लश्कर-ए-तैयबा का संस्थापक और जमात-उद-दावा सरगना हाफिज मोहम्मद सईद ने लाहौर में एक शरिया अदालत की शुरुआत की है. पंजाब प्रांत में समानांतर न्याय व्यवस्था स्थापित होने की यह पहली घटना है. सईद का यह कदम स्पष्ट तौर पर इस बात की पुष्टि करता है कि उसे पाकिस्तानी प्रतिष्ठान से सहायता मिल रही है. गौरतलब है कि हाफिज सईद मुंबई में हुए 26/11 हमले का मुख्य साजिशकर्ता है और संयुक्त राष्ट्र ने 2012 में उसके सिर पर 10 मिलियन यूएस डॉलर का इनाम रखा है.

हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान की जमीन से अफगानिस्तान में आतंक फैलाता है. इस संगठन पर यूएस द्वारा बार-बार कार्रवाई का दबाव डालने के बावजूद जर्ब-ए-अज्ब अभियान के दौरान पाकिस्तान द्वारा उस पर कोई प्रत्यक्ष कार्रवाई नहीं की गयी. यूएस नेशनल सिक्योरिटी आर्काइव द्वारा 13 अप्रैल, 2016 को जारी एक रिपार्ट के मुताबिक, हक्कानी नेटवर्क को अभी भी पाकिस्तान के इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस के डायरेक्टर द्वारा कुछ सहायता राशि मुहैया करायी जाती है, जिसमें 30 दिसंबर, 2009 को कैंप चैपमैन में सीआइए फैसिलिटी पर हुए हमलों के लिए प्रदान की गयी 2,00,000 डॉलर की सहायता राशि भी शामिल है.

बलूचिस्तान और पीओके में पाक सेना का खूनी खेल

बलूचिस्तान में जबरन लोगों को गायब करने, उनकी हत्या और जुल्म करने जैसी घटनाओं का संज्ञान नहीं लिये जाने से चिंताएं बढ़ रही हैं. ठीक इसी तरह, पाक शासित कश्मीर में इसलामाबाद के इशारों पर दमनकारी रवैया जारी है. इस क्षेत्र में पाकिस्तान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं. 29 सितंबर, 2015 के वीडियो के अनुसार, मुजफ्फराबाद, गिलगित और कोटली सहित पाक शासित कश्मीर के अनेक इलाकों में पाकिस्तानी प्रतिष्ठानों के खिलाफ और भारत के पक्ष में नारे लगाते दिखे थे. ये लोग आजादी की मांग और अपने अधिकार को लेकर मुखर हो रहे हैं. इस वीडियो के अनुसार, पाकिस्तानी सेना ने इस विरोध दबाने के लिए क्रूरता की हदें पार कर दी.

वाशिंगटन डीसी स्थित, इंस्टीट्यूट फॉर गिलगिट-बाल्टिस्तान स्टडीज के सेंग हसनैन सेरिंग की बात को हवाला देते हुए 2 अक्तूबर, 2015 को जारी रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हम गुप्त रूप से किये जा रहे चीनी अतिक्रमण के साये में हैं.’ हमारे जातीय सफाया का इरादा है : 1990 के बाद इस इलाके में पाकिस्तान ने 3,50,000 उर्दू भाषी सुन्नी मुसलमानों को बसाया था, जिनकी आबादी अब बढ़ कर हमारी आबादी का पांचवां हिस्सा हो गयी है. वे यहां आतंकी शिविर भी चला रहे हैं. खनन से लेकर राजमार्ग बनाने तक चीन की कई सारी परियोजनाएं यहां चल रही हैं, साथ ही बड़ी संख्या में चीनी कामगार भी यहां बस चुके हैं.

रोजगार की कमी को लेकर पाक शासित कश्मीर के कई इलाकों में एक बार फिर 14 अप्रैल, 2016 को स्थानीय युवाओं ने पाकिस्तान विरोध प्रदर्शन किया था.

हिज्ब-उल-मुजाहिदीन

गठन : सितंबर 1989

संस्थापक : एहसान दार

प्रमुख आतंकी : सैयद सलाहुद्दीन, हिलाल अहमद मीर, गुलाम नबी नौसरी, गाजी नसिरुद्दीन आदि.

कश्मीर में सक्रिय यह संगठन भारत-पाकिस्तान सीमा पर सक्रिय आतंकी संगठनों में बड़ा माना जाता है. कश्मीर घाटी में सितंबर 1989 में मास्टर एहसान दार ने इस संगठन की नींव डाली थी. माना जाता है कि इसमें सक्रिय ज्यादातर आतंकी कैडर जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के सदस्य रह चुके हैं. इसका गठन जमात-ए-इसलामी की लड़ाकू शाखा के रूप में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ की मदद से हुआ था.

उद्देश्य : जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल कराना और कश्मीर घाटी का पूर्ण रूप से इसलामीकरण इस संगठन का घोषित उद्देश्य है. वर्ष 1990 में इस गुट को खड़ा करने में मोहम्मद युसुफ शाह (सैयद सलाहुद्दीन) और हिलाल अहमद मीर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. हालांकि, दोनों बाद में अलग हो गये और हिलाल अहमद मीर की एक हमले में 1993 में मौत हो गयी.

सक्रियता : यह ग्रुप सैयद सलाहुद्दीन के नेतृत्व में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद से संचालित होता है. हिज्ब-उल-मुजाहिदीन में सक्रिय 1500 से अधिक आतंकियों का पीओके में नेतृत्व गुलाम नबी नौसरी, चीफ कमांडर गाजी नसिरुद्दीन जैसे आतंकी करते हैं. यह संगठन पांच डिवीजनों- मध्य श्रीनगर, कुपवाड़ा-बांदीपोरा-बारामुला, अनंतनाग व पुलवामा, चेनाब के अलावा राजौरी व पुंछ जिलों में सक्रिय है. इस ग्रुप के पास ‘कश्मीर प्रेस इंटरनेशनल’ नाम से न्यूज एजेंसी और महिला विंग के लिए ‘बनत-उल-इसलाम’ है.

संबंध : इस आतंकी संगठन का पाकिस्तानी एजेंसी आइएसआइ के अलावा यूनाइटेड जिहाद काउंसिल और भारत में सक्रिय स्टूडेंट इसलामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से संबंध है.

हरकत-उल-मुजाहिदीन (हरकत-उल-अंसार)

गठन : 1990 के बाद

संस्थापक : मौलाना सैयद सदातुल्लाह खान

प्रमुख आतंकी : मसूद अजहर, सज्जाद अफगानी, नसरुल्ला मंजूर, उमर सईद शेख, मुश्ताक अहमद जारगर.

मौलाना सैयद सदातुल्लाह खान के नेतृत्व में दो पाकिस्तानी समूहों हरकत-उल-जेहाद अल इसलामी और हरकत उल मुजाहिदीन का विलय कर हरकत-उल अंसार नाम के संगठन बना था. यह आतंकी संगठन अब हरकत-उल-मुजाहिदीन नाम से सक्रिय है. अफगान जिहाद के रूप में सक्रिय यह संगठन जम्मू-कश्मीर में हिंसक वारदातों में शामिल रहा है. इसका 60 प्रतिशत कैडर (लगभग एक हजार) पाकिस्तानी और अफगानिस्तानी है. सऊदी निर्वासित आतंकी ओसामा-बिन-लादेन से संबंध होने के कारण अमेरिका ने इसे आतंकी संगठन घोषितकर दिया था.

सक्रियता : पीओके के मुजफ्फराबाद से संचालित होनेवाला यह ग्रुप कश्मीर के साथ-साथ म्यांमार, ताजिकिस्तान, बोसनिया और हर्जेगोविना आदि जगहों पर हिंसक वारदातें करता रहा है. भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा मसूद अजहर, सज्जाद अफगानी और नसरुल्ला मंजूर की गिरफ्तारी के बाद यह संगठन कमजोर पड़ गया था. आइएसआइ भी अब मानने लगी है कि इसके कई बड़े कैडर लश्कर-ए-तैयबा में शामिल हो चुके हैं. कांधार विमान अपहरण के बाद छोड़ा गया आतंकी मसूद अजहर अब नये आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद नाम से कई आतंकी समूहों को एकजुट कर रहा है.

लश्कर-ए-तैयबा (जमात-उद-दावा)

गठन : 1990 (मुरीदके, लाहौर के समीप)

संस्थापक : हाफिज मोहम्मद सईद

प्रमुख आतंकी : हाफिज सईद (सुप्रीम कमांडर), मौलाना अब्दुल वाहिद, जिया-उर-रहमान लखवी, अब्दुल्ला शहजाद, अब्दगुल हसन.

यह संगठन अफगानिस्तान के कुनार प्रांत में 1990 में बना था. लश्कर-ए-तैयबा (जमात-उद-दावा नाम से भी जानते हैं) का हेडक्वाॅर्टर लाहौर के पास मुरीदके में स्थिति है. इसका मुखिया हाफिज सईद है. जनवरी 2002 में सैन्य शासन के दौरान जनरल परवेज मुशर्रफ ने और मई 2005 में संयुक्त राष्ट्र ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था.

सक्रियता : यह आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर के अलावा भारत के कई शहरों नयी दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, वाराणसी, कोलकाता में कई आतंकी वारदातों को अंजाम दे चुका है. इसके कई ट्रेनिंग कैंप पाकिस्तान और पीओके में सक्रिय हैं.

संबंध : तालिबान और अलकायदा जैसे खूंखार आतंकी संगठनों के साथ-साथ इसका सऊदी अरब, यूके, बांग्लादेश और दक्षिण-पूर्व एशिया में सक्रिय आतंकी समूहों से है. इस समूह की फंडिंग में आइएसआइ अहम भूमिका निभाता है.

मुत्ताहिदा जेहाद काउंसिल

गठन : नवंबर 1990

संस्थापक : सैयद सलाहुद्दीन (13 जेहादी संगठन शामिल)

बड़े आतंकी समूह : हिज्बुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, अल-बद्र मुजाहिदीन मिल कर कश्मीर जेहाद के लिए ‘मुवाखात’ नाम से सक्रिय.

मुत्ताहिदा जेहाद काउंसिल में उक्त आतंकी संगठनों के अलावा जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट, हरकत-उल-अंसार, तहरीक-ए-जिहाद, तहरीक-उल-मुजाहिदीन, अल-जेहाद, अल-उमर मुजाहिदीन, जम्मू-कश्मीर इसलामिक फ्रंट, मुसलिम जांबाज फ्रंट, हिज्बुल्लाह, अल-फतह, हिज्ब-उल-मोमिनीन आदि संगठन शामिल हैं.

जमियत-उल-मुजाहिदीन

गठन : 1990

संस्थापक : शेख अब्दुल बासित

प्रमुख आतंकी : हिलाल अहमद मीर उर्फ नासिरुल इसलाम, इंजीनियर मोहम्मद सालाह

हिज्ब-उल-मुजाहिदीन में मास्टर एहसान दार और हिलाल अहमद मीर के आपसी विवाद के कारण इस नये संगठन की नींव पड़ी. 1990 में शेख अब्दुल बासित को इसका प्रमुख नियुक्त किया गया. इसमें शामिल ज्यादातर अहले-सुन्नत स्कूल से निकले कश्मीरी हैं.

अल-बद्र

गठन : जून 1998

संस्थापक : लुकमान

प्रमुख आतंकी : बख्त जमीं, अरफीन उर्फ जानिसार, जाहिद, जस्म भट और अबू मवाई.

इस आतंकी समूह का पाकिस्तान के मेहसरा में और कैंप ऑफिस पाक अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद में है. जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकी समूह यूनाइटेड जेहाद काउंसिल (यूजेसी) का यह प्रमुख हिस्सा है. यह संगठन कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल कराने के मुहिम में कई आतंकी वारदातें कर चुका है. माना जाता है कि 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में बंगालियों पर हुए हमलों में यह संगठन शामिल रहा है. 80 के दशक में यह संगठन हिज्ब-ए-इसलामी का हिस्सा था. 1998 में स्वतंत्र रूप से सक्रिय होने से पहले आइएसआइ की मदद से यह हिज्बुल मुजाहिदीन संगठन में सक्रिय था.

हरकत-उल-जिहाद-अल-इसलामी (हूजी)

गठन : सोवियत-अफगान युद्ध के समय (अनुमान)

संस्थापक : कारी सैफुल्लाह अख्तर, मौलाना इरशाद अहमद, मौलाना अब्दुस समद सियाल ने शुरुआत में जमियत अंसारुल अफगानीन (जेएए) 1980 में संगठन बनाया, जो बाद में हूजी नाम से सक्रिय हो गया.

प्रमुख आतंकी : बशीर अहमद मीर (कमांडर-इन-चीफ) (2005 में मार गिराया गया). माना जाता है कि भारत में कई हमलों का मास्टर माइंड शाहिद बिलाल हूजी का नेतृत्व करता है. मुफ्ती अब्दुल हन्नान, शाैकत ओस्मान उर्फ शेख फरीद और इम्तियाज जैसे कई बड़े आतंकी सक्रिय.

अन्य बड़े अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन

लश्कर-ए-जब्बार

अल-बर्क

तहरीक-उल-मुजाहिदीन

अल-जेहाद

जम्मू-कश्मीर नेशनल लिबरेशन आर्मी

पीपुल्स लीग

मुसलिम जांबाज फोर्स

कश्मीर जेहाद फोर्स

अल- जेहाद फोर्स (मुसलिम जांबाज फोर्स और कश्मीर जेहाद फोर्स संयुक्त रूप से)

अल-उमर-मुजाहिदीन

महज-ए-आजादी

इसलामी जमात-ए-तुलबा

जम्मू एंड कश्मीर स्टूडेंट लिबरेशन फ्रंट

एखवान-उल-मुजाहिदीन

इसलामिक स्टूडेंट्स लीग

तहरीक-ए-हुर्रियत-ए-कश्मीर

तहरीक-ए-निफाज-ए-फिक्र जफारिया

अल-मुस्तफा लिबरेशन फाइटर्स

तहरीक-ए-जेहाद-ए-इसलामी

मुसलिम मुजाहिदीन

अल मुजाहिद फोर्स

तहरीक-ए-जेहाद

इसलामी इंकलाबी महाज

पाक में स्थानीय आतंकी गुट

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान

लश्कर-ए-ओमर

सिपाह-ए-सहाबा पाकिस्तान

तहरीक-ए-जफरिया पाकिस्तान

तहरीक-ए-नफाज-ए-शरियत-मोहम्मदी

लश्कर-ए-झांगवी

सिपाह-ए-मोहम्मद पाकिस्तान

जमात-उल-फक्र

नदीम कमांडो

पॉपुलर फ्रंट फॉर आर्म्ड रेसिस्टेंस

मुसलिम यूनाइटेड आर्मी

हरकत-उल-मुजाहिदीन अल-अलामी

पाकिस्तान में सक्रिय चरमपंथी संगठन

अल-राशिद ट्रस्ट

अल-अख्तर ट्रस्ट

रबिता ट्रस्ट

उम्माह तमिर-ए-नाउ

(स्रोत : साउथ-एशिया टेरेरिज्म पोर्टल)

पाक को विशुद्ध इसलामी स्टेट बनाना चाहते हैं आतंकी

पाकिस्तान में पल रहे आतंकी संगठनों की विचारधाराएं एक ही हैं- पाकिस्तान को विशुद्ध इसलामी स्टेट बनाना, जिसके अंदर कोई लोकतांत्रिक खुशी-आजादी न हो, कोई वृहद् सांस्कृतिक परंपरा न हो, कोई कला-संगीत-सिनेमा न हो और कोई गैर-इसलामी काम न हो. इन संगठनों की गतिविधियों को रोकने के लिए इन्हें जड़ से खत्म करना होगा. इसके लिए पाकिस्तान की फंडामेंटल पॉलिसी में पूरी तरह से बदलाव करना होगा.

पाकिस्तान में किस-किस तरह के आतंकी संगठन हैं, इसका सटीक वर्गीकरण मुश्किल है, लेकिन इतना तय है कि वहां दहशतगर्दी फैलानेवाले जितने भी संगठन हैं, वे सभी बहुत कट्टर और तथाकथित धार्मिक संगठन हैं. इन संगठनों में से कुछ देवबंद स्कूल ऑफ इसलामिक थॉट से जुड़े हुए हैं, तो कुछ जमात-ए-इसलामी से जुड़े हैं. पाकिस्तान के पुराने आतंकी संगठन, जैसे मुजाहिदीन वगैरह जो थे या अब भी हैं, वे सभी जमात-ए-इसलामी से जुड़े थे. लेकिन बाद में जो संगठन पैदा हुए, जैसे तालिबान वगैरह, वे सभी जमियत उलेमा-ए-इसलाम से जुड़े हुए थे. इन दोनों जमातों के नाम भले अलग-अलग हों, लेकिन इनकी विचारधाराएं एक ही हैं- पाकिस्तान को विशुद्ध इसलामी स्टेट बनाना, जिसके अंदर कोई लोकतांत्रिक खुशी-आजादी न हो, कोई वृहद् सांस्कृतिक परंपरा न हो, कोई कला-संगीत-सिनेमा न हो और कोई गैर-इसलामी काम न हो.

अगर कुछ हो, तो बस शरिया का कानून हो और धार्मिक कट्टरता हो, जिसके अंदर औरत की कोई भूमिका न हो, कोई लोकतांत्रिक व्यवस्था न हो. तालिबानी निजाम इसकी सबसे अच्छी मिसाल है. इनका सिर्फ एक ही मकसद होता है- कट्टरता के रास्ते पर चल कर जेहाद करना और विशुद्ध इसलामी स्टेट के सपने को साकार करने के लिए मरना-मारना. इन संगठनों के लोग खुद को इसलामी सेना के रूप में देखते हैं.

पाकिस्तान के आतंकी संगठनों को बनाने-संवारने की खतरनाक मुहिम में पाकिस्तानी सेना की बहुत बड़ी भूमिका रही है. इस बड़ी दहशतगर्द मुहिम के पीछे पाकिस्तान की आइएसआइ का दिमाग लगा हुआ है. हालांकि, इसलामीकरण जैसी इस कट्टर मुहिम की शुरुआत 1970-80 के दशक में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक से ही हुई थी, लेकिन आगे चल कर आइएसआइ ने भी इसी रास्ते को अपनाया और तमाम आतंकी संगठनों को बढ़ावा दिया. आज उन्हीं आतंकी संगठनों का पाकिस्तान में आतंक चरम सीमा पर पहुंच चुका है. इन सबका इस्तेमाल पाकिस्तान की सेना कर रही है.

एक समय पाक सेना चाहती थी कि इनकी मदद से वह अफगानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाये और वहां एक पाक-समर्थित सरकार का गठन करे, जिसमें उसे कामयाबी भी मिली थी. इसके लिए पहले उसने हिजबुल मुजाहिदीन बनाया और फिर जब यह चल नहीं पाया, तो तालिबान को सामने लाकर खड़ा कर दिया. लेकिन, तालिबान भी बहुत दिन नहीं चल पाये. वक्त-वक्त पर पाकिस्तान में एक ही विचारधारा के तहत कई संगठन खड़े होते रहे, ताकि अगर एक न चल पाये, तो दूसरे का इस्तेमाल किया जायेगा. इसी तरह से नाम और पते बदल-बदल कर बेशुमार आतंकी संगठन खड़े होते चले गये. यही वजह है कि हमें लगता है कि वहां के अलग-अलग संगठन अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं. दरअसल, पाकिस्तान की बुनियाद जिस धर्म के नाम पर हुई थी, उसी धर्म की आड़ में ये सारे संगठन अपना काम करते हैं. पाक सेना इनका इस्तेमाल बखूबी करती है.

पाकिस्तान इन संगठनों को कभी रोक नहीं पायेगा, क्योंकि इन संगठनों को वहां की सेना ही चला रही है. बहुत से कट्टर संगठन ऐसे भी हैं, जो सेना की भी बात नहीं सुनते, जैसे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान. ये न तो सेना की बात सुनते हैं और न ही सेना का कहना मानते हैं, बल्कि सेना और सरकार पर दबाव भी बनाते रहते हैं. अगर पाकिस्तान में पल रहे आतंकी संगठनों को रोकना है, तो इन्हें जड़ से खत्म करना होगा. लेकिन, यह इतना आसान भी नहीं है. इसके लिए पाकिस्तान की फंडामेंटल पॉलिसी में पूरी तरह से बदलाव करना होगा. पाक सेना और दहशतगर्दों के गंठजोड़ के रहते तो यह मुश्किल ही है. दूसरी बात, पाकिस्तान को अलग-थलग करने में भारत ने जो कोशिशें की हैं और जिसमें कुछ कामयाबी मिली भी है, वह सही है, लेकिन पाकिस्तान में आतंक के पलने-बढ़ने को रोकने के लिए यह काफी नहीं है. पाकिस्तानी सेना और वहां के आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध को लेकर जब तक अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ दुनिया के बाकी बड़े देशों का दबाव नहीं बढ़ेगा, तब तक यह मुश्किल है कि पाकिस्तान औरउसके जरिये पूरे दक्षिण एशिया में फैलनेवाले आतंकवाद को रोका जा सकेगा.

(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित) कमर आगा, रक्षा विशेषज्ञ

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