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घर में घिरे : पाकिस्तान के सेना प्रमुख की बिसात पर, वजीर से प्यादा हो रहे शरीफ

उड़ी में आर्मी कैंप पर पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंध बेहद खराब हो चुके हैं. भारत सरकार की ठोस कूटनीतिक पहलों के परिणामस्वरूप जहां पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग पड़ रहा है, वहीं पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपने देश की आंतरिक राजनीति में भी बड़ा दबाव झेलना पड़ […]

उड़ी में आर्मी कैंप पर पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंध बेहद खराब हो चुके हैं. भारत सरकार की ठोस कूटनीतिक पहलों के परिणामस्वरूप जहां पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग पड़ रहा है, वहीं पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपने देश की आंतरिक राजनीति में भी बड़ा दबाव झेलना पड़ रहा है. खुद पाकिस्तान में विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि शरीफ की सरकार न सिर्फ भ्रष्ट और नकारा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी असफल है. उड़ी हमले के बाद पूरी दुनिया ने भारत के प्रति समर्थन व्यक्त किया है. यहां तक कि पाकिस्तान का दोस्त माना जानेवाला चीन भी उसके साथ खुल कर खड़ा दिखने में हिचकिचा रहा है. अमेरिका, रूस और कई यूरोपीय देशों ने भी हमले की कड़ी निंदा की, लेकिन पाकिस्तान को बड़ा झटका तब लगा जब सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और बहरीन जैसे उसके पुराने सहयोगी देशों ने खुल कर भारत का साथ दिया. दक्षिणी एशियाई देशों के संगठन सार्क की शिखर बैठक में शामिल होने से भारत के मना करने के बाद बांग्लादेश, भूटान, अफगानिस्तान और श्रीलंका द्वारा भी इनकार कर देना इस इलाके में पाकिस्तान की नकारात्मक छवि का ठोस प्रमाण है. निश्चित रूप से यह भारत के कूटनीतिक प्रयासों का नतीजा है. पाकिस्तान के बिगड़ते अंदरूनी हालात और भारत की कोशिशों से उस पर बढ़ते चौतरफा दबाव की मौजूदा तसवीर पर पढ़ें दो पन्नों का खास आयोजन…
आज महात्मा गांधी का जन्मदिन है. पाकिस्तान के बारे में गांधीजी की चिंताएं क्या थीं, आप यह भी जानेंगेे इस प्रस्तुति में.
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ दो महीने बाद 26 नवंबर को रिटायर होंगे, जबकि नवाज शरीफ की सत्ता की उम्र अभी पौने दो बरस बची हुई है. इन दोनों के बीच सेना के पांच अफसर ऐसे हैं, जिनमें से कोई एक नवंबर के बाद पाकिस्तान का जनरल हो जायेगा. लेकिन, यह कहानी सच्ची तो है, पर अच्छी नहीं लगती, क्योंकि पाकिस्तान में सत्ता यूं ही बदलती है और सामान्य तरीके से कोई रिटायर भी नहीं होता है. तो जो कहानी सच्ची नहीं होती वह पाकिस्तान को लेकर अच्छी लगती है. और इस कहानी में असल पेंच आ फंसा है भारत का ‘सर्जिकल ऑपरेशन.’ भारत के चार घंटे के इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान के सियासी और सेना के इतिहास को ही उलट-पलट दिया है. और पहली बार दोनों शरीफ पाकिस्तान के भीतर ही इस तरह कटघरे में आ खड़े हुए हैं कि अब दोनों को यह तय करना है कि साथ मिल कर चलें या फिर एक-दूसरे को शह मात देने की बिसात बिछा लें और पाकिस्तान के हालात शह-मात की बिसात की दिशा में जाने लगे हैं. कैबिनेट की बैठक में नवाज शरीफ अपने ही मंत्रियों को यह भरोसा न दिला पाये कि वह चाहेंगे तो सेना कूच कर जायेगी. दूसरी तरफ राहील शरीफ रावलपिंडी में अपने सैनिक अधिकारियों को इस भरोसे में ही लेने में लगे रहे कि सेना तभी कूच करती है, जब उसे पता हो जाये कि जीत उसकी होगी.
तीन बड़े सवाल गूंज रहे
अब नवाज शरीफ के कहने पर सेना चल नहीं रही है और नवाज शरीफ की बिसात राहील शरीफ के रिटायरमेंट के बाद अपनी पसंद के अधिकारी को जनरल के पद पर बैठाने की है. यानी भारत के इस सर्जिकल ऑपरेशन ने पाकिस्तान के भीतर के उस सच को सतह पर ला दिया है, जिसे आतंकवाद से लड़ने और कश्मीर के नाम पर अब तक सत्ता सेना संभाले नवाज और राहील किसी शरीफ की तरह ही नजर आ रहे थे. यानी नये हालात में तीन सवाल पाकिस्तान में गूंजने लगे हैं. पहला, क्या राहील रिटायरमेंट पसंद कर किसी सरकारी कॉरपोरेशन में सीइओ का पद लेना चाहेंगे? दूसरा, क्या राहील मुशर्रफ की राह पर निकल कर खुद सत्ता संभालेंगे और अपने पसंदीदा को जनरल की कुर्सी पर बिठायेंगे? तीसरा, क्या नवाज शरीफ किसी भी हालत में सेना को सियासत से दूर करने के लिए युद्ध में झोंकना पसंद करेंगे?
नवाज के लिए खतरे की घंटी
तरकीबी दोनों तरफ से चली जायेगी और चली जा रही है. नवाज शरीफ के सामने दो बरस का वक्त अभी भी है, लेकिन जिस तरह भुट्टो की ‘पीपीपी’ और इमरान की पार्टी दोनों राहील शरीफ के कंधों पर चढ़ कर अब सत्ता पाने का ख्वाब देखने लगी है, वह नवाज के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि नवाज के विरोधी अब पाकिस्तान की अवाम की भावनाओं के साथ सेना या कहें राहिल शरीफ को करीब बता रहे हैं और भारत के ‘सर्जिकल अटैक’ के पीछे सेना की असफलता को ना कह कर नवाज की असफलता ही बता रहे हैं. यानी मोदी से नवाज की यारी से भी पाकिस्तान में नवाज शरीफ पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं. और राहील शरीफ की बिसात पर वजीर नवाज कब प्यादा बना दिये जा सकते हैं, इसका इंतजार सेना-सियासत दोनों करने लगे हैं. तो क्या पाकिस्तान में हालात ऐसे बन रहे हैं कि सत्ता पलट हो सकता है? यह सवाल इसलिए, क्योंकि पाकिस्तान में सत्ता पलट का इतिहास है, और हर बार जब लोकतांत्रिक सरकार कुछ कमजोर होती है या फिर सत्ता पूरी तरह सेना की कार्रवाई पर ही आ टिकती है, तो सेना सीधे सत्ता संभालने से नहीं कतराती और फिलहाल पाकिस्तान का रास्ता इसी दिशा में जा रहा है.
क्या शीर्ष स्तर पर नहीं है तालमेल?
बीते 48 घंटों में नवाज शरीफ ने राहिल शरीफ के अलावे पाकिस्तान में जिन दो अधिकारियों से संपर्क साधा वह दोनों जनरल बनने की रेस में हैं. और इन्हीं दोनों को रावलपिंडी में राहील शरीफ ने अफगानिस्तान की सीमा से भारत की सीमा यानी लाइन ऑफ कंट्रोल की दिशा में भेजे जा रहे सैनिकों की निगरानी के निर्देश भी दिये हैं. शेष तीन जो जनरल की रेस में हैं, उन्हें भी राहील शरीफ ने बीते 48 घंटों में अपनी तीन बैठकों में बुलाया. तो पाकिस्तान के भीतर सेना की हलचल बता रही है कि भारत के खिलाफ कोई भी कार्रवाई को वह राहील शरीफ की बिसात पर करेगी, न कि नवाज शरीफ के सियासी फैसले पर. इसीलिए इकबाल रानाडे की निगरानी में अफगान बॉर्डर से एलओसी में ट्रांसफर किये जा रहे सैनिकों की अगुवाई का काम सौंपा गया है. इकबाल ‘ट्रिपल एक्सआइ कॉर्प्स’ के कमांडर हैं और 2009 में अफगानिस्तान सीमा के पास स्वात घाटी में पाकिस्तानी तालिबानी आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन को लीड किया था.

वहीं राहील का परिवार जिस तरह सेना में रहा है, उसमें जुबैर हयात का परिवार भी सेना में रहा है, तो उनकी निगरानी में एलओसी की हरकत है. जुबैर हयात न केवल खुद लेफ्टिनेंट जनरल हैं, उनके पिता मेजर जनरल असलम हयात नामी शख्सियतों में एक रहे और राहील शरीफ के चाचा के साथ सेना में रहे हैं. महत्वपूर्ण है कि नवाज शरीफ अपनी कैबिनेट में हालात को बताते हुए सेना के बारे में सिर्फ यही कह पाये कि संसद के विशेष सत्र में सारी जानकारी हर राजनीतिक दल और देश के सामने रखेंगे. यानी जो मूवमेंट पाकिस्तानी सेना के भीतर हो रहे हैं, उसे नवाज शरीफ या तो बता नहीं पा रहे हैं या फिर सर्जिकल अटैक के बाद सेना और सत्ता में यह दूरी आ गयी है कि अब सफलता के लिए दोनों ही अपनी-अपनी बिसात बिछा रहे हैं.
एलओसी पर युद्ध की दस्तक
पाकिस्तान के कराची और रावलपिंडी के न्यूक्लियर प्लांट पर निगरानी का काम मजहर जामिल देख रहे रहे हैं. ये वही शख्स हैं, जो करगिल के दौर में पाकिस्तान के न्यूक्लियर कॉम्प्लेक्स देखते थे. और तब मुशर्रफ के सत्ता पलट के दौर में ये नवाज शरीफ को कोई सूचना देने से पहले सेना हेडक्वार्टर के करीब रहे. तो नया सवाल यह भी है कि पाकिस्तान की सेना अगर एलओसी पर सक्रिय हो रही है, तो फिर हमले या किसी कार्रवाई का निर्देश कौन देगा? या किस निर्देश को सेना मानेगी और पाकिस्तान के भीतर की हलचल भारत में क्या असर डालेगी. ये सारे सवाल उस युद्ध की ही दस्तक दे रहे हैं, जिसे दुनिया नहीं चाहती है.
पुण्य प्रसून वाजपेयी
वरिष्ठ पत्रकार
बड़ा सवाल, क्या राहील शरीफ चुपचाप रिटायर हो जायेंगे!
आगामी हफ्तों में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को तय करना है कि अगला सेनाध्यक्ष कौन बनेगा. इस निर्णय का बड़ा असर अमेरिका और भारत के साथ रिश्तों पर होगा, जो अक्सर तनावपूर्ण बने रहते हैं. जनरल राहील शरीफ ने कहा है कि अपने कार्यकाल की समाप्ति पर वे सेवानिवृत्त हो जायेंगे. लेकिन, पाकिस्तानी मीडिया और कुछ सरकारी अधिकारियों का कहना है कि सेनाध्यक्ष निर्धारित सेवाकाल के बाद भी अपनी कुछ या पूरी ताकत बरकरार रखने की कोशिश कर सकते हैं. आम पाकिस्तानियों में जनरल शरीफ लोकप्रिय माने जाते हैं और लोग उन्हें भ्रष्टाचार, अपराध और चरमपंथी हिंसा के विरुद्ध ठोस कार्रवाई का श्रेय देते हैं. अपने कार्यकाल में उन्होंने सरकार, न्यायपालिका और सुरक्षा नीति पर सेना का प्रभाव काफी बढ़ाया है.

हालांकि, राहील के सेवाकाल में विस्तार की संभावनाओं को पाकिस्तानी सेना ने खारिज किया है. सेना के मुख्य प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल आसिम बाजवा ने कुछ दिन पहले मीडिया से किसी तरह का अंदाजा नहीं लगाने का अनुरोध करते हुए बताया कि इस संबंध में सेना ने अपनी स्थिति पहले ही स्पष्ट कर दी है. लेकिन पाकिस्तान में सेना द्वारा तख्तापलट के इतिहास को देखते हुए तथा इस तथ्य के मद्देनजर कि बीते दो दशकों में किसी भी सेनाध्यक्ष ने अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा नहीं किया है, कई तरह के कयास लगाये जा रहे हैं जिन्हें सीधे तौर पर खारिज कर देना ठीक नहीं है.

ऐसे में आनेवाले दिनों में दोनों शरीफों की गतिविधियों पर पूरी दुनिया की नजर रहेगी. अफगानिस्तान में अफगान तालिबान और अन्य आतंकी गुटों से संघर्षरत अमेरिका ने कई बार यह नाराजगी जतायी है कि पाकिस्तान अपनी धरती से अफगानिस्तान में होनेवाले आतंकी हमलों पर अंकुश लगाने में विफल रहा है या फिर वह जानबूझ कर ऐसा नहीं कर रहा है.
पािकस्तान के संभावित नये सेनाध्यक्ष
रॉयटर ने प्रधानमंत्री शरीफ के नजदीकी सहयोगियों और वरिष्ठ सेनाधिकारियों के हवाले से एक रिपोर्ट में बताया है कि सेनाध्यक्ष पद के लिए मुख्य रूप से चार दावेदार मैदान में हैं. इनमें लेफ्टिनेंट जनरल जावेद इकबाल रानाडेे प्रधानमंत्री की पसंद माने जा रहे हैं. इन्होंने स्वात घाटी से पाकिस्तानी तालिबानी आतंकियों को भगाने की कार्रवाई का नेतृत्व किया था. नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुसलिम लीग के साथ रामदे के परिवारजनों के लंबे संबंध के कारण भी उनकी दावेदारी मजबूत मानी जा रही है. उन्हें मौजूदा सेनाध्यक्ष जनरल राहील शरीफ का भी नजदीकी माना जाता है. अन्य दावेदारों में जेनरल स्टाफ के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जुबैर हयात, मुल्तान में कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट जनरल इश्फाक नदीम अहमद और सेना के प्रशिक्षण एवं मूल्यांकन इकाई के मुखिया लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा शामिल हैं. विश्लेषकों का मानना है कि यदि नवाज शरीफ अपनी मर्जी से नया सेनाध्यक्ष नियुक्त करने में कामयाब हो जाते हैं, तो वह अपने उस प्रभाव को वापस पाने में सफल हो सकते हैं, जो उन्हें 2013 में सत्ता में आने के बाद छोड़ना पड़ा था. जनरल राहील शरीफ के कार्यकाल में उनका प्रभाव लगातार कमजोर हुआ है, जिसे पाने के लिए वे कोशिश कर सकते हैं. सवाल यह है कि क्या जनरल शरीफ प्रधानमंत्री शरीफ को इस रास्ते आसानी से गुजर जाने देंगे.
नवाज के खिलाफ इमरान ने कड़े किये तेवर
तहरीके-इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की सरकार के विरोध में आयोजित रैली में जमकर हमला बोला. भ्रष्टाचार, विभिन्न क्षेत्रों की अनदेखी और जनता की बुनियादी जरूरतों के प्रति लापरवाही का आरोप लगाते हुए उन्होंने शरीफ सरकार के विरुद्ध आंदोलन का आह्वान किया. उन्होंने पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ पर भी देश को आर्थिक और संस्थागत रूप से तबाह करने का आरोप लगाया. भारत और पाकिस्तान के बीच विवादों के निबटारे के लिए ताकत के दबाव को बेकार बताते हुए इमरान खान ने प्रधानमंत्री मोदी को पूर्वाग्रह से ग्रस्त व्यक्ति कहा, तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को राष्ट्रीय हितों पर अपने व्यक्तिगत व्यावसायिक हितों को तरजीह देने का आरोप मढ़ा. उन्होंने कहा कि भारत को चेतावनी देने के लहजे में कहा कि हर पाकिस्तानी नवाज शरीफ नहीं है और देश एकताबद्ध होकर नियंत्रण रेखा की रक्षा में तैनात अपने सैनिकों के पीछे खड़ा है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि युद्ध से दोनों देशों के बीच के विवादों का समाधान नहीं निकल सकता है और दोनों पक्षों को शांति के लिए प्रयास करने चाहिए.
नवाज के समर्थक आलोचनाओं से बिफरे
नवाज शरीफ और पाकिस्तानी मीडिया में उनके समर्थक राजनीतिक विरोधियों की आलोचना से बेहद परेशान हैं तथा जवाब में तल्खी भरे तेवर अपना रहे हैं. पाकिस्तानी अखबार ‘द न्यूज’ में तारिक बट्ट ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा संयुक्त राष्ट्र में दिये गये भाषण पर लिखा है कि शरीफ ने जिस अभूतपूर्व तरीके से कश्मीर के मुद्दे को उठाया और भारतीय क्रूरता को दुनिया के सामने रखा, वह उन्हें ‘मोदी का यार’ कहनेवालों (इमरान खान) के मुंह पर तमाचा है. इस लेख में बट्ट ने तहरीके-इंसाफ पार्टी के अध्यक्ष इमरान खान के उस आरोप की भी निंदा की है, जिसमें उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री शरीफ को पाकिस्तान के हितों से अधिक चिंता भारत में अपने व्यापारिक हितों की है.
पाकिस्तानी मीडिया में कवरेज की विश्वसनीयता पर संदेह भी
पाकिस्तान के अखबारों और टेलीविजन चैनलों में भारत की ही तरह दोनों देशों के बीच मौजूदा तनाव सुर्खियों में है. एक कैबिनेट बैठक में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के बयान को ‘एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ ने मुख्य खबर बनाते हुए नवाज शरीफ के बयान- पाकिस्तान के खिलाफ बुरी नजर उठाने की कोई हिम्मत न करे- को प्रमुखता दी, तो ‘उर्दू एक्सप्रेस’ ने हेडलाइन बनाया कि भारत को इस क्षेत्र में उथल-पुथल मचाने की इजाजत नहीं दी सकती है.
कैबिनेट की बैठक की खबर ‘द न्यूज’ डेली में ‘पाकिस्तान के पास सर्जिकल स्ट्राइक की क्षमता’ शीर्षक के साथ प्रकाशित हुई. ‘कैपिटल न्यूज’ ने पाकिस्तानी सांसदों के इंटरव्यू का सिलसिला चलाया, जिसमें भारत द्वारा हमला करने और पानी रोकने की स्थिति में पाकिस्तान की संभावित प्रतिक्रिया ली गयी.
‘एरी न्यूज चैनल’ ने दावा किया है कि उसके पास पाकिस्तानी सेना द्वारा पकड़े गये भारतीय सैनिक के खास चित्र हैं. अनेक चैनलों ने कथित रूप से भारतीय सैनिकों के मारे जाने के चित्र दिखाये हैं, पर उनकी विश्वसनीयता संदेहास्पद है.
पाकिस्तान के लोकतंत्र में सेना निभाती है मुख्य भूमिका : मुशर्रफ
पाकिस्तान का लोकतंत्र वहां के माहौल के अनुरूप नहीं है. ऐसा नहीं है कि यह सब आज हो रहा है, बल्कि स्वतंत्रता के समय से ही सेना इसमें अहम भूमिका निभाती आ रही है. पाकिस्तान में अब तक तथाकथित लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई जितनी भी सरकारें रही हैं, उन सबके गलत शासन की वजह से ही सेना को वहां के शासन तंत्र में दखल देना पड़ा है और मुख्य भूमिका निभानी पड़ी है. दरअसल, पाकिस्तान की अंतर्निहित कमजोरी देश में लागू एक ऐसा लोकतंत्र है, जो वहां के परिवेश से मेल नहीं खाता है. वहां के शासन तंत्र के भीतर किसी तरह का कोई नियंत्रण और संतुलन नहीं है. असल में वहां के संविधान में ही इस तरह के नियंत्रण और संतुलन का कोई प्रावधान नहीं है. पाकिस्तान के शासन तंत्र में, जब कुशासन बढ़ता जाता है और यह सभी सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में पहुंचने लगता है, तब वहां के लोग तंग आकर बड़ी संख्या में सेनाध्यक्ष के पास दौड़े चले जाते हैं. और यही वजह है कि सेना को सत्ता अपने हाथों में लेनी पड़ती है. बस यही एक कारण था कि पाकिस्तान में सेना का लंबा शासन रहा था और वह अपने इस रुतबे का मजा ले रही थी. पाकिस्तान के लोग सेना को प्यार करते हैं और उससे काफी कुछ मांगते हैं.

हमें पाकिस्तान की जरूरतों को समझते हुए वहां के राजनीतिक संरचना को तैयार करना होगा, कुशासन से बचने के लिए शासन तंत्र पर नियंत्रण और संतुलन को लागू करना होगा. जब ऐसा होगा तब सेना को सत्ता अपने हाथ में लेने की जरूरत नहीं होगी.

मैं जानता हूं कि मेरे ट्रायल का पूरी तरह से राजनीतिकरण हो चुका है. इसका सामना करना ही होगा. अगर सरकार सही तरीके से काम रही होती तो मैं कभी भी पाकिस्तान नहीं जाता. पाकिस्तान वापस जाकर शासन करने का मेरा कोई इरादा नहीं है. मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि वहां की सरकार बेहतर तरीके से काम करे, क्योंकि पाकिस्तान को लेकर मैं जुनूनी हूं.’ मैं वहां जाने को उतावला नहीं हूं, मैं उचित माहौल की प्रतीक्षा कर रहा हूं, मैं वहां राजनीतिक बदलाव होने की प्रतीक्षा कर रहा हूं. तीसरी राजनीतिक शक्ति बनने की भी वहां संभावना है. मैं पूरी तरह देख-परख कर ही पाकिस्तान जाऊंगा कि वहां जाने के बाद मेरे कहीं आने-जाने पर प्रतिबंध न लगे. क्योंकि मुझे लगता है कि जब तक मैं लोगों के सामने आकर काम नहीं करूंगा, मुझे उनका साथ नहीं मिलेगा, जो कि तीसरा मोर्चा बनाने के लिए जरूरी है. रही बात मुकदमों की तो वे चलते रहेंगे और मैं उनका सामना करूंगा.
( 29 सितंबर, 2016 को वाशिंगटन इंडिया फोरम
में दिये साक्षात्कार का अंश)
बिगड़ रहे अंदरूनी हालात, सत्ता परिवर्तन की बढ़ रही संभावना
इस वक्त पाकिस्तान के अंदरूनी हालात बहुत खराब हो चुके हैं और सरकार बिल्कुल ही अप्रभावी नजर आ रही है. एक तो पाक सेना वहां की नागरिक सरकार की सुन नहीं रही है और दूसरे विपक्षी पार्टियां भी उसे एक कमजोर सरकार मान रही हैं. पाकिस्तान तहरीके-इंसाफ पार्टी के सदर इमरान खान ने तो यहां तक कह दिया है कि पाकिस्तानी अवाम नवाज शरीफ जैसा बुजदिल नहीं है और हम सब अपनी सेना के साथ खड़े हैं. जब भी पाकिस्तान के अंदरूनी हालात खराब होते हैं और वहां की सेना और सरकार के बीच सामंजस्य बिगड़ता है, तब-तब सत्ता-पलट की आशंका बढ़ जाती है. दूसरी ओर, उड़ी आतंकी हमले के बाद से भारत और कुछ पड़ोसी देशों में पाकिस्तान-विरोध में जो भी गतिविधियां हुई हैं, उससे दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्तर पर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान कुछ अलग-थलग तो पड़ ही गया है.

पाकिस्तान के अंदरूनी हालात के मद्देनजर इस बात की संभावना बढ़ रही है कि वहां सत्ता-पलट हो सकता है. लेकिन, यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि अब तक पाकिस्तान में जब-जब सत्ता-पलट हुआ, तब-तब पाकिस्तान को अमेरिका का समर्थन मिल जाता था और सत्ता-पलट के बाद अमेरिका उसे मान्यता दे देता था. अब देखना यह होगा कि क्या इस बार भी अमेरिका उसका साथ देगा, क्योंकि फिलहाल पाक-अमेरिका के बीच संबंध पूर्व की तरह बहुत अच्छे नहीं हैं. अमेरिका ने अपने आधिकारिक बयान में पाकिस्तान को फटकारा है कि वह परमाणु हमले की धमकी न दे. ऐसे में अगर पाकिस्तान में सत्ता-पलट होता है, तो उसे सिर्फ चीन पर ही निर्भर रहना पड़ेगा.
नवाज देश में भी अलग-थलग
पाकिस्तान के अंदरूनी हालात के खराब होने और उस पर उसका नियंत्रण न होने के कई पहलू हैं. बलूचिस्तान में काफी दिनों से पाक-विरोधी आग लगी हुई है. गिलगित, बाल्टिस्तान और सिंध में प्रदर्शन हो रहे हैं. पाक सेना चारों तरफ फैली हुई है. वहीं, एक तरफ तो कट्टरपंथियों का पाक सरकार पर दबाव है कि वह भारत के खिलाफ गतिविधियों को अंजाम दे, दूसरी तरफ पाक सेना वहां की सरकार पर हावी है. ऐसे हालात में कोई भी सरकार अपना काम ठीक ढंग से कर ही नहीं सकती और पूरी शासन-व्यवस्था अनियंत्रित हो जाती है. यही वजह है कि पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ बिल्कुल ही अलग-थलग पड़ गये हैं.

पाक सेना हमेशा से किसी चीज को सैन्य-नजरिये से ही देखती है, पाक सरकार की विदेश नीतियों और मजबूरियों की ओर ध्यान भी नहीं देती. हर मसले को पाक सेना जोर-जबरदस्ती और हथियार से ही हल करना जानती है, जो कि एक लोकतंत्र में बहुत दिनों तक नहीं चल सकती. ऐसे में अगर फिर सत्ता-पलट हुआ, तो पाकिस्तान के लिए बहुत महंगा पड़ेगा. सेना कुछ समय तक तो देश को संभालने की कोशिश करेगी, लेकिन लोकतांत्रिक स्तर पर जब पाकिस्तान के हालात बिगड़ेंगे, तो उसके लिए संभालना बहुत मुश्किल हो जायेगा.
इमरान की पीठ पर सेना का हाथ
पीटीआइ नेता इमरान खान राहील शरीफ के नजदीकी हैं. पाक सेना की मदद की वजह से ही इमरान अब तक अपनी पोजीशन बनाने में कामयाब रहे हैं और वे सेना के ‘पोस्टर ब्वॉय’ कहलाते हैं. पाक सेना जो चाहती है, इमरान वही करते हैं. इधर बीच इमरान की जो भी रैलियां हुई हैं या हो रही हैं, वे इस बात का संकेत कर रही हैं कि इमरान सेना के साथ मिल कर नवाज को अपदस्थ करना चाहते हैं.

इन हालात के बीच कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि नवाज शरीफ को हटा कर पाक सेना कोई ऐसी शासनिक व्यवस्था बना दे, जिसमें इमरान को बिठा कर चुनाव की ओर बढ़े. इस तरह से सेना पूरी तरह से नागरिक सरकार पर नियंत्रण कर सकती है. जाहिर है, पाक सेना वहां कुछ भी कर सकती है. वह पहले हालात बिगाड़ती है और फिर जनमत की ओर बढ़ती है. मसलन, इमरान खान की रैलियां इसलिए हो रही हैं कि नवाज शरीफ को हटाने को लेकर पाक अवाम के बीच एक जनमत बन सके. नागरिक सरकार की इतनी हालत खराब हो जाती है कि पाकिस्तानी जनता कहने लगती है कि इससे अच्छा तो सेना ही है. यही वह महत्वपूर्ण पहलू है, जो पाकिस्तान में सत्ता-पलट के लिए खाद-पानी बन जाती है.

सेना यह समझती है कि अगर वह सीधे तौर पर सत्ता-पलट करेगी, तो पाकिस्तानी जनता का भरोसा नहीं जीत पायेगी. इसलिए वह मौजूदा सरकार को बेबस करने की रणनीति पर काम करती है. हालांकि नवाज शरीफ भी सेना की एक कठपुतली ही हैं, लेकिन मुश्किल यह है कि पाक सेना नवाज पर भरोसा नहीं करती. इमरान खान सेना के ही आदमी हैं, इसलिए सेना को उन पर ज्यादा भरोसा है.
नये सेनाध्यक्ष के चयन में मुश्किलें
पाक सेनाध्यक्ष राहील शरीफ रिटायर होनेवाले हैं. पाकिस्तान के अंदरूनी हालात के मद्देनजर नवाज शरीफ की यह पूरी कोशिश होगी कि उनका कोई विश्वस्त ही सेना की कमान संभाले. लेकिन, यह मुश्किल है, क्योंकि राहील ने भी यह तय कर रखा है कि वे अभी यह पद नहीं छोड़ेंगे और एक्सटेंशन लेंगे, या अगर रिटायर होंगे, तो किसी अपने को सेनाध्यक्ष बनायेंगे. पाकिस्तान के अंदरूनी हालात कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे हैं. फिलहाल यह अभी देखनेवाली बात होगी.
अछूता नहीं रहेगा भारत
पड़ोसी पाकिस्तान में जो कुछ भी होगा, उसका थोड़ा-बहुत तो भारत पर असर पड़ेगा ही. भारत यह बात जानता है, इसलिए वह हमेशा अपनी सुरक्षा-व्यवस्था को बनाये रखता है. और इसके लिए भारतीय सेना बहुत ही सक्षम है. भारत कभी नहीं चाहता कि पाकिस्तान के साथ जंग हो. भारत का केवल इतना ही कहना है कि पाकिस्तान आतंकवाद पर रोक लगाये. अभी तक तो यह था कि भारत सीमा-पार के आतंकवाद को रोकने की रणनीति में वह अपनी सीमा में रह कर ही लड़ाई लड़ता था, लेकिन अब भारत ने एक रणनीतिक फैसला लिया है कि वह आतंकियों को खत्म करने के लिए सीमा पार भी जा सकता है.

बीते दिनों हुआ सर्जिकल स्ट्राइक इसकी मिसाल है. इस बात से पाकिस्तान काफी परेशान है. दूसरी बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अमेरिका का भी यह मानना है कि भारत को यह हक है कि वह सीमा पार या पाक अधिकृत क्षेत्र में पल रहे उन कट्टरपंथी समूहों पर हमले करने का, जिनको संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवादी समूह घोषित कर रखा है. यह बात भी पाकिस्तान को परेशान कर रही है और इसलिए वहां के आतंकी समूह सरकार पर दबाव बनाते हैं कि वह भारत के खिलाफ कुछ करे. तीसरी बात यह कि पूरे दक्षिण एशिया में पाकिस्तान बिल्कुल अकेला हो गया है. सार्क में भारत के हिस्सा न लेने को जिस तरह से बाकी सार्क देशों से समर्थन में मिला है, उससे भी पाकिस्तान पर एक अंतरराष्ट्रीय दबाव बना है, जिसके चलते सार्क सम्मेलन स्थगित करना पड़ा. भारत अपनी कूटनीतिक रणनीति में अब तक कामयाब होता दिख रहा है. ये सारे हालात पाकिस्तान को परेशान करने के लिए काफी हैं.

पाकिस्तान जब भी परेशान होता है तो वह धमकी देता है कि वह परमाणु हमला करने से नहीं हिचकेगा. हो सकता है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद वहां के आतंकी समूह चुप नहीं बैठेंगे. भारत भी इसे समझता है. इसलिए, यहां महत्वपूर्ण यह हो जाता है कि भारतीय सेना को भी समय-समय पर सीमा पार कार्रवाइयां करनी चाहिए, चाहे जो भी हो. पाकिस्तान को भारत ने अब तक बहुत बर्दाश्त किया है, अब हद पार हो चुकी है. अब भारत को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए और ‘सॉफ्ट नेशन’ की अपनी छवि को तोड़ते हुए पाक द्वारा पल रहे आतंकवाद को खत्म करने के लिए सीमा पार तक रणनीतिक लड़ाई लड़नी चाहिए.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
कमर आगा
विदेश मामलों के जानकार

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