कौशलेंद्र रमण
एक बार सात-आठ साल का एक बच्चा अपने पिता के साथ बाहर घूमने निकला. बच्चा सड़क के दोनों किनारे बनी ऊंची इमारतों को जिज्ञासा भरी नजरों से देख रहा था. पिता ने बच्चे के चेहरे से ही उसके मन में उठ रहे सवाल को पढ़ लिया, लेकिन कुछ कहा नहीं. इधर-उधर की कुछ बातें करने के बाद बच्चे ने पिता से पूछा – इतने ऊंचे मकान कैसे बनते हैं? पिता ने बताया – मकान ईंट, कंक्रीट, बालू और सीमेंट की मदद से बनते हैं. उनमें लोहे की छड़ों का भी इस्तेमाल होता है. इस पर बच्चे ने पूछा – इतनी छोटी ईंट, कंक्रीट और बालू से इतने बड़े मकान कैसे बन जाते हैं? इस सवाल के बाद पिता ने उसे विस्तार से समझाना शुरू किया. उन्होंने कहा – देखो सीमेंट, बालू और कंक्रीट में पानी मिलाया जाता है.
इस मिश्रण में इतनी ताकत होती है कि वह सौ माले की इमारत को भी खड़ा कर सकता है. विश्व की सभी ऊंची इमारतें इसी मिश्रण की ताकत की बदौलत बनी हैं. सीमेंट, बालू, कंक्रीट और पानी की अपनी-अपनी ताकत है. लेकिन, जब यह मिल जाते हैं, तो ज्यादा ताकतवर हो जाते हैं. इसके बाद बच्चे ने पूछा – तो क्या हम कॉलोनी के लोग मिल कर कोई बड़ा काम करना चाहें, तो कर सकते हैं. पिता ने हां में सिर हिलाया. फिर सोचने लगे – लगता है बच्चे ने संगठन की ताकत का पाठ समझ लिया है.
कुछ देर चुप रहने के बाद बेटे ने पूछा – हमारी कॉलोनी में बारिश के बाद पानी लगता है. अगर एकजुट होकर हम सब चाहें, तो क्या उसे साफ करवा सकते हैं? पिता ने कहा – हां, क्यों नहीं! इस कहानी का अंत इस रूप में हुआ कि बच्चे ने बाकी बच्चों को जुटाया और सबने मिल कर कॉलोनी को साफ-सुथरा बना दिया.
यह कहानी बताती है कि किसी भी काम को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचाने के लिए काम करनेवालों को संगठित होना जरूरी होता है. अगर वे संगठित नहीं होंगे, तो वह कमजोर होंगे और अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकेंगे. संगठन की शक्ति समाज और संस्थान, दोनों को आगे
बढ़ाती है.
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